संख्यात, असंख्यात और अनन्त की गणना।
पल्य तीन प्रकार का है- व्यवहार पल्य, उद्धारपल्य और अद्धारपल्य । ये तीन सार्थक नाम है। आदि के पल्य को व्यवहारपल्य कहते है। क्योंकि यह आगे के दो पल्यों का मूल है। इसके द्वारा और किसी वस्तु का प्रमाण नही किया जाता। दूसरा उद्धारपल्य हे। उद्धारपल्य में से निकाले गये रोम के छेदों द्वारा द्वीप और समुद्रों की गिनती की जाती है। तीसरा अद्धापल्य है। अद्धा और कालस्थिति ये एकार्थवाची शब्द है। ढाई उद्धार सागर के जितने रोम खंड हो उतने सब द्वीप और समुद्र है। अद्धारपल्य के द्वारा नारकी, तिर्यंच देव और मनुष्यों की कर्मस्थिति, भवस्थिति, आयुस्थिति और कायस्थिति की गणना करनी चाहिए।
जहाँ भी संख्यात शब्द आता है। वहाँ यही अजघन्योत्कृष्ट संख्यात लिया जाता हे। जहाँ आवली से प्रयोजन होता है, वहाँ जघन्य युक्तसंरपेय लिया जाता है। असंख्यासंख्येय के स्थानों मं अजघन्योत्कृष्ट असेख्येयासंख्येय विवक्षित होता है। अभय राशिके प्रमाण में जघन्य युक्तानन्त लिया जाता है। जहाँ अनन्तानन्त का प्रकरण आता है वहाँ अजघन्योत्कृष्ट अनन्तानन्त लेना चाहिये । द्वीपसागरों के एक दिशा के विस्तार को दुगुना करने पर रज्जुका प्रमाण निकलता है। यह रज्जु दोनों दिशाओं में तनुवातवलय के अन्त भाग को स्पर्श करती है। विद्वान लोग इसके द्वारा तीनों लोको का प्रमाण निकालते है।