बारहमासा सुनो ज्ञानमती मात का, जिनने निज में समाया सभी मास को।
सारा संसार विषयों का स्वादी बना, तब ये तज कर चलीं सब विषय आश को।।१।।
चैत्र महिना बसन्ती गुलाबी ऋतू, जिसको नर नारी कहते हैं अपना हितू।
कृष्ण एकम को तुम क्षुल्लिका बन गईं, षोडशी सोलहकारण व्रती बन गईं।
चैत्र का मास सचमुच सफल हो गया, क्योंकि तुममें समा ही गया मास वो।।१।। बारहमासा……..
मास वैशाख में ग्रीष्म ऋतु आ गई, पेय द्रव्यों की ठण्डी बहारें चलीं।
कृष्ण दुतिया को तुम आर्यिका बन गईं, ज्ञान की ऐसी ठण्डी फुहारें चलीं।
मास वैशाख सचमुच सफल हो गया, आर्यिका ज्ञानमतिमय बना मास वो।।२।। बारहमासा…….
ज्येष्ठ में लू हवा गर्म चलने लगी, घर में छुप छुप पिपासा मचलने लगी।
कोमलांगी की पदयात्रा चलती रही, रक्त की धार पैरों से बहती रही।
ज्येष्ठ का मास सचमुच सफल हो गया, मात से प्राप्त कर ज्ञान की प्यास को।।३।। बारहमासा……
मास आषाढ़ में वर्षा ऋतु आ गई, तप रही यह धरा तृप्ति कुछ पा गई।
वर्षायोग स्थापन करें मात श्री, जिस नगर ने तुम्हें पाया वह धन्य भी।
मास आषाढ़ सचमुच सफल हो गया, प्राप्त कर ज्ञानमति के चतुर्मास को।।४।। बारहमासा…..
मास श्रावण में ललनाएं गाने लगीं, झूलकर रक्षाबन्धन मनाने लगीं।
ध्यान स्वाध्याय में लीन यह संघ है, आर्यिका संघ में ज्ञान का रंग है।
श्रावणी मास सचमुच सफल हो गया, पाके गणिनी शिरोमणि श्रुताभ्यास को।।५।। बारहमासा…..
भाद्रपद मास पर्वों को ले आ गया, जग के नर नारियों को भी यह भा गया।
शक्तितस्तप व उपदेश माता करें, उनकी शिष्या जी उपवास बत्तिस धरें।
भाद्रपद मास सचमुच सफल हो गया, पाके तपसी व श्रुतज्ञानि के वास को।।६।। बारहमासा….
मास आश्विन दशहरा दिखाने लगा, शरद ऋतु आगमन को बताने लगा।
उसकी ही पूर्णिमा ने दिया मात को, है शरद पूर्णिमा रात्रि विख्यात वो।
आश्विनी मास सचमुच सफल हो गया, जन्म के दिन ही माँ ने लिया त्याग कोे।।७।। बारहमासा…..
मास कार्तिक सुहाना समय आ गया, पर्व दीपावली का समां छा गया।।
मात श्री वर्षायोग समापन करें, आर्यिका के व्रतों का सुपालन करें।
कार्तिकी मास सचमुच सफल हो गया, प्राप्त कर वीर निर्वाण नव आस को।।८।। बारहमासा…..
मास मगशिर विवाहोत्सवी मास में, नव वधू लाल मेंहदी रचें हाथ में,
ज्ञानमति मात की लेखनी चल रही, ज्ञान की ज्योति उनके हृदय जल रही।
मास मगशिर भी सचमुच सफल हो गया, प्राप्त कर ज्ञानमति मात सी मात को।।९।।बारहमासा…..
पौष में बर्फ सी ठण्ड पड़ती सदा, जग के प्राणी विषय भोगते सर्वदा।
हस्तिनापुर से जंगल की सर्दी में भी, ज्ञानमति माताजी सर्वदा खुश रहें।
पौष का मास सचमुच सफल हो गया, पाके सुकुमारिका के अजब त्याग को।।१०।। बारहमासा……
माघ महिना भी टपका रहा शीत को, ज्ञान बिन जो मनुज होते भयभीत वो।
ज्ञान की ले बसन्ती हवा मात श्री, ज्ञान आराधना में सदा लीन भी।
माघ का मास सचमुच सफल हो गया, जिसने पाया बसन्ती सुधा प्यास को।।११।।बारहमासा…..
मास फाल्गुन गुलालों के संग आ गया, सबपे होली के मौसम का रंग छा गया।
ज्ञान पिचकारी से होली खेलें वे भी, ज्ञानमति नाम सार्थक करें मात श्री।
फाल्गुनी मास सचमुच सफल हो गया, प्राप्त कर आर्यिका ब्राह्मी सी मात को।।१२।। बारहमासा….
‘‘चन्दनामति’’ ने यह बारहमासा रचा, देखकर जिनने जीवन स्वयं मात का।
वीर निर्वाण पच्चीस सौ उन्नीस में, माघ कृष्णा त्रयोदशि की रचना है ये।
सारी ऋतुएं भी माँ के चरण झुक नई, दीर्घकालिक तपस्या की ले आश को।।१३।। बारहमासा…..
इसको पढ़ करके चिन्तन मनन जो करे, बारहों मास अपने सफल वो करे।
ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमन्त में, ऋतु बसन्तादि ये षट् जो प्राणी सहें।
मेरा जीवन बने ज्ञानमति मात सम, मेरी रचना में भी इक यही आश हो।।१४।। बारहमासा…….