तर्ज-जपूँ मैं जिनवर जिनवर………
गणिनी माँ ज्ञानमती की, शिष्या चंदनामती की।
दीक्षा रजत जयंती का शुभ अवसर आया है अवसर-२……………….
धन्य टिकैतनगर की धरती, मोहिनी माँ की बगिया महकी।
छोटेलाल पितु धन्य हुए इन्हें पाकर……. हुए रत्नाकर-२………………..।।१।।
श्रावण शुक्ला ग्यारस तिथि में। गजपुर में दीक्षा ली तुमने।।
ज्ञानमती सम गुरु को पाया तुमने…. पाया तुमने-२…………….।।२।।
गुरु शिष्या की जोड़ी निराली। ब्राह्मी सुन्दरी सी अति प्यारी।।
चंद्रगुप्त सम गुरुभक्ति है तुम्हारी……… हे माँ तुम्हारी-२………………।।३।। प्र
ज्ञाश्रमणी तुम हो माता। चंदन सम गुण तुममें माता।।
‘‘सुदृढ़मती’’ सुरभित हों हम सब माता………. हम सब माता-२………………..।।४।।