जिस देश में किसी समय भू्रण हत्या को हत्या से भी ज्यादा अपराध समझा जाता था, उसी देश के शहरों में अब दीवारों पर २५ रूपयें में मशीन द्वारा गर्भपात के विज्ञापन देखने को मिलते है। इस समय देश में लगभग १६० केन्द्र हैं जहाँ प्रतिवर्ष लगभग एक हजार डाक्टरों को सही तरीके से गर्भ समाप्त करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग ४१ लाख महिलाएँ प्रतिवर्ष गर्भपात कराती हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार गांवों और शहरों दोनों में ही गर्भपात कराने वाली महिलाओं की संख्या करीब करीब बराबर ही है । इसी प्रकार विवाहित स्त्रियों और अविवाहित लड़कियां की संख्या में भी कोई ज्यादा अंतर नहीं है। आम बात है की गर्भपात की इच्छुक स्त्री पहले यह जानना चाहती है कि उसका होने वाला शिशु पुत्र है या पुत्री । पुत्र की कामना अभी भी इस देश में इतनी अधिक है कि अगर गर्भ में पल रहा शिशु पुत्र हो तो स्त्री गर्भपात नहीं कराती। (और पुत्री हो तो करा देती है) गर्भपात: अधमाधम नीच कृत्य !!! भारत अहिंसाप्रधान देश गिना जाता है । इस देश की धरती पर अगणित महान् आत्माओं का अवतरण हो चुका है, जिन्होंने समूचे विश्व को अहिंसा का संदेश दिया है। अहिंसा से ही व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और धर्म की उन्नती हो सकती है, हिंसा से कदापि नहीं। अहिंसा ही सुखी जीवन का श्रेष्ठ उपाय है, हिंसा से व्यक्ति कभी जीवन में सुख और शान्ति प्राप्त नहीं कर सकता है इस प्रकार की उद्घोषणाएँ भारत के पवित्र महापुरुषों ने सदा सर्वत्र की है। इस देश की सरकार यह कहते हुए गर्व लेती है कि हमने अहिंसा के बलबूते पर आजादी प्राप्त की है….. परन्तु अफसोस है कि आज इसी देश में हिंसा का तांडव चल रहा है। जिस देश में पशु—पक्षी तो क्या वनस्पति को काटने/ जंगल काटने में भी पाप गिना जाता था और आज भी गिनतें है, उसी देश में आज हिंसा का पिशाची राक्षस वनस्पति— हिंसा, पक्षी—हिंसा, जलचर— हिंसा, पशु— हिंसा से आगे बढ़ता हुआ मानषी—हिंसा तक पहुँच गया है। हिंसा का यह व्रूर दैत्य कहाँ जाकर विश्राम लेगा, कुछ नहीं कह सकते। आश्चर्य तो इस बात का है कि इस प्रकार को मानुषी/भू्रण हत्या कराने/ करने वाले को अपराधी गिनने के बजाय उसे इनाम दिया जाता है। देश में यह कैसी अराजकता /अव्यवस्था है कि जन्म लेने के बाद उस बालक की कोई हत्या कर दे तो उसे अपराधिक ठहराया जाता है और सको कानून की सहायता से भयंकर दंड दिया जाता है और दूसरी ओर वह बालक , जिसने अभी तक इस दुनिया को आंख खोलकर देखा भी नहीं है, जिसने किसी भी प्रकार का कोई अपराध नहीं किया है, उसे नुकीले हथियारों से खत्म कर दिया जाता है और फिर भी उस हत्यारें को सजा करने के बजाय पुरस्कार दिया जाता है, यह कैसा अंधा न्याय है।
जनसंख्या वृद्धि की रोकथाम के लिए प्राकृतिक नियम
ब्रह्मचर्य, इन्द्रिय—संयम आदि की घोर उपेक्षा कर जिन काले पापों को खुले आम प्रोत्साहन दिया जा रहा, इससे देश की प्रजा का कभी भी हित होने वाला नहीं है। जिन उपायों से देश की प्रजा की स्वास्थय हानि होती हो, प्रजा का नैतिक स्तर गिरता हो और आध्यात्मिक पतन होता हो, ऐसे नीच कृत्यों को कानून मान्यता देना प्रजा के साथ भयंकर छल है और इस प्रकार के कानून बनाने वाले प्रजा, राष्ट्र व धर्म के हितैषी नहीं, किन्तु दुश्मन हैं। प्रजा का नैतिक स्तर जितना ऊंचा होगा, देश की प्रजा उतनी की अधिक सुखी, समृद्ध व शान्त होगी— इस सनातन सत्य की उपेक्षा कर आज इस देश की सरकार द्वारा कीट— हिंसा, पशु— हिंसा, पक्षी—हिंसा, जलचर प्राणियों की हिंसा और आगे बढ़कर के गर्भ में पल रहे निर्दोष बालक की हत्या को जो प्रोत्साहन दिया जा रहा है, इससे देश की प्रजा का भविष्य अंधकारमय ही है। मात: वात्सल्य की मूर्ति का व्रूरता की ? गर्भ में नौ महीनों तक बालक का पालन पोषण करने की ताकत माता में ही रही हुई है। लग्न जीवन के स्वीकार के बाद स्त्री को सबसे अधिक प्रेम अपने पति पर होता है, परन्तु जब वह माता बनती है, तब उसका पति—प्रेम विभक्त हो जाता है। उसके हृदय में संतान के प्रति निष्काम प्रेम और वात्सल्य का झरना फूट निकलता।