क्षुधा परीषह का नाम है। भूख क्षुधा का अर्थ है भूख लगना ।क्षुधादि की वेदना होने पर कर्मों की निर्जरा करने के लिए जो सहन करने योग्य हो वह परीषह है। ये परीषह बाईस है-
क्षुधा,तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, नग्नता, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणास्पर्श,मल,सत्कार-पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन इन नाम वाले परीषह है।
जो साधु निर्दोष आहार का शोध करता है जो भिक्षा के नहीं मिलने पर या अल्प मात्रा में मिलने पर क्षुधा की वेदना को प्राप्त नहीं होता, अकाल या भिक्षा लेने की इच्छा नहीं होती, अत्यन्त गर्म भाण्ड में गिरी हुई जल की कतिपय बूंदो के समान जिसका जलपान सूख गया है और क्षुधा वेदना की उदीरणा होने पर भी जो भिक्षालाभ की अपेक्षा उसके अलाभ को अधिक गुणकारी मानता है उसका क्षुधाजन्य बाधा का चिन्तन नहीं करना क्षुधापरीषह जय है।
तीर्थंकर भगवान ४६ गुणों से सहित और अठारह दोषों से रहित है उन अठारह दोषों में क्षुधा भी एक दोष है।