णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।
णमो जिणाणं । णमो ओहिजिणाणं।।
णमो परमोहिजिणाणं। णमो सव्वोहिजिणाणं।।
णमो अणंतोहिजिणाणं। णमो कोट्ठबुद्धीणं।।
णमो बीजबुद्धीणं। णमो पादाणुसारीणं।।
णमो संभिण्णसोदाराणं। णमो सयंबुद्धाणं।।
णमो पत्तेयबुद्धाणं। णमो बोहिय बुद्धाणं।
णमो उजुमदीणं। णमो विउलमदीणं।।
णमो दसपुव्वीणं। णमो चउदसपुव्वीणं।।
णमो अट्ठंग- महा- णिमित्त-कुसलाणं।।
णमो विउव्व- इड्ढि- पत्ताणं।।
णमो विज्जाहराणं। णमो चारणाणं।।
णमो पण्णसमणाणं। णमो आगास-गामीणं।।
णमो आसीविसाणं। णमो दिट्ठिविसाणं।।
णमो उग्गतवाणं। णमो दित्ततवाणं।।
णमो तत्ततवाणं। णमो महातवाणं।
णमो घोरतवाणं, णमो घोरगुणाणं।।
णमो घोर परक्कमाणं। णमो घोरगुण-बंभयारीणं।।
णमो आमोसहि-पत्ताणं। णमो खेल्लोसहि-पत्ताणं।।
णमो जल्लोसहि—पत्ताणं। णमो विप्पोसहिपत्ताणं।।
णमो सव्वोसहिपत्ताणं। णमो मणबलीणं।।
णमो वचिबलीणं । णमो कायबलीणं।।
णमो खीरसवीणं। णमो सप्पिसवीणं।।
णमो महुरसवीणं। णमो अमियसवीणं।।
णमो अक्खीण-महाणसाणं। णमो वड्ढमाणाणं।।
णमो सिद्धायदणाणं। णमो भयवदो
महदि-महावीर-वड्ढमाण-बुद्धरिसीणो चेदि।
जस्संतियं धम्मपहं णियच्छे, तस्संतियं वेणयियं पउंजे।
काएण वाचा मणसा वि णिच्चं, सक्कारए तं सिरपंचमेण।।
मैं नमूँ जिनों को जो अर्हन्, अवधीजिन मुनि को नमूँ नमूँ।
परमावधि जिन को नमूँ तथा, सर्वावधि जिन को नमूँ नमूँ।।
मैं नमूँ अनंतावधि जिन को, अरु कोष्ठबुद्धि युत साधु नमूँ।
मैं नमूँ बीजबुद्धीयुत मुनि, पादानुसारियुत साधु नमूँ।।१।।
संभिन्नश्रोतृयुत साधु नमूँ, मैं स्वयंबुद्ध मुनिराज नमूँ।
प्रत्येक बुद्ध ऋषिराज नमूँ, पुनि बोधित बुद्ध मुनीश नमूँ।।
ऋजुमतिमनपर्यय साधु नमूँ, मैं विपुलमतीयुत साधु नमूँ।
मैं नमूँ अभिन्न सुदशपूर्वी, चौदशपूर्वी मुनिराज नमूँ।।२।।
अष्टांगमहाणिमित्तकुशली, नमूँ नमूँ विक्रियाऋद्धि प्राप्त।
विद्याधरऋषि को नमूँ नमूँ मैं, संयत चारणऋद्धि प्राप्त।।
मैं प्रज्ञाश्रमण मुनीश नमूूँ, आकाशगामि मुनिराज नमूँ।
आशीविषयुत ऋषिराज नमूँ, दृष्टीविषयुत मुनिराज नमूँ।।३।।
मैं उग्रतपस्वी नमूँ दीप्ततपि, नमूँ तप्ततपसाधु नमूँ।
मैं नमूँ महातपधारी को, अरु घोरतपोयुत साधु नमूँ।।
मैं नमूँ घोरगुणयुत साधू, मैं घोरपराक्रम साधु नमूँ।
मैं नमूँ घोरगुणब्रह्मचारि, आमौषधिप्राप्त मुनीश नमूँ।।४।।
क्ष्वेलौषधिप्राप्त मुनीश नमूँ, जल्लौषधि प्राप्त मुनीश नमूँ।
विप्रुष औषधियुत साधु नमूँ, सर्वौषधि प्राप्त मुनीश नमूँ।।
मैं नमूँ मनोबलि मुनिवर को, मैं वचनबली ऋद्धीश नमूँ।
मैं कायबली मुनिनाथ नमूँ, मैं क्षीरस्रावी मुनिराज नमूँ।।५।।
मैं घृतस्रावी मुनिराज नमूँ, मैं मधुस्रावी मुनिराज नमूँ।
मैं अमृतस्रावी साधु नमूँ, अक्षीणमहानस साधु नमूँ।।
मैं वर्धमान ऋद्धीश नमूँ, मैं सिद्धायतन समस्त नमूँ।
भगवन् महति महावीर, श्री वर्धमान बुद्धर्षि नमूँ।।६।।
नित काय से वचन से और मन से उन्हीं को।
जिसके निकट में धर्मपथ को प्राप्त किया हूँ।
उनके निकट ही विनयवृत्ति धार रहा हूँ।।
पंचांग नमस्कार करूँ भक्ति भाव सों।।
अथ: जिनगणधरवलययज्ञप्रतिज्ञापनाय मंडलस्योपरि दिव्य पुष्पांजलिं क्षिपेत्।