यह सही है कि अन्य जाने माने अल्पसंख्यक , समाजों की तुलना में जैन समाज शिक्षा , सम्पन्नता, उद्योग, तकनीक चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में अग्रणी है। हम देश की कुल टैक्स आय का २७% शिक्षा में ९५.९७% उद्योग धन्धों में २०% अंशदान करते है। किंतु जैन समाज का २०% ही स्वयं सम्पूर्ण Self Sufficient है शेष ६०ज्ञ् मध्यम वर्ग और २०% गरीबी रेखा के नीचे है। हमें उन पर भी ध्यान देना है। हम अपने लिये न सही पर शेष ८०% जैन भाइयों का भी ध्यान रखना है और जैन सिद्धान्त ‘‘परस्परोपग्रहो जीवानाम् ’’ का भी पालन करना है। ‘‘जैन’’ शब्द हमारे मन में एक गौरव की अनुभूति जागृत कर देता है। जैन अर्थात् प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के वंशज, जैन अर्थात भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र प्रथम चक्रवर्ती सम्राट भरत की संतान जिनके नाम पर हमारे देश का नामकरण ‘‘भारत’’ हुआ। प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ से लेकर भगवान महावीर तक के २४ तीर्थंकरों के जितेन्द्रियों के, जितात्मा, जग विजयी, केवल ज्ञानी सिद्ध महापुरूषों की सन्तानें हैं हम—
‘‘ जिसने रागद्वेष कामादिक जीते, सब जग जान लिया।
सब जीवों को मोक्ष मार्ग का निष्प्रह हो उपदेश दिया।।’’
जब हमें इस सत्य की इस तथ्य की अनुभूति होती है तो हमारा रोम—रोम पुलकित प्रपुâल्लित हो जाता है— हो जाना चाहिए किन्तु ऐसा नहीं होता— नहीं हो पाता, कारण वही—
जिसको न अपने देश पर , निज धर्म पर, अभिमान है।
वह नर नही नर पशु है तिर्यंच मृतक समान है।।
इस छोटे से लेख का उद्देश्य आपको किसी प्रकार से हतोत्साहित करना नहीं बल्कि आपमें एक जोश, एक जिद एक जनून पैदा करने की कोशिश है कि आप जैन हैं तो लोगों को बताएं उन्हें जानकारी होने दें कि आप जैन हैं, वही गौरवशाली जैन हैं जिसका वर्णन हमने ऊपर किया है। अभी हाल ही में २७ जनवरी २०१४ को भारत सरकार ने जैन समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित किया है। इस सन्दर्भ में यह बात और भी प्रासंगिक हो जाती है कि हमें सरकार ने एक अधिकार दिया है कि पूर्व घोषित मुस्लिम , ईसाइयों, सिक्खों, बौद्धों और पारसियों के समान अल्पसंख्यक समुदायों में हम जैन भी उन सुविधाओं का लाभ उठाए जिनके हम अधिकारी हैं। इस वैचारिक लड़ाई को जीतने में हमें ६४ वर्ष लगे। इसका एक सबसे बड़ा कारण है हम जैन समाज में ही मतभिन्नता होना। अपनी सही संख्या प्रकट नहीं कर पाना, साम्प्रदायिक विचारों में भिन्नता भी इस विलम्ब के अन्य कारण रहे हैं। खैर ‘‘देर आये दुरूस्त आये’’। कोई भी अधिकार तब तक नहीं मिलता जब तक कि हम अपना कर्तव्य पूरा न कर लें। इस विषय में भी यही स्थिति है। विगत बीस वर्षो से हमारे अखिल भारतीय जैन संगठन, हमारी पत्र—पत्रिकाएं सामाजिक नेतृत्व सभी बार बार भारत के जैन समाज से प्रार्थना करते आ रहे हैं। मेरा भी इस विषय में यह छठवां आलेख है कि हमारी संख्या देश की पूरी जनसंख्या के केवल ०.४ज्ञ् के बराबर बताई जा रही है अर्थात हम लगभग ४२२५००० जैन हैं किन्तु यह वास्तविक नहीं है। हमारी संख्या पचास लाख से कहीं अधिक है। आकड़ों के आईने में देखें तो महाराष्ट्र (१३ लाख) राजस्थान, (६.५ लाख) उत्तर प्रदेश (२ लाख) मध्यप्रदेश (५.५ लाख) गुजरात (५.२५ लाख) कर्नाटक (४ लाख) में यह संख्या ५ से १३ लाख तक है किन्तु यह संख्या सही नहीं है। उसका कारण है कि हम जैनों में केवल ४०% ही अपने नाम के आगे जैन लिखते हैं शेष ६०ज्ञ् अपने नाम के आगे अपनी उपजाति खंडेलवाल, पोरवाल, परवार, जैसवाल, गांव का नाम, व्यवसाय, उपाधि, चौधरी, सिंघई आदि लिखते हैं। एक पत्रिका के अनुसार जैनों के १४५ भेद प्रभेद है। जनगणना के समय हम पिछले तीन बार से पत्र पत्रिकाओं में पर्चों द्वारा सामाजिक उत्सवों में, सभाओं में निवेदन करते आ रहे हैं कि ‘‘ १० वें कालम में अपनी जाति ‘‘जैन’’ लिखाएं’’ महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में तो प्राय: सभी जैन बन्धु अपने नाम के आगे जैन न लिखकर अपना उपनाम ही लिखते हैं। नाम में बड़ा आकर्षण होता है। नाम हमारी पहचान है हमारे व्यक्तित्व का आइना है । किन्तु हम यह नहीं कहते कि आप अपने नाम में अपनी उपजाति या उपाधि नहीं लिखें। हमारा निवेदन तो यही है कि आप अपनी उपाधि उपजाति के बाद या पहले ‘‘जैन’’ अवश्य लिखें जैसे दीपक कुमार सेठी जैन, रमेश चन्द्र मनयां जैन, कैलाश चन्देरी जैन, बाबू लाल जैन सिंघई बस इतने से ही आपकी संख्या की वास्तविक तस्वीर उभर कर सामने आ जायेगी। उदाहरण के लिए नीचे देश के प्रख्यात व्यक्तियों के नाम दिये गये हैं— प्रसिद्ध परमाणु वैज्ञानिक डा़ विक्रम सारा भाई, प्रसिद्ध विधिवेत्ता और सांसद डा़ लक्ष्मी मल्ल सिंघवी, प्रसिद्ध फिल्म निर्माता निर्देशक श्री वी शान्ता राम, प्रसिद्ध एक्टिविस्ट श्री भानुराव पाटिल, श्री अभिषेक मनु सिंघवी, प्रसिद्ध उद्योगपति श्री अजित गुलाब चन्द्र , श्री गौतम अडाणी, प्रसिद्ध फिल्म निर्माता निर्देशक श्री संजय लीला भंसाली, प्रसिद्ध उद्योगपति लाल चन्द्र हीरा चन्द्र और हजारों ऐसे नाम जिन पर आप गर्व कर सकते हैं कि वे जैन हैं। भगवान महावीर के अनुयायी देश के गौरव जैन समाज के रत्न हैं किन्तु हम अपनी जरा सी अन्यमनस्कता, उपेक्षा भाव, नाम की महत्ता को उचित सम्मान न देने के कारण देश के मान चित्र में अपनी वास्तविक उपस्थिति दर्ज कराने से चूक जाते हैं। यह सही है कि अन्य जाने माने अल्पसंख्यक समाजों की तुलना में जैन समाज शिक्षा, सम्पन्नता, उद्योग, तकनीक चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में अग्रणी है। हम देश की कुल टैक्स आय का २७% शिक्षा में ९५. ९७% उद्योग धन्धों में २०% का अंशदान करते हैं किन्तु जैन समाज का २०% भाग ही स्वयं सम्पूर्ण Self Sufficient है शेष ६०% मध्यम वर्ग और २०% गरीबी रेखा के नीचे है। हमें उन पर भी ध्यान देना है। हम अपने लिये न सही पर शेष ८०% जैन भाइयों का भी ध्यान रखना है और जैन सिद्धान्त ‘‘परस्परोपग्रहो जीवानाम् ’’ का भी पालन करना है।