रत्नत्रय ही ‘गण’ है। मोक्षमार्ग में गमन ही ‘गच्छ’ है। गुण का समूह ही संघ है तथा निर्मल आत्मा ही समय है। अत्यं यासइ अरहा सुत्तं गंथंति गणहरा निउणं। अर्थ (सिद्धान्त/भाव के प्रवक्ता सर्वज्ञ भगवान् अरिहंत होते हैं। उनके द्वारा कथित भावों को सूत्र/शास्त्र के रूप में गणधर प्रस्तुत करते हैं