मामूली सी खांसी कोई व्याधी नहीं है, बल्कि एक ऐसी सकारात्मक प्रत्यावर्ती सुरक्षात्मक प्रक्रिया हैं जिसमें गले व श्वसन प्रणाली में जरा सी चिनचिनाहट व अड़चन होने पर बहुत तेज गति से हवा सीने से बाहर की ओर आवाज करते हुए निकल जाती हैं ताकि वायु मार्ग में किसी प्रकार का अवरोध न रह जायें और इसके हटते ही खांसी बन्द हो जाये। सर्दियों में विशेषकर ठण्ड़ के कारण खांसी — जुकाम का आना — जाना तो लगा ही रहता हैं। यद्यपि इसके कुछ अधिक दिन टिक जाने से थोड़ा बहुत कष्ट व परेशानी अवश्य होती हैं। भाप का सेक, घरेलू औषधि का उपयोग, बाजार में मिलने वाली खांसी की गोली, कफ सिरप व मलने वाले बाम के उपयोग से थोड़े ही दिनों में खांसी प्राय:चली जाती हैं। यह जानना भी जरूरी है कि खांसी का स्वत: उपचार किन परिस्थितियों में खतरनाक हो सकता है। ताकि व्यक्ति विशेष ऐसे लक्षणों के उत्पन्न होते ही चिकित्सक के पास जाकर उपचार करा सके। हममें से बहुत से लोग यह नहीं जानते कि खांसी का कभी — कभार आना शरीर के लिये एक सुरक्षात्मक प्रतिक्रिया हैं क्योंकि यदि खांसी व बलगम निकलने की क्रिया न हो तो इतनी गम्भीर समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं जिनका निराकरण हो पाना संभव ही न है, पर यह भी सोच सही नहीं है कि खांसी हमेशा लाभदायक ही होती हैं। जब वायु नली में अवरोध उत्पन्न करने वाली विकारजन्य वस्तु के हट जाने पर खांसी बनी रहें। फिर भी ऐसी खांसी अपने आप में कोई रोग नहीं है। पर यह किसी श्वास—सम्बन्धि समस्याओं का संकेत भी हो सकती है। खांसी से अधिक प्रभावित कुछ लोग क्यों ? इसके ५ मुख्य कारण हो सकते है
(१) ऐसे आहार का सेवन जो पोषक न हो ।
(२) गन्दे वातावरण में रहना जहां जहरीली गैसे वायुनली के सम्पर्क में आकर उसको क्षतिग्रस्त करती रहती है।
(३) गन्दे मकान में रहना जहां धूप व स्वच्छ वायु न मिल सके।
(४) धुम्रपान की लत जिसके कारण श्वसन—प्रश्वसन प्रभावित होता है।
(५) दमा से ग्रस्त व्यक्ति। खांसी से बचाव किस प्रकार संभव— इससे २ तरह से बचाव किया जा सकता है—
(क) दीर्घकालीन उपायो द्वारा:— रोग प्रतिरोधक प्रणाली को सुदढ़ बनाना, प्रतिदिन व्यायाम करना, धुम्रपान, मद्यपान, तम्बाकू व ड्रग का सेवन न करना।
(ख) संसर्ग से बचाव:— खांसी जुकाम से प्रभावित व्यक्ति से बचना, ऐसे व्यक्ति की इस्तेमाल की हुई वस्तुएँ जैसे रूमाल तौलिया का उपयोग न करना, उसकी छींक व बलगम से बचाव करना। सर्दी—जुकाम से होने वाली खांसी का स्वउपचार—यह खांसी कोई ऐसा रोग नहीं है जिसमें चिकित्सक से उपचार कराया जाये पर निम्न उपायों को अमल में लाकर स्वयं इलाज किया जा सकता है।
(१) खांसी होने पर गर्म या कुनकुना पानी का उपयोग करें।
(२) भाप द्वारा गले को सेके या थोड़ी सी पिसी हल्दी को पानी में उबालकर दिन में ३ बार गरारा करें व ठण्ड से बचे रहें।
(३) पिसा सेंधा नमक घी में मिलाकर तथा थोड़ा गर्म कर छाती पर मलें ताकि सेंक लगने से जकड़न दूर हो जाये।
(१) मिश्री व मुलहठी या पिपरमिन्ट की गोली चूसते रहें ताकि गला तर रहे।
(२) श्वासनली में चिपका बलगम निकालने के लिये काली मिर्च का चूरा आधा चम्मच तथा चीनी आधा चम्मच मिलाकर गर्म पानी के साथ सेवन करें।
(३) छोटी इलायची व लौंग बराबर की मात्रा में पीसकर चाश्नी के साथ दन में ३ बार लें।
(४) तुलसी की पत्ती व अदरक का रस निकालकर चाश्नी के साथ लें।
(५) हल्दी का गुनगुना लेप गले पर मलें।
(ग) आयुर्वेदिक औषधियों
जिनमें लंवगादि वटी, खदीरादि वटी, एलादि वटी, मरिच्यादि वटी आदि में से कोई भी चूसना चाहिये। इसके अलावा दशमूलारिष्ट अडूसा—क्वाथ भी लिया जा सकता है। त्रिमूर्ति का त्रिकफ (कफ सीरप) उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यद्यपि केवल खांसी कोई रोग नहीं, विशेषकर जब सर्दी — जुकाम के कारण उत्पन्न हो पर निम्न परिस्थितियों में चिकित्सक से परामर्श कर खांसी का उपचार कराना आवश्यक है—
(१) यदि आप खांसते—खांसते हांफ जायें, आवाज में भारीपन उत्पन्न, सीने में दर्द हो, श्वास फुलती हो, बुखार बढ़ने लगे थकान बढ़े व शारीरिक भार घटने लगे तो ऐसी परिस्थितियों में स्वत: उपचार न करके चिकित्सक के पास जाकर निदान व उपचार करायें क्योंकि इसको अनदेखा कर स्वत: औषधि सेवन करने से कभी—कभी बीमारी जिसके कारण खांसी आती है, इतना बढ़ सकती है कि परेशानी बढ़ जाती है।
(२) खांसी में बलगम का निकलना कोई चिन्ता की बात नहीं है क्योंकि इसके द्वारा शरीर के अवांछित तत्व बाहर निकल जाते है पर यदि खांसी की रफ्तार बहुत तेज हो जाये और साथ—साथ खांसते समय दर्द भी होने लगे तो तत्काल ही चिकित्सक द्वारा उपचार कराना चाहिये।
(३) यदि कफ में से बलगम निकलता हो और बलगम पीला या हरा झलक वाला हो तो यह संसर्ग का लक्षण हो सकता है, जैसा कि आमतौर से अल्पकालीन व दीर्घ कालीन ब्रोन्काइटिस में होता है। बिना संसर्ग वाले दमा में बलगम यद्यपि सफेद तो होता है पर अधिकतर झागदार रक्त मिला बलगम फैफड़ों का कैन्सर, निमोनिया या तपेदिक का लक्षण भी हो सकता है। इसके कारण यदि बलगम के रंग में सफेद होने के अतिरिक्त किसी प्रकार की झलक भी हो तो अवश्य डॉक्टर से इलाज करना चाहिए।
(४) व्यस्कों में लगातार सूखी खांसी का आना भी किसी रोग का संकेत हो सकता है। जैसे निमोनिया या हृदय रोग। वायुनली या वायु छिद्रों में सूजन के कारण भी हो सकती है। इस कारण यदि ६-७ दिन लगातार सूखी खांसी का प्रकोप बना रहे तो चिकित्सको को दिखलाकर उपचार कराना चाहिये। बच्चों में यदि शुरू में सूखी खांसी हो और बाद में बलगम निकलने लगे, साथ ही सीने में गड़गड़ाहट उत्पन्न हो तब सामान्य हो सकता है, पर यदि खांसी अधिक उग्र प्रकार की हो तो कुकरखांसी समझना चाहिये। ऐसी परिस्थितियों में डॉक्टरो को दिखलाकर उपचार कराना चाहिए।
खांसी की रोकथाम के लिये यदि जनसाधारण केवल सामान्य सावधानियाँ ही बरते तो हम अपने फैफड़ो को रोगग्रस्त होने से बचा सकते है। धुम्रपान को त्याग देना या कम कर देना धुम्रपान का इतना बुरा प्रभाव शरीर पर पड़ता है कि इसे छोड़ देना ही स्वास्थ्य के लिये हितकर है। हृदय व फैफड़ों के रोग तथा कैंसर उत्पन्न करने के अतिरिक्त यह भोजन से प्राप्त पोषक तत्वों का भी अपहरण कर लेता है। चिकित्सकों का यह विश्वास है कि तम्बाकू में विद्यमान निकोटिन व अन्य जहरीले रसायन या तो विटामिन — सी को शरीर में जज्ब नहीं होने देते या बहुत जल्द विटामिन — सी जो चयापचयित कर देते हैं जिससे वह शरीर में हो रही चयापचयिक क्रिया के लिये मिल नहीं पाती। विटामिन — ई की मात्रा भी उन व्यक्तियों के फैफड़ों की कोशिकाओं में बहुत कम होती है जो धुम्रपान करते हैं। इस कारण जो लोग धुम्रपान करते हो उन्हें कम से कम धूम्रपान कम करके विटामिन—सी और विटामिन—ई का सेवन बढ़ा देना चाहिए। इसके साथ पाइप का भी इस्तेमाल करना चाहिये ताकि सिगरेट का धुंए में विद्यमान कुछ विषैली गैसे पाइप द्वारा जज्ब हो फैफड़ो में न पहुँच पायें। प्रदूषित वातावरण से बचाव — शहर में वाहनों के धुएँ तथा कारखानों द्वारा निकली हुई विषैली गैसों से वातावरण दूषित रहता है और यदि व्यक्ति विशेष ऐसे वातावरण में आता जाता है तो फैफड़ों के प्रभावित हो जाने की संभावना बढ़ती है ऐसी स्थिति में व्यक्ति को चेहरे पर मास्क पहने रहना चाहिये और सुबह—शाम खुले हुए पार्कों में जाना चाहिये जहाँ की हवा दूषित न हो।
कुछ व्यक्ति कुछ वस्तुओं के सम्पर्क में आते ही तेजी से खांसने लगते है और खांसी तब तक बन्द नहीं होती जब तक वे व्यक्ति वहां से हट नहीं जाते। इन संवेदनशील व्यक्तियों को चाहिये कि ऐसी वस्तुओं से दूर ही रहें जो खांसी उत्पन्न करती हों।
मौसम में बदलाव अपने पर बहुत से लोगों को एहतियात बरतनी चाहिये ताकि मौसम का प्रभाव शरीर पर कम से कम पड़े । जो लोग मरीजों के साथ रहते है उन्हें विशेष एहतियात बरतना चाहिये कि वे मरीज के ठीक सामने न बैठे और न उसके द्वारा इस्तेमाल हुए रूमाल या तौलियों का प्रयोग करें। हम सबको चाहिये कि वे खांसते समय रूमाल मुंह में रख ले ताकि मुंह से निकली हवा श्वसन द्वारा दूसरे व्यक्ति के फैफड़ों में प्रवेश न कर पाये।
(१) सूखी खांसी(Dry Cough)- गर्म वस्तुओं के अधिक सेवन तथा लापरवाहीवश फैफड़ों में कफ जमा होकर सूख जाता हैं। फैफड़ों के दोनो स्तर कहीं— कहीं पर चिपक जाते हैं, सिर भारी हो जाता हैं और उसमें दर्द होता है।
(२) सूखी खांसी में बलगम नहीं आता है, यदि आता भी है तो अधिक खांसने पर थोड़ा सा बलगम निकलता है।
(३) इस तरह की खांसी दमा, यक्ष्मा, न्यूमोनिया, ब्रांकाइटिस और प्लूरिसी कर शुरूआती अवस्था में होती है। इसमें रोगी की छाती जकड़ी हुई मालूम होती है। बार—बार उठने वाली इस खांसी में रोगी को काफी परेशानी होती है।
(४) तर खांसी— इसमें खांसने पर बलगम आसानी से और अधिक मात्रा में निकलता है। आमतौर पर १ से २ दिन तक सूखी खांसी रहने के बाद जब श्वसन संस्थान का श्लेष्मीय आवरण उत्तेजित हो जाता है तब खांसी के साथ बलगम निकलना शुरू हो जाता है।
(५) तर खांसी ब्रांकाइटिस तथा क्षयरोग का पूर्वाभास कराती है ।
(६) दौरे के रूप में उठने वाली खांसी— इस तरह की खांसी प्राय: रात के समय उठती है। रोगी सोते—सोते जाग जाता है और खांसता रहता है, और चेहरा लाल हो जाता है। इस प्रकार की खांसी २४ घंटे में २० से ४० बार तक तेजी से आती है। इसमें हल्का बुखार भी रहता हैं। प्राय बच्चों को इस तरह की खांसी काली खांसी (हूपिंग कफ) के रूप में मिलती है।
‘शुचि’ मासिक ‘ अगस्त २०१४’