तर्ज-श्री सिद्धचक्र का पाठ…….
गंधोदक का माहात्म्य, सुनो मन शांत भाव से प्राणी,
फल पायो मैना रानी।।टेक.।।
इक मैना का इतिहास सुना।
जिनधर्म कर्मसिद्धान्त सुना।।
श्री सिद्धचक्र का पाठ है उसकी निशानी, फल पायो मैना रानी।।१।।
दूजी इक मैना और हुई।
जो जिन भक्ती में प्रसिद्ध हुई।।
इस कन्या ने सम्यक्त्व की महिमा जानी, फल पायो मैना रानी।।२।।
है ग्राम टिवैâतनगर सुन्दर।
मैना का जन्म हुआ जहाँ पर।।
मोहिनी व छोटेलाल की प्रथम निशानी, फल पायो मैना रानी।।३।।
इक बार महामारी पैâली।
घर-घर में थी चेचक निकली।।
मैना के दो भ्राता की बनी कहानी, फल पायो मैना रानी।।४।।
पैâली कुरीति थी नगरी में।
शीतला मात पूजन कर लें।।
ऐसी श्रद्धा करते थे सब अज्ञानी, फल पायो मैना रानी।।५।।
मैना जिनमत श्रद्धानी थी।
कर्मों की गति पहचानी थी।।
प्रभु शीतलनाथ की भक्ती उसने ठानी, फल पायो मैना रानी।।६।।
गंधोदक रोज लगा करके।
कर दिया स्वस्थ भ्राता अपने।।
पर कितनों की हो गई मृत्यु नहिं मानी, फल पायो मैना रानी।।७।।
यह चमत्कार देखा सबने।
तब जिनवर के दृढ़ भक्त बने।।
मिथ्यात्व दूर हो गया बने सब ज्ञानी, फल पायो मैना रानी।।८।।
यह मैना ही बनी ज्ञानमती।
जो बालयोगिनी प्रथम कही।।
इस युग की गणिनीप्रमुख आर्यिका मानी, फल पायो मैना रानी।।९।।
तुम भी दृढ़ श्रद्धानी बनना।
गंधोदक पर श्रद्धा रखना।।
‘चन्दनामती’ यह सच्ची कही कहानी, फल पायो मैना रानी।।१०।।