जहाँ जैन एवं वैदिक शास्त्रों में सौभाग्यवती पतिव्रता नारी तथा कुमारी कन्याओं को महान् पवित्रता तथा व्यवहारिक मंगल का प्रतीक माना गया है, वहीं वैदिक पुराणों में भी नारी को देवी के रूप में स्वीकार किया गया है। मनुस्मृति में तो यहाँ तक कह दिया है कि- ‘‘एक आचार्य दस अध्यापकों से श्रेष्ठ हैं, एक पिता सौ आचार्यों से श्रेष्ठ है और एक माता एक हजार पिताओं से श्रेष्ठ है।’’ इतनी सारी विशेषताओं से समन्वित एक नारी अब अपनी स्वाभाविक ममता का गला घोंटकर गर्भपात जैसे व्रूर कर्म की ओर आगे बढ़ती है तब उसे वर्तमान युग में क्या संज्ञा प्रदान की जाए? इसके बारे में आप स्वयं चिंतन करें। आज विश्व में १० से १५ प्रतिशत विवाहित जोड़े सन्तानहीन हैं। विभिन्न सर्वेक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि सन्तानहीनता की यह व्याधि दिनों-दिन तेजी से बढ़ रही है तथा दूसरी ओर गर्भपात का प्रचलन भी तेजी से बढ़ रहा है जो धर्मप्रधान भारत देश के लिए सबसे अधिक विचारणीय विषय बन गया है। जैसे-जैसे विज्ञान प्रगति कर रहा है मानव के विचार व व्यवहार पतन की ओर अग्रसर हो रहे हैं। मानव मानव का भक्षक वैसे बन सकता है यह तथ्य गर्भपात करवाने की इच्छा से ही स्पष्ट हो जाता है। विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा एकत्रित किये गये आँकड़े इस बढ़ती महामारी का स्पष्ट प्रमाण हैं। डॉ. हिन्शा द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार पूरे विश्व में लगभग २.५ से ५ करोड़ तक गर्भपात प्रतिवर्ष किये जाते हैं। इससे स्पष्ट है कि पूरे राजस्थान राज्य की आबादी के बराबर मानव संख्या को प्रतिवर्ष मानव द्वारा ही मौत के घाट उतार दिया जाता है। इन २.५-५ करोड़ गर्भपातों में से केवल आधे ही कानूनी तरीके से सम्पन्न होते हैं, शेष के लिए घातक किस्म की गैर कानूनी विधियों को काम में लाया जाता है। एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार विश्वभर में गर्भधारण करने वाली महिलाओं में से २४.३२ प्रतिशत तक महिलाएँ गर्भपात करवाती हैं, अर्थात् एक तिहाई जिन्दगियाँ इस संसार में आने से पहले ही अपने ही माता-पिताओं द्वारा मौत के घाट उतार दी जाती हैं। वैसा घिनौना है यह व्यवहार अपनों का अपनों के प्रति, मानव का मानव के प्रति? उपरोक्त दिये गये आँकड़े पूर्व वर्षों के हैं जबकि यह समस्या दिनों-दिन विकरालरूप धारण करती जा रही है। ये आँकड़े स्पष्ट रूप से यह इंगित करते हैं कि मानवता को खतरा एटम-बम से नहीं है बल्कि गर्भपात के इस घिनौने कृत्य से है। मानवता के विनाशक इस पैशाचिक खतरे की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है, जो कि अंदर ही अंदर पैलकर मानव की मूलभूत विशेषताओं प्रेम, वात्सल्य व संरक्षण की भावनाओं को हिंसक प्रवृत्तियों में बदल रहा है। तथाकथित वैज्ञानिक प्रगति द्वारा कुछ औषधियाँ ऐसी इजाद की गई हैं कि उनका मुँह से सेवन कर स्वयं द्वारा गर्भ समापन किया जा सकता है। यह सब मानवता, नैतिकता, मर्यादा और पारस्परिक विश्वास के लिए जहर के समान है। अत: समय रहते विवेकशील व्यक्तियों को ऐसे कुकृत्य को इस विश्व से समाप्त करने का प्रण करना होगा।
गर्भ हत्या-मानव हत्या
आज विज्ञान ने भली-भांति सिद्ध कर दिया है कि गर्भ का जीव भी एक स्वतंत्र मानव-प्राणी है। गर्भधान के समय ही एक ऐसा भिन्न व्यक्तित्व उत्पन्न हो जाता है जिसमें अनेक वर्षों तक प्रगति करने की क्षमता होती है। उस व्यक्तित्व की ऊँचाई, बौद्धिक स्तर, चलने-बढ़ने का तरीका, खून की जाति आदि भी तभी निश्चित हो जाते हैं। प्रथम क्षण से ही उसकी विकास यात्रा प्रारंभ हो जाती है। यह उत्तरोत्तर विकास-क्रिया जीव के बिना असंभव है। जड़-पदार्थ से जीवन संभव नहीं।
गर्भ में मानव-जीव का स्वतंत्र विकास क्रम
गर्भाधान के पहले सप्ताह-में माता के गर्भाशय में नया जीव पैदा होकर विकसित होने लगता है।
दूसरा सप्ताह- माता द्वारा ग्रहण किये गये भोजन से नये जीव का पालन-पोषण होने लगता है।
तीसरा सप्ताह-आँखे, रीढ़, मस्तिष्क, पेफड़े, पेट, जिगर, नरवस-सिस्टम, आन्तें, गुर्दे आदि की निर्माण प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। अठारहवें दिन दिल की धड़कन प्रारंभ हो जाती है।
चौथा सप्ताह-सिर बनने लगता है। रीढ़ की पूरी बनावट-सुषुम्ना बनकर पूरी हो जाती है। हाथ-पैर बनने लगते हैं। दिल की धड़कन बराबर जारी।
पाँचवां सप्ताह- छाती और पेट तैयार होकर एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं। सिर, आँखें, आँखों पर लैंस और दृष्टिपटल आ जाता है। कान बन जाते हैं। हाथों और पैरों पर उंगलियाँ पूटने लगती हैं।
छठा और सातवाँ सप्ताह- बच्चे के शरीर के सब अंग-सिर, चेहरा, मुँह, जीभ आदि बनकर तैयार हो जाते हैं। बच्चे के लिंग का पता लग सकता है। वह अपने अंग हाथ-पाँव हिला सकता है। गुदगुदाने से बच्चे में प्रतिक्रिया होती है।
आठवाँ सप्ताह- बच्चा स्पर्श व दर्द का अनुभव करने लगता है। मुट्ठी बंद कर सकता है। अंगूठा चूस सकता है। तैरने की मुद्रा में हिलता है। जागने व सोने की क्रिया करने लगता है। किसी वस्तु को छुआए जाने पर उससे बचने का प्रयत्न करता है। उसके दिल की धड़कन अल्ट्रासोनिक स्टेथोस्कोप पर सुनी जा सकती है। उसके अंगूठे की छाप वैसी हो जाती है जैसी उसकी ८० वर्ष की उम्र में होगी। मस्तिष्क की लहरों और तरंगों को मापा जा सकता है।
ग्यारहवाँ-बारहवाँ सप्ताह- शरीर के सभी तंत्र चालू। नसों व मांसपेशियों में सामंजस्य स्थापित होता है। उंगलियों पर नाखून उगने लगते हैं। इन तीन महीनों में बच्चे का पूरा गठन हो जाता है, इसके बाद नौ मास तक लगातार बढ़ता रहता है। फिर उसका जन्म होता है।
गर्भ के बच्चे को मारने के ४ तरीके
चूषण पद्धति पम्पिंग मशीन द्वारा गर्भ के बच्चे के टुकड़े-टुकड़े करके कूड़ा-करकट की तरह बाहर खींच लिया जाता है। फैलाव व निष्कासन विधि इसमें गर्भाशय के मुँह को खोलकर गर्भ के बच्चे को चाक़ू जैसे तेजधार वाले शस्त्र से टुकड़े-टुकड़े करके बाहर फेंक दिया जाता है। जहरीली क्षार वाली पद्धति एक लम्बी मोटी सुई गर्भाशय में भोंक दी जाती है, उसमें पिचकारी की सहायता से नमक का क्षारवाला जहरीला पानी छोड़ दिया जाता है। चारों ओर से घिरा बालक वह जहरीला पानी निगल जाता है। वह जहर खाए व्यक्ति की तरह तड़पने लगता है और घुट-घुटकर वहीं दम तोड़ देता है। फिर उसे गर्भ से बाहर निकाल लिया जाता है। ऑपरेशन (चीरफाड़ विधि) ऑपरेशन विधि द्वारा पेट को चीरकर बच्चे को जिंदा ही बाहर निकाल लिया जाता है, फिर उसे आग में जलाकर मार दिया जाता है या उबलते पानी में डुबोकर मार दिया जाता है। ज्ञातव्य है कि भारत में प्रतिवर्ष लाखों गर्भ हत्याएँ हो रही हैं। यह संख्या दिन-दूनी रात चौगुनी से बढ़ रही है। गर्भ हत्या के कारण भारत में प्रतिवर्ष लाखों स्त्रियों की मौत हो जाती है। दिन – प्रतिदिन इस संख्या में भारी वृद्धि हो रही है। लाखों स्त्रियाँ जीवनभर गर्भपात के कारण भयंकर पीड़ा सहती हैं। शरीर रोगों का घर बन जाता है। सम्पूर्ण परिवार दु:खी रहता है । घर नरक बन जाता है । गर्भ हत्या के कारण प्राय: स्त्रियाँ बाँझ बन जाती हैं, कारण निम्नलिखित हैं- रोग संक्रमण गर्भपात के दौरान गर्भस्थ शिशु के शरीर का कोई कटा-फटा अंग या भाग-गर्भाशय में बचा रह जाने के कारण या ऑपरेशन के समय कोई अन्य कमी रह जाने के कारण ट्यूबल इन्पैक्शन हो सकता है और स्त्री बांझ बन जाती है। गर्भाशय में छेद होना -गर्भपात के लिए प्रयोग किये गये औजार से बच्चेदानी में छेद हो सकता है और परिणामस्वरूप उसे निकालना भी पड़ सकता है और इस तरह स्त्री हमेशा के लिए बांझ बन जाती है। गर्भ हत्या पर बनी सच्ची फिल्म-एग्तहू एम्र्स् में १० सप्ताह की गर्भस्थ बच्ची की मौत की भयानक चीख से सारा विश्व रो उठा-वर्ष १९८४ में ‘नेशनल राईट्स टू लाईफ कन्वैन्शन’ कनाटसिटी, मिसौरी में हुआ था। इसमें एक प्रतिनिधि के द्वारा एक गर्भपात पर बनाई गई अल्ट्रासाउण्ड मूवी का जो विवरण दिया था, उसका संक्षेप मात्र ही यहाँ दिया जाता है। (उन्हीं के शब्दों में) गर्भ की यह बच्ची अभी १० सप्ताह की थी। काफी चुस्त थी। अपनी माँ की कोख में खेलते, करवट बदलते और अंगूठा चूसते हुए हम उसे देख रहे थे। उसके दिल की धड़कन १२० की साधारण गति से धड़क रही थी। सब कुछ बिल्कुल सामान्य था परन्तु हमें तो गर्भहत्या पर वास्तविक फिल्म बनाने के लिए अब उसकी हत्या करनी जरूरी थी। अब हम उस बच्ची को माँ के गर्भ से बाहर निकालने के लिए सक्शन पम्प द्वारा उसके टुकड़े-टुकड़े करने में जुटे। सक्शन पम्प द्वारा गर्भस्थ बच्ची की हत्या जैसे ही सक्शन पम्प, उस नन्ही-मुन्नी प्यारी-प्यारी मासूम-गुड़िया सी बच्ची के टुकड़े-टुकड़े करने उस बच्ची की ओर बढ़ा, बच्ची बुरी तरह से डर गई। उसके दिल की धड़कन २०० तक पहुँच गई। वह बच्ची पीड़ा व दर्द के मारे छटपटाती हुई, कराहती हुई, सिकुड़-सिकुड़कर इधर-उधर घूम-घूमकर तड़फती हुई उस औजार से बचने का प्रयत्न करने लगी। आखिर उस बच्ची ने मुँह खोलकर जोर से चीखने का प्रयत्न किया, जिसे Dr.Nathanson द्वारा Silent Scream ‘मूक चीख’ के नाम से पुकारा। अन्त में उस पम्प ने अपना काम शुरू कर दिया और उस मासूम बच्ची के हाथ, पैर, पेट, छाती, मुँह तथा सिर आदि के टुकड़े-टुकड़े करके गर्भ से बाहर फैक दिये। चारों ओर खून ही खून फैल गया। यह दृश्य इतना भयानक, वीभत्स और घृणित था कि यदि कोई गर्भ हत्या करने वाला भी देख ले तो उसके भी दिल के टुकड़े-टुकड़े हो जाएं और वह कभी भी गर्भहत्या करने का साहस न करे। इस ‘गर्भपात फिल्म’ के निर्माता डॉ. नैथान्सन ने जब फिल्म को स्वयं देखा और जैसे ही उस बच्ची के टुकड़े-टुकड़े होते देखे और उस प्यारी बच्ची की दर्दभरी चीत्कार सुनी तो उनके दिल पर उस समय इतना जबर्दस्त वङ्कापात हुआ कि वे हमेशा के लिए अपना क्लीनिक छोड़कर तुरंत भाग गए तथा फिर वे कभी वापिस नहीं आए।
१६ सप्ताह तक के भ्रूण में जीव नही होता, वह तो सिर्प माँस का निर्जीव लोथड़ा (पिण्ड) मात्र ही है, यह वैज्ञानिक मान्यता इस फिल्म द्वारा बिल्कुल झूठी साबित हुई। हर गर्भपात में जीव हत्या अनिवार्यरूप से होती ही है। गर्भपात से पुरुष-स्त्री का अनुपात बिगड़ गया गर्भ में लड़कियों को ही मारने के कारण अब देशमें प्रति हजार पुरुषों के पीछे ९१० स्त्रियों की संख्या रह गई है। हरियाणा में तो १९९१ की जनगणना के अनुसार महिलाओं का अनुपात प्रति हजार ८६५ था। यह संख्या दिन प्रतिदिन तेजी से घटती जा रही है, परिणामस्वरूप देशभर में अनाचार, व्यभिचार, बलात्कार, वेश्यागमन, बहुपतिप्रथा आदि को बढ़ावा मिलेगा। एड्स जैसी महामारी गंभीररूप से फैलेगी। देश व समाज की बर्बादी निश्चितरूप से हो जायेगी। अत: नरक का द्वार खोलने वाले इस महापाप से स्वयं को बचाना प्रत्येक श्रावक का पुनीत कर्तव्य है। सभी माता-बहनों को विशेषरूप से यह ध्यान रखना होगा कि हम कभी भी कृत-कारित-अनुमोदना किसी भी प्रकार से इस पाप को प्रश्रय नहीं दें क्योंकि आज का किया पाप निश्चितरूप से आज या कल हम ही को भोगना होगा। पंचेन्द्रिय जीव की संकल्पी हिंसा नरकों में ले जानी वाली है, जिससे हमें बचना ही है। कभी-कभी ऐसे सत्य उदाहरण भी देखे जाते हैं कि जिस गर्भस्थ शिशु को लड़की समझकर गर्भपात कराया जा रहा था और कदाचित् उसकी भ्रूणहत्या किसी कारण से नहीं की गई तो नवमास बाद उसने स्वस्थ पुत्र के रूप में जन्म लिया। इंदौर एवं इलाहाबाद के किन्हीं संभ्रान्त परिवारों से ये साक्षात् जानकारियाँ प्राप्त हुई हैं कि अल्ट्रासाउण्ड एवं सोनोग्रॉफी मशीन द्वारा बहू के गर्भ में बालिका भ्रूण जानकर भी घर के सास-ससुर ने भ्रूणहत्या करवाने का तीव्र विरोध किया अत: भ्रूणहत्या बच गई, पुन: ९ माह पश्चात् बहू ने स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। यहाँ यह विशेष ज्ञातव्य है कि मशीनों से किये गये निर्णय भी कदाचित् असत्य हो जाते हैं अत: अहिंसाप्रेमियों को मशीनों द्वारा भ्रूण परीक्षण नहीं कराना चाहिए। जो भी हो, संसार का सुख पुत्र या पुत्री पर नहीं वरन् अपने किये कर्मों के आश्रित है। पापकर्म के उदय से जीवन भर पालन-पोषण किया गया पुत्र भी वृद्धावस्था में दुत्कार देता है और पुण्यकर्म के उदय से परायी हुई बेटी भी तन-मन-धन से सेवा करती है, अत: कर्म सिद्धांत पर अटल विश्वास रखते हुए पुत्र-पुत्री पर समान स्नेह रखें एवं गर्भपात जैसे कुकृत्य को समाज से तिरोहित करने का संकल्प लें।