१. प.पू. आर्यिका गणिनी प्रमुख धर्मप्रभावक १०५ ज्ञानमती माताजी तीर्थक्षेत्र प्रणेता. २. झासीची राणी लक्ष्मीबाई. ३. श्रीमती प्रतिभाताई देविसिंह पाटील शेखावत (भूतपूर्व राष्ट्राध्यक्ष भारत सरकार.) ४. श्रीमती कल्पना चावला (सायंटिस्ट.) ५. श्रीमती लता मंगेशकर भारतरत्न गायिका. ६. स्व. श्रीमती राष्ट्रमाता इंदिराजी गांधी (भूतपूर्व प्रधानमंत्री भारत देश) ७. परम आदरणीय गरीबों की सेवक मसीहा मदर टरेसा. ८. भारत की शान व गौरव श्रीमती किरण बेदी भुतपूर्व आय.जी.पोलिस. एक महिला मेरे पास आई और रोने लगी। मैंने पूछा बहन क्यों रोती हो? पैसों की कमी है? बोली— नहीं महाराज, आपके आशीर्वाद से घर में समृद्धि है। मैंने पूछा— सास से तंग है ? बोली नहीं महाराज मां की तरह रखती है। मैंने पूछा —पति परेशान करता है ? बोली —नहीं महाराज, वह भी बहुत अच्छे हैं। मैने पूछा फिर क्यों रोती है ? बोली महाराज, कहना तो नहीं चाहिए फिर भी आपको अपना दर्द बयां कर रही हूं। महाराज, एक लड़की है बस मेरे लड़का नहीं है। आशीर्वाद दे दो। इंसान को देखो तो सही बिना वजह दुख मोल लेता है। मैंने कहा लड़का नहीं है तो दुखी क्यों होती है। मान्यवर आपसे भी कहता हूं यदि लड़का न हो तो कोई गम नहीं लेकिन यदि बेटी न हो तो उस बात का मलाल जरूर रखना। वह घर—घर नहीं जिसमें बेटी नहीं। बेटी घर, परिवार, वंश, समाज, राष्ट्र का गौरव है, सम्मान है, संस्कार है, मर्यादा है और समर्पण है। परिवार में बेटी जरूर होना चाहिए। जिसके पास बेटी नहीं उसके पास दिल नहीं होता। लड़की हो तो घर उत्सव बन जाता है। बेटी होने पर सवेदनाएं जगती हैं और बेटी होने पर इंसान को इंसान बनाती है। पिता की अकड़ तोड़ देती है, अहंकार मिटा देती है, वह झुकना सिखाती है। महिला बोली महाराज, आपकी बात बिलकुल सही है । लड़की घर की लक्ष्मी है फिर भी । बस यही आकर कचरा हो जाता है। जीवन में किन्तु, परंतु लेकिन, मगर, काश, यदि , फिर भी इन शब्दों के कारण हो सब होते हुए भी अभाव हमें घेर लेते हैं और यह शब्द जीवन की रौनक लील जाते है। कई लोग कहते हैं कि महाराज इच्छा तो होती है बहुत कुछ करें मगर। यहाँ आकर अपनी लाचारी नहीं जताते बल्कि खुशियों का गला घोंट देते हैं। महिला कहने लगी—महाराज यह सब तो ठीक है फिर भी वंश का अंश तो चाहिए न ?
औलाद से ही नहीं चलता वंश
मैं कहता हूँ कि जरूरी नहीं है कि लड़के से ही वंश चले। जिसे तुम कुल का दीपक मानकर चल रहे हो वह भविष्य में कुल का अंगार भी हो सकता है। क्या बिना लड़के के वंश नहीं चलेगा। मैं तुमसे पूछता हूं — भगवान महावीर की कितनी संताने थी ? कोई संतान नहीं। आचार्य कुंद्कुंद, स्वामी विवेका नंद, संत बिनोबा भावे, आचार्य शांतिसागर महाराज, इनमें से किनके कितनी संताने थी ? किसी के भी एक भी नहीं लेकिन २६०० वर्ष बाद भी भगवान महावीर स्वामी का वंश तुम्हारे सामने बैठा है। तुम गर्व से कहते हो हम महावीर के वंशज है। ध्यान रखना, धृतराष्ट्र के सौ बेटे थे फिर भी कौन सा वंश चला। रावण के एक लाख पुत्र थे, कौन सा वंश चला ? औलाद से वंश नहीं चलता। वंश के लिए संतान नहीं चरित्र , तप और साधना चाहिए। वंशवृद्धि के लिए संतान की नहीं परमहंस बनने की आवश्यकता होती है । हमारी समाधि के बाद कोई और मुनि बन जाएगा और हमारा वंश चलेगा। बेटा नहीं है तो वंश नहीं चलेगा, यह सोच निकाल बाहर करो जहन से। धृतराष्ट्र ने सौ पुत्रों को जन्म दिया था, पता नहीं क्या हश्र हुआ पुरे कुरु वंश का ? इसके ठीक विपरीत एक जनक दुलारी सीता सती, मैना सुंदरी, अंजना जैसी महान नारियों ने एक नहीं दो वंश का नाम रोशन कर दिया। ज्ञानमति माताजी, विशुद्धमति, सुपाश्र्वमति बनकर पूरे विश्व में हिंदुस्तान की संस्कृति को अमर बना रही है। बेटा तो एक कुल को रोशन करता है । बेटी दो कुलों को रोशन करती है। इसलिए मैं कहता हूं कि घाटा बेटे से है बेटी से नहीं और बेटा एक कुल को भी रोशन कर दे, इसकी कोई गारंटी नहीं। मरने के बाद जब तुम्हारी पार्थिव देह अग्नि को समर्पित होगी न, तुम्हारा बेटा ही तुम्हारी खोपड़ी फोडेगा। बेटियां बड़ी महान होती है। कन्या को हर धर्म, संस्कृति और दर्शन में शुभ माना गया है वैदिक परम्परा में तो नवरात्रि के दिनों में कन्या को साक्षात शक्ति रूप में पूजा जाता है। बड़े से बड़े आयोजन और विराट मांगलिक कार्यक्रम में कन्या ही हाथ में मंगल कलश लिये खड़ी रहती है। कलश लिये खड़ी कन्या कार्य सिद्धि का द्योतक होता है। खुशी ही खुशी है, न गम का कोई मलाल मुझे बना दिया है तेरे प्यार ने, बेमिसाल कन्या का प्रात:काल दर्शन बड़ा ही शुभ माना जाता है। विराट शोभायात्रा में मंगल कलश लेकर कन्या ही तो चलती है। तीर्थंकर के अवतरण के समय सौधर्म इंद्र अष्ट कुमारिकाओं और छप्पन कुमारिकाओं को सेवा के लिए बुलाते हैं। किसी भी स्थान पर कभी किसी लड़के को मंगल कलश उठाए देखा ? ध्यान रखना , बाजार से खरीद कर लाया हुआ लोटा तब तक लोटा ही रहता है जब तक उस लोटे को कन्या का पवित्र हाथ स्पर्श नहीं करता। वह लोटा जब कन्या के मस्तक पर धारण हो जाता है तब वह लोटे से मंगल कलश हो जाता है। मुनि दीक्षा में चौक पूरन का काम किसी लड़के से नहीं कन्याओं से ही कराया जाता है, जैसे मंगल कलश नीचे नहीं रखा जाता, उसे पूजा स्थल पर ऊंचे स्थान पर रखते हैं । इसी प्रकार कन्याओं का स्थान भी ऊंचा और पवित्र है। मंगल कलश को लात मारना अपशगुन और पाप माना जाता है। इसलिए कन्याओं के साथ भी दुव्यवहार मत करों। प्रान्त बुंदेलखण्ड में बड़ी अनूठी और अनुकरणीय परम्परा है। बुंदेलखण्ड में माता—पिता , दादा दादी और उम्र में हरेक बड़ा छोटा इंसान कन्या को पांव नहीं छूने देता। बल्कि उम्र में बड़े लोग कन्या के पांव छूकर शुभकामनाएं लेते हैं। अमूमन सभी जातियों में यह परम्परा है। देव हत्या का पाप तुम्हारे माथे पर है। दूसरा पापशरणागत की हत्या की। वह नन्हा जीव तुम्हारी शरण में आया था शरण में आए को तो हम प्राणों से ज्यादा प्रेम और सम्मान देते हैं। पता नहीं तुम्हें रावण का राज्य छोड़कर श्रीराम की शरण में आए विभीषण को शत्रु का भाई होने के बावजूद श्रीराम ने शरणागत वत्सलता का परिचय देकर अपनाया था। तीसरा पाप एक दिन हीन अनाथ की हत्या का है। गर्भ में आया शिशु का इस संसार में कोई नहीं था। तुम्हारी कोख को उसने इसलिए चुना था कि तुम उसे सहारा दोगे और चौथा पाप अपने ही खून की हत्या करने का है। तुम्हारे हाथ किसी अपने के ही खून से रंगे है। रक्षक ही भक्षक बनने लगा है। कैसे पालक हो तुम कैसे रक्षक हो ? सारे पाप एक तरफ और अबोध बच्चे की हत्या का पाप एक तरफ कैसी माता हो तुम और कैसे पिता हो तुम ? वह अबोध और निरीह जीव न तो अदालत में जा सकता था न समाज से न्याय मांग सकता था। उस अनाथ को मां, पिता और डॉक्टर तीन ने मिलकर मार दिया। तुम तीनों ही हत्यारे हो। अरे डॉक्टर तुम ने तो किसी रूग्ण को जीवनदान देने की शपथ ली थी। कहां गई तुम्हारी वह सौगंध। डॉक्टर तो टूटती सांसों को जीवन दान दे दिया करता है। प्राण छूट रहे हो तो उसमें नवीन प्राणों का संचार कर दिया करता है। लेकिन तुमने तो चंद रूपयों की खातिर एक अबोध जीव को इस संसार में आने से पहले ही मौत के मुंह में धकेल दिया।
तसल्ली से तरस जाओगे
देश का हर एक डॉक्टर सुन ले गर्भपात से होने वाली खूनी निकम्मी कमाई से घर तो चल जाएगा लेकिन शांति नहीं मिलेगी। खून के पैसों से घर में गद्दे तो आ जायेंगे लेकिन रात की नींद नदारद हो जायेगी। घर में खाद्यान्न के भण्डार तो आ जाएंगे। लेकिन भूख को तरस जाओगे।उस अबोध की बद् दुवाओं से तबाह हो जाएगा जीवन तुम्हारा मुझ पुलकसागर के यह शब्द याद रखना। गर्भपात कराने वालों को बुढ़ापे में तुम्हारी ही औलाद तुम्हें धक्के मारकर बाहर निकाल देगी। मैं ऐसे कई डॉक्टरो को जानता हूँ जो इस तरह की काली करतूतों और पाप कर्मों से जुड़े रहे। वे बुढ़ापे में एक गिलास पानी को तरस गए थे। धक्के खाते रहे बुढ़ापे में सहारे के लिए। जितनी बेहरमी से गर्भ में आए शिशु को मारा जाता है उतनी बेरहमी से तो कसाई जानवर को भी नहीं काटता। और तो और जन्म देने वाली मां भी उसका व्रंदन नहीं सुनती गर्भपात के समय वह नन्हीं जान अपनी मां से गूहार लगाती है। मां मुझे जन्म लेने दो। मैं बड़े अरमान लेकर ऊँचे—ऊँचे सपने लेकर आयी हूँ । मेरी हत्या मत करवाओ। लेकिन उस ममता को ही उसकी धड़कन सुनाई नहीं देती तो कोई और क्या करे। मां ही हत्यारिन बन जाती है फिर वह अनाथ किससे शरण मांगे। लिपट जाता है वह गर्भाशय से। सोचता है किस निर्दयी हत्यारिन की गर्भ में आ गया वह तेजधार वाला चाकु। उसके शरीर में प्रवेश करता है और छोटा छेदन कर देता है उसका अंग—प्रत्यंग। वह तो सोच रहा था की उसकी मां उसके इन कोमल अंगों को चूमेगी। चूम—चूम कर उन्हें बड़ा करेगी। लेकिन वे अंग चाकु और चिकित्सकीय उपकरणो की नुकीली धार से टूकडे—टूकड़े हो जाते हैं उस नन्हीं जीव की काया खून से लतपथ हो जाती है। तड़पता है सिसकता है लाचार है कि भाग भी नहीं सकता। मां करूण पुकार नहीं सुनकर चट्टान हो जाती है। कहते हैं मां का दिल बड़ा मुलायम होता है लेकिन गर्भपात के समय यही मां वङ्का की छाती वाली हो जाती है कतरा—कतरा होकर बाहर आ जाता है । उसने तो सपना देखा था आंगन में किलकारियां भरने का लेकिन कसाई डॉक्टर की तेजधार वाले उपकरण उसकी बोटी—बोटी अलग कर देते है। हथौड़ी का प्रहार उसका विकसित हो रहा सिर फोड़ देता है। धड़कन थम जाती है और अस्तित्व मिट जाता है उन संभावनाओं, गुंजाइशों और अरमानों का जिनमें किसी दिग्गज जन प्रतिनिधि और बहुत बड़े चिंतक, कलाकार बनने के ख्वाब पल रहे थे। मान्यवर, इस दुष्कृत्य ने मां की कोख पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया।
ममत्व पर संदेह
उसके ममत्व पर संदेह उत्पन्न होने लगा है। गर्भपात का नरक ऐसा है जिसे देख मौत भी थरा जाए, चट्टान पिंघल उठे लेकिन मां, पिता और डॉक्टर का वङ्का जैसा मन नहीं पिघलता। अरे तुमसे अच्छी तो वह नागिन और कुतिया होती है जो कम से कम अपने बच्चों को जन्म देने के बाद उनका भक्षण करती है। तुम तो जन्म से पहले ही उसे खा गई। जैन दर्शन में सामाजिक रूप से एक परम्परा है जो आत्महत्या करता है, उस परिवार पर छह महिनें का पातक लगता है। पातकी को छह माह तक पूजा करने मुनियों को आहार देनें, इंद्र—इंद्राणी बनकर अनुष्ठान में भाग लेनें पर प्रतिबंध होता है। मरनें वाला मर ही जाता है लेकिन उसका परिवार शुभकर्म से वंचित हो जाता है। मैं कहता हूं कि जान बूझकर कराए गए गर्भपात के भी पातक की व्यवस्था समाज में होनी चाहिए और जीवन भर के लिए पातक लगाना चाहिए। जो बहू गर्भपात कराए और जो सास अथवा पति गर्भपात करानें के लिए मजबूर करें, उन्हें मुनियों को आहार देनें , भगवान की पूजा करने, यहां तक कि जिनवाणी को छूने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए ? तुम क्या समझते हो गर्भपात करवा कर तुमनें केवल एक बच्चे की हत्या की है। नहीं,तुमने सात जन्मों तक के लिए अपना काला अध्या लिख दिया है। गर्भपात कराने वाली नारी सात जन्म तक बाँझ रहती है। दूसरों की गोद में खेलते बच्चों को देखकर ललचाती रहती है। पति और डॉक्टर नपुंसक पर्याय में जन्म लेंगे। कैसी नारी हो, नारी होकर भी नारी को पैदा करना नहीं चाहती। जैसी करनी वैसा फल आज नहीं तो निश्चित कल। किसी से न डरो लेकिन अपने कर्मों से डरो। क्योंकि अच्छे हो या बुरे कर्म तो भगवान का भी पीछा नहीं छोड़ते। हो सकता है वह बड़ी होकर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल बनती या बड़ी होकर इंदिरा गांधी बनकर देश का नाम रोशन करती। वह त्रिशला, चंदनबाला और सीता बन सकती थी। ज्ञानमति, विशुद्धमति माताजी, सुर्पाश्वमति तथा साध्वी ऋतम्भरा बनकर देश को गौरवान्वित कर सकती थी। तुम पर एक बच्चे का नहीं साध्वी—हत्या का पाप लगता है। तुम्हें पता है मुनि और साध्वी — हत्या ब्रम्ह— हत्या के समान है। इस पाप का कोई प्रायश्चित नहीं। केवल एक ही परिणाम है और वह है नरक और पशू गति की प्राप्ति । गर्भपात करवाकर तुम लौकिक अदालत से बच सकते हो लेकिन धर्म की अदालत से नहीं बच पाओगे। अब तक जो परिभाषाएँ पढ़ी और समझी है उसमें मां की परिभाषा इस युग में तो देंखने को नहीं मिलती । लोग कई सवाल करते हैं—महाराज इस युग में महापुरूष और तीर्थंकर जन्म क्यों नहीं लेते ? मैं कहता हूं — मेरे भाई, महापुरूष, तीर्थंकर, नारायण, बलभद्र कैसे आएंगे वे भी अब नारी की कोख में आने से डरने लगे है। इसलिए कलयुग में तीर्थंकर और महापुरूष नहीं आता क्योंकि माता हो गई कुमाता। माता कौन होती है तुमने शिव पार्वती और गणेश कार्तिकेय की कथा सुनी होगी न ? सभी देवों में प्रथम पूज्य देवता के चयन के लिए एक परीक्षा का आयोजन किया। देवताओं से कहा गया कि जो भी देव समूचे ब्रम्हाण्ड की परिक्रमा करके पहले लौटेगा वह प्रथम पूज्य देवता होने का खिताब पाएगा। कार्तिकेय ने गणेश से कहा—भैया, तुम्हारा पत्ता तो कटा समझो। क्योंकि तुम्हारा वाहन चूहा है । और मेरा पंख पसार कर चंद घंटों में ब्रम्हाण्ड की परिक्रमा करके लौटने का सामथ्र्य रखने वाला मयूर। कार्तिकेय मयूरारूढ होकर निकल पडे ब्रम्हाण्ड परिक्रमा पर। इधर गणेश जी ने मां की परिक्रमा की ओर अंगुली से मां लिखकर उसके चारों और परिक्रमा करके माता पिता के चरण छूए। कार्तिकेय लौटे तो देखा कि माँ के पास गणेश पहले से खड़े हैं। कार्तिकेय ने पूछा —भैया , इस मंद गति वाले चूहे पर बैठकर तुम पहले कैसे आ गये। कहीं ऐसा तो नहीं , गये ही नहीं। गणेश मुस्काराए। उन्होंने कहा कि कार्तिकेय मां के चरणों से भी बड़ा कोई ब्रम्हाण्ड होता है। मैंने तो चंद मिनटों में मां के चरणों की परिक्रमा करके सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की परिक्रमा कर ली। उस दिन कार्तिकेय को लगा कि गणेश सचमुच विघ्नहर्ता और बु्द्धी विनायक है । ऐसी होती है मां। लेकिन तुम तो हत्यारिन हो। बाज आओ ऐसा पाप करने से। रात में खाना नहीं खाती, पानी छान कर पीती हो पानी के जीव दिखते है लेकिन तुम्हें गर्भ में पल रहा जीव नहीं दिखता। गर्भपात के समय कहां जाता है तुम्हारा धर्म। मां के आगे इस धरती पर कभी प्रश्न चिन्ह नहीं लगा। मैं पूछता हूं तुम्हें, किस बेटे के लिए बेटी को मार रहे हो ?