-आर्यिका श्री चन्दनामती माताजी
-अनुष्टुप् छंद-
मंगलं प्रथमाचार्य: सूरि: श्री शान्तिसागर:।
मंगलं प्रथमो शिष्य:, सूरि: श्रीवीरसागर:।।१।।
मंगलं वीरसिन्धोश्च, शिष्या ज्ञानमती सदा।
मंगलं मातु: निधय:, कुर्वन्तु मम सर्वदा।।२।।
चतुर्वेदानुयोगाच्च, स्वाध्यायात् यत्फलं भवेत्।
श्रीज्ञानमतिमातुश्च, दर्शनात् तत्फलं भवेत्।।३।।
यत्र सर्वोच्च मूर्ति: स्यात्, यत्र माता तपस्विनी।
तत्र जैनेन्द्रवाणी तु, सदा भूयात् यशस्विनी।।४।।
ज्ञानमत्यार्यिका गणिनी, माता जीयात् युगे युगे।
नमस्तस्यै सरस्वत्यै, ज्ञानमूर्त्यै नमो नम:।।५।।
-बसंततिलका छंद-
तुभ्यं नमोऽस्तु श्री ज्ञानमती सुमात:!
तुभ्यं नमोऽस्तु गणिनीप्रमुखा सुमात:!
तुभ्यं नमोऽस्तु चिरसंयतिका सुमात:!
हे दिव्यशक्तिसहिताश्च नमोऽस्तु तुभ्यं।।६।।
भारत गौरव हे वात्सल्यप्रभाकर! ज्ञानमती माता।
दिव्यशक्ति अमृतनिर्झरिणी बालब्रह्मचारिणि माता।।
शांतिसिन्धु की परम्परा में चिरदीक्षित शारद माता।
मेरा शत वंदन स्वीकारो गणिनीप्रमुख हे श्रुतमाता।।
जिनके उर में कल-कल बहती, गंगा की निर्मल धारा।
त्याग और शुभ ज्ञान मणि से, जिनने निज को शृँगारा।।
वचनों के मोती बिखरातीं, युग की पहली बालसती।
मेरा शत वन्दन स्वीकारो, गणिनी माता ज्ञानमती।।