जो एक पर्याय से दूसरी पर्याय में ले जावे वह गति है।
गति के चार भेद हैं– नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति
नरकगति– नामकर्म के उदय से नरक में जन्म लेना नरकगति है। नरक में हर समय मारकाट का दु:ख होता रहता है, सुख का लेश भी नहीं है।
तिर्यंचगति– नामकर्म के उदय से जीव तिर्यंच होते हैं। वे हाथी, घोड़ा, विकलत्रय और स्थावर आदि गति में असंख्य दु:ख उठाते हैं।
मनुष्यगति– नामकर्म के उदय से मनुष्य में जन्म लेकर स्त्री, पुरुष, नपुंसक होते हैं।
देवगति- नामकर्म के उदय से देवों में उत्तम वैक्रियिक शरीर प्राप्त करके दिव्य सुखों का भोग करते हैं।
बच्चों! बताओ! इन चारों गतियों में तुम्हें कौन सी गति पसंद है।
गुरु जी! हमें मनुष्यगति पसंद है।
‘‘ऐसा क्यों ?’’
क्योंकि इस मनुष्य शरीर में हम तपश्चरण करके कर्मो का नाश कर सकते हैं और सिद्ध परमात्मा बन सकते हैं।
‘बहुत ठीक’ बालकों! तुमने ठीक समझा है।