प्रश्न १—बीसवीं सदी की प्रथम बालब्रह्मचारिणी आर्यिका कौन—सी हैं ?
उत्तर—गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी।
प्रश्न २—इनका जन्म कहाँ हुआ है ?
उत्तर—इनका जन्म उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले के टिकैतनगर ग्राम में हुआ।
प्रश्न ३—गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का जन्म किस सन् में हुआ ?
उत्तर—गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का जन्म २२ अक्टूबर सन् १९३४ में हुआ।
प्रश्न ४—गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का जन्म किस तिथि में हुआ ?
उत्तर—गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का जन्म शरदपूर्णिमा (आश्विन शु. पूर्णिमा) की पावन तिथि में हुआ।
प्रश्न ५—इनका जन्म नाम क्या था ?
उत्तर—कु. मैना।
प्रश्न ६—इनकी जाति एवं गोत्र का क्या नाम था ?
उत्तर—अग्रवाल जैन जाति एवं गोयल गोत्रीय परिवार में इनका जन्म हुआ था।
प्रश्न ७—इनके माता—पिता का क्या नाम था ?
उत्तर—माता का नाम मोहिनी देवी तथा पिता का नाम छोटेलाल था। प्रश्न ८—अपने माता—पिता की ये कौन सी संतान हैं ?
उत्तर—प्रथम।
प्रश्न ९—इनके भाई कितने हैं ?
उत्तर—चार भाई हैं—कैलाशचंद, स्व. प्रकाशचंद, सुभाषचंद एवं स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी।
प्रश्न १०—बहनें कितनी हैं ?
उत्तर—९ बहनें हैं—स्वयं (ज्ञानमती माताजी), सौ. शान्तिदेवी, सौ. श्रीमती देवी, ब्र. मनोवती (स्व. आर्यिका अभयमती), श्रीमती कुमुदनी देवी, सौ. मालती शास्त्री, सौ. कामनी देवी, ब्र. माधुरी (आर्यिका चंदनामती माताजी) सौ. त्रिशला देवी।
प्रश्न ११—पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी ने कितने वर्ष की उम्र में अणुव्रत धारण किये थे?
उत्तर—यूं तो आठ वर्ष की उम्र के बाद ही इन्हें पूर्ण जन्म के संस्कारवश बोध प्राप्त हो गया था, जिसके फलस्वरूप इन्होंने अपने घर में अनेक कुरीतियों को समाप्त किया था। फिर भी विधिवत् गुरु के पादमूल में सन् १९५२ की शरदपूर्णिमा को सप्तमप्रतिमा के व्रत लेकर अणुव्रती श्राविका की श्रेणी प्राप्त की थी।
प्रश्न १२—गणिनी ज्ञानमती माताजी की ननिहाल कहाँ हैं ?
उत्तर—गणिनी ज्ञानमती माताजी की ननिहाल महमूदाबाद (उ. प्र.) में है।
प्रश्न १३—गणिनी ज्ञानमती माताजी को वैराग्य कैसे हुआ ?
उत्तर—‘पद्मनपंन्दिप्रचविंशतिका’ ग्रंथ के स्वाध्याय से इन्हें वैराग्य हुआ था।
प्रश्न १४—इन्हें ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण कराने में कौन सा कारण प्रमुख रहा?
उत्तर—एक बार अकलंक—निकलंक नाटक देखकर इन्होंने आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत लेने का संकल्प किया।
प्रश्न १५—इनका विवाह हुआ था या क्वांरी अवस्था में वैराग्य हो गया था ?
उत्तर—क्वांरी अवस्था में ही इन्हें संसार से वैराग्य हो गया था।
प्रश्न १६—ब्रह्मचर्य व्रत इन्होंने कहाँ और किस गुरु से लिया था ?
उत्तर—इन्होंने सन् १९५२ की शरद पूर्णिमा को बाराबंकी में आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज से सप्तम प्रतिमा रूप ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया था।
प्रश्न १७—इन्होंने कितनी उम्र में दीक्षा ग्रहण की ?
उत्तर—इन्होंने १८ वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की।
प्रश्न १८—इन्होंने क्षुल्लिका दीक्षा कहाँ ली थी ?
उत्तर—श्री महावीर जी अतिशय क्षेत्र पर इन्होंने क्षुल्लिका दीक्षा ली थी ?
प्रश्न १९—इन्होंने क्षुल्लिका दीक्षा कौन से सन् में व कौन सी तिथि में ली थी ?
उत्तर—इन्होंने क्षुल्लिका दीक्षा सन् १९५३ में चैत्र कृ. एकम को ली थी।
प्रश्न २०—इन्होंने क्षुल्लिका दीक्षा किससे ली थी ?
उत्तर—इन्होंने क्षुल्लिका दीक्षा परमपूज्य आचार्य श्री देशभूषण महाराज जी से ली थी।
प्रश्न २१—क्षुल्लिका अवस्था में इनका क्या नाम था ?
उत्तर—क्षुल्लिका वीरमती माताजी।
प्रश्न २२—क्षुल्लिका अवस्था में ये कितने दिन रही हैं ?
उत्तर—३ वर्ष ३१ दिन तक ये क्षुल्लिका अवस्था में रही हैं।
प्रश्न २३—क्षुल्लिका अवस्था के तीन चातुर्मास इन्होंने कहाँ—कहाँ किये थे?
उत्तर—प्रथम टिकैतनगर में, द्वितीय जयपुर में और तृतीय म्हसवड़ (महाराष्ट्र) में।
प्रश्न २४—पुन: इन्होंने आर्यिका दीक्षा किससे ग्रहण की ?
उत्तर—चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के प्रथम पट्टाधीश आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज से इन्होंने आर्यिका दीक्षा ली थी।
प्रश्न २५—कहाँ और किस तिथि में आर्यिका दीक्षा हुई ?
उत्तर—माधोराजपुरा (राज.) में सन् १९५६ में वैशाख कृष्णा दूज को आचार्य श्री वीरसागरजी महाराज ने इन्हें आर्यिका दीक्षा देकर ज्ञानमती नाम प्रदान किया था।
प्रश्न २६—आर्यिका दीक्षा के बाद सन् २०१३ तक इनके ५८ चातुर्मास कहाँ—कहाँ हुए हैं ?
उत्तर— जयपुर (खानिया) जयपुर (खानिया) ब्यावर (राज.) अजमेर सुजानगढ़ (राज.) सीकर लाडनू कलकत्ता हैदराबाद श्रवणबेलगोला सोलापुर(महा.) सनावद प्रतापगढ़ (राज.) जयपुर टोंक अजमेर पहाड़ीधीरज (दिल्ली) नजफगढ़ (दिल्ली) कूचा सेठ (दिल्ली) हस्तिनापुर खतौली हस्तिनापुर हस्तिनापुर मोरीगेट कूचासेठ (दिल्ली) हस्तिनापुर (जम्बूद्वीप) दिल्ली २८. से ३५. नं.३५ नं तक अर्थात् सन् १९८३ से १९९० तक ८ चातुर्मास हस्तिनापुर में पुन: सरधना हस्तिनापुर अयोध्या टिकेतनगर हस्तिनापुर मांगीतुंगी दिल्ली (लाल मंदिर) हस्तिनापुर दिल्ली (कनॉट प्लेस) दिल्ली (कमल मंदिर—प्रीत विहार) दिल्ली (अशोक विहार) प्रयाग (इलाहाबाद) कुण्डलपुर (नालंदा—बिहार) कुण्डलपुर ५० से ५८ चातुर्मास—जम्बूद्वीप हस्तिनापुर में ( सन् २००५ से २०१३तक )
प्रश्न २७—चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज के प्रथम दर्शन इन्होंने कब और कहाँ किये थे ?
उत्तर—दिसम्बर सन् १९५४ नीरा (महा.) में।
प्रश्न २८—क्या इन्होंने आचार्यश्री शांतिसागर जी की सल्लेखना भी देखी है ?
उत्तर—हाँ, सन् १९५५ में एक माह कुंथलगिरि रुककर क्षुल्लिकावस्था में आचार्य श्री की प्रत्यक्ष सल्लेखना तो देखी ही है, साथ ही उनके श्रीमुख से अनेक अनुभव वाक्य भी प्राप्त किए हैं।
प्रश्न २९—आचार्य श्री शांतिसागर जी से इन्होंने आर्यिका दीक्षा क्यों नहीं ली ?
उत्तर—इन्होंने आचार्य श्री से आर्यिका दीक्षा की याचना की थी किन्तु आचार्य श्री ने कहा था कि मैंने सल्लेखना ले ली है और अब दीक्षा देने का त्याग कर दिया है। तुम मेरे शिष्य वीरसागर से आर्यिका दीक्षा लेना। अत: उनकी आज्ञानुसार उनके शिष्य प्रथम पट्टाचार्य वीसागरजी से दीक्षा ली।
प्रश्न ३०—आर्यिकाओं के कितने मूलगुण होते हैं ?
उत्तर—आर्यिकाओं के २८ मूलगुण होते हैं क्योंकि उनकी समस्त चर्या प्रायश्चित, दीक्षाविधि आदि मुनियों के समान ही रहती है। हाँ नग्नता और खड़े होकर भोजन करना ये दो बातें उनके लिए निषिद्ध है अत: उनके स्थान पर एक सफद साड़ी पहनने और बैठकर करपात्र में भोजन करने का विधान है जोकि उनके मूलगुण के रूप में स्वीकार किये गये हैं।
प्रश्न ३१—ज्ञानमती माताजी को इतने विशाल ज्ञान की प्राप्ति कैसे हुई ?
उत्तर—पूर्वजन्म के संस्कारवश एवं ज्ञानावरणकर्म का क्षयोपशम ही निमित्त मानना पड़ेगा तथा इस भव में जिनभक्ति और अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग भी कारण है।
प्रश्न ३२—वर्तमान शताब्दी में ग्रंथ रचना का शुभारंभ किसने किया है ?
उत्तर—गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने।
प्रश्न ३३—साहित्य सृजन में इनकी सबसे पहली कृति कौन सी है?
उत्तर—सन् १९५५ में म्हसवड़ (महा.) चातुर्मास में सबसे पहले जिनसहस्रनाम मंत्र नाम की पुस्तक लिखी, वह इसी नाम से आज भी प्रकाशित है।
प्रश्न ३४—श्री ज्ञानमती माताजी ने प्रथमानुयोग से संबंधित कौन—कौन सी पुस्तके लिखी हैं?
उत्तर—प्रतिज्ञा, परीक्षा, संस्कार, उपकार, जीवनदान, प्रभावना, सती अंजना, भक्ति, भगवान नेमिनाथ, भगवान ऋषभदेव, आदिब्रह्मा, कामदेव बाहुबली, योगचव्रेâश्वर बाहुबली, बाहुबली नाटक, पुरुदेव नाटक, रोहिणी नाटक, एकांकी, जैन बाल भारती, नारी आलोक, चौबीस तीर्थंकर, आटे का मुर्गा आदि।
प्रश्न ३५—पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के प्रथमानुयोगमयी जीवन पक्ष से क्या निष्कर्ष निकलता है ?
उत्तर—जीवन में दृढ़ संकल्पी होकर अपने लक्ष्य को पूर्ण करना, संघर्षों को झेलकर जीवन को कुन्दन सा चमकाना, न्याय का पक्ष एवं अन्याय से दूर रहना, सत्य को अपना कर आत्मविश्वास पूर्वक उस पर अिंडग रहना। यह पूज्य ज्ञानमती माताजी के आदर्श जीवन का प्रथमानुयोगमयी गंरथ पठनीय एवं अनुकरणीय है।
प्रश्न ३६—पूज्य माताजी ने करणानुयोग से संबंधित कौन—कौन सी पुस्तके लिखी हैं ?
उत्तर—त्रिलोक भास्कर, जैनभूगोल, जम्बूद्वीप आदि पुस्तवके लिखी है तथा गोम्मटसार जीवकांडसार, गोम्मटसार कर्मकांडसार का संकलन किया है।
प्रश्न ३७—ज्ञानमती माताजी ने संस्कृत टीका किन—कन ग्रंथों की लिखी है ?
उत्तर—नियमसार ग्रंथ पर स्याद्वादचंद्रिका टीका एवं षट्खंडागम ग्रंथ (सोलहों पुस्तकों की होकर छप चुकी है) पर सिद्धान्तचिंतामणि नामक संस्कृत टीका लिखी है।
प्रश्न ३८—पूज्य माताजी ने अनेक विधानों की रचना की है उनमें से ५ के नाम बताइये ?
उत्तर—इन्द्रध्वज विधान, कल्पद्रुम विधान, तीन लोक विधान, सर्वतोभद्र विधान, सिद्धचक्र विधान।
प्रश्न ३९—इन्द्रध्वज विधान की रचना ज्ञानमती माताजी के किस सन् में कहाँ की थी ?
उत्तर—सन् १९७६ में खतौली उ. प्र. में इन्द्रध्वज विधान की रचना की थी।
प्रश्न ४०—इन्द्रध्वज विधान कितने दिनों में लिखकर पूर्ण हुआ था ?
उत्तर—श्रावण वदी सप्तमी से इन्द्रध्वज विधान का लेखन पूज्य माताजी ने प्रारम्भ किया था तथा कार्तिक कृष्णा अमावस को पूर्ण किया था। इस प्रकार कुल ९९ दिनों में इन्द्रध्वज को लेखन पूर्ण हुआ था।
प्रश्न ४१—इन्द्रध्वज विधान में कितनी पूजाएँ एवं कितने अघ्र्य हैं ?
उत्तर—५० पूजाएँ एवं ४५८ अघ्र्य हैं।
प्रश्न ४२—कल्पद्रुप मंडल विधान की रचना ज्ञानमती मातजी ने किस ग्रंथ के आधार से की है ?
उत्तर—इस विधान का नाम शास्त्रों में आता था, किन्तु अभी तक यह विधान देश के किसी ग्रंथालय में देखने में नहीं आया था। पूज्य माताजी ने अपने मस्तिष्क से ही तिलोयपण्णत्ति आदि ग्रंथों का आधार लेकर समवसरण से संबंधित पूजाओं को रचकर यह अपनी एक मौलिक कृति बनाई है।
प्रश्न ४३—इस कल्पद्रुम विधान को उन्होंने कहाँ और किस सन् में लिखा है।
उत्तर—सन् १९८६ में हस्तिनापुर के जंबूद्वीप स्थल पर चातुर्मास काल में।
प्रश्न ४४—इस कल्पद्रुम विधान को माताजी ने कितने दिन में लिखकर पूरा किया था?
उत्तर—९ जुलाई १९८६ आषाढ़ शुक्ला द्वितीया को पूज्य माताजी ने प्रात: ५ बजकर ४५ मिनट पर इसका लेखन प्रारंभ किया तथा १७ अक्टूबर १९८६ शरदपूर्णिमा को प्रात: ६:१० बजे पूर्ण किया, अत: कुल १०१ दिन में यह विधान लिखा गया है।
प्रश्न ४५—कल्पद्रुम विधान में कुल कितनी पूजाएँ एवं कितने अघ्र्य हैं ?
उत्तर—२४ पूजाएँ एवं २४०० अघ्र्य हैं।
प्रश्न ४६—मूलाचार ग्रंथ किसने बनाया और इसका हिन्दी अनुवाद किसने किया है ?
उत्तर—मूलाचार ग्रंथ आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी ने बनाया और इसका हिन्दी अनुवाद युगप्रर्वितका गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने किया है।
प्रश्न ४७—आचार्य श्री कुन्दकुन्दस्वामी द्वारा रचित मूलाचार ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद ज्ञानमती माताजी ने कब किया है और कहाँ से प्रकाशित हुआ है ?
उत्तर—सन् १९७६ में मूलाचार का अनुवाद किया है वह भारतीय ज्ञानपीठ संस्था से प्रकाशित हुआ है।
प्रश्न ४८—क्या पूज्य माताजी ने कन्नड़ भाषा में भी रचनाएँ की हैं ?
उत्तर—हाँ, सन् १९६५ में माताजी ने कन्नड़ की बारह भावना, बाहुबली स्तुति और भद्रबाहु स्तुति रची थीं जिसमें से बारह भावना कर्नाटक प्रान्त में खूब प्रचलित है।
प्रश्न ४९—पूज्य माताजी द्वारा रचित तीन लोक विधान में कितनी पूजा अघ्र्य आदि हैं ?
उत्तर—तीन लोक विधान में ६४ पूजाएँ हैं। ८४४ अघ्र्य तथा १४० पूर्णाघ्र्यं है। ६४ जयमाला एवं त्रैलोक्य चूड़ामणि नाम की १ बड़ी जयमाला है।
प्रश्न ५०—पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी ने द्रव्यानुयोग संबंधी किन—किन ग्रंथों की रचना की हैं?
उत्तर—(१) समयसार की हिन्दी टीका। (२) नियमसार की संस्कृत एवं हिन्दी टीका (३) नियमसार पद्यावली (४) नियमसार पद्मप्रभमलधारी देव की संस्कृत टीका का हिन्दी अनुवाद।
प्रश्न ५१—उनके द्वारा रचित संस्कृत टीका ग्रंथ का क्या नाम है ?
उत्तर—नियमसार प्राभृत आचार्य श्री कुन्दकुन्दस्वामी द्वारा रचित नियमसार की प्राकृत गाथाओं पर ‘‘स्याद्वादचन्द्रिका’’ नामक संस्कृत टीका एवं उसकी हिन्दी टीका भी लिखी है, जो अत्यन्त सरल एवं रोचक है।
प्रश्न ५२—पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा रचित उस अनुवादित ग्रंथ का नाम बताइये जिसे विद्वतवर्ग ‘‘लोहे के चने चबाना’’ जैसे उदाहरणों द्वारा क्लिष्ट बताते हैं ?
उत्तर—उस ग्रंथ का नाम अष्टसहस्री ग्रंथ है जिसका हिन्दी अनुवाद सरल भाषा में पूज्य माताजी ने किया है।
प्रश्न ५३—पूज्य माताजी द्वारा रचित चारों अनुयोगों से समन्वित ग्रंथ का नाम बताइये ?
उत्तर—‘‘जैन भारती’’ ग्रंथ चारों अनुयोगों से समन्वित ग्रंथ है।