रेवाड़ी कलां हरियाणा राज्य के मेवात जिले के फिरोजपुर झिरका तहसील का एक गांव है। यह दिल्ली से ८० किलोमीटर दूर अलवर सोहना रोड़ पर है। इस गांव में ३७० घर हैं। १५२ परिवार गरीबी रेखा से नीचे बसर कर रहे हैं। कृषि लगभग ९५ प्रतिशत लोगों की मुख्य जीविका है। जमीन व साधन—संसाधन कम हैं तो इसके चलते यहां गरीबी और अपराध भी पांव पसारे हुए हैं। लेकिन,सौभाग्य से पिछले चार—पाच वर्षों से कुछ लोगों ने इस गांव की तकदीर पलटने का बीड़ा उठा लिया है। ह्यूमन चैरिटेबल ट्रस्ट ऐसी गतिविधियों में आगे आया है। दक्षिणी दिल्ली के सेवानिवृत्त सम्पन्न वयोवृद्ध (जिन्हें अपने आपको जवान कहना बहुत सुहाता है।) ने इस गांव को रोल मॉडल बनाने का निश्चय किया है। वे प्रति परिवार की आय कम से कम ६०००—७००० करना चाहते हैं। और वह भी गोपालन के द्वारा। वे इसके लिए आर्थिक सहायता भी देते हैं। उन्होंने गौघर हेतु २० लाख रूपये और ५० दुधारू गायें दी हैं। इनमें से १२ गायें बछड़े—बछिया दे चुकी हैं। प्रत्येक गाय लगभग ९-१० किलो दूध देती है। संस्था के अध्यक्ष एन.पी.थरेजा कहते हैं— ‘गोदुग्ध से आर्थिक सम्पन्नता के साथ—साथ गांव के कुपोषण की समस्या भी दूर होगी। हमारा लक्ष्य प्रत्येक घर में दो —दो गायें प्रदान करना है, साथ ही इन्हें आर्गेनिक फार्मिंग की ओर प्रेरित करना है। हाल ही में हमने यहाँ स्कूल खोला है। हम दंग हैं कि पहले दिन पांच सौ एडमिशन हो गए। हम ग्रास रूट पर काम करके प्रसन्न तथा संतुष्ट हैं। हम ‘पॉवर थ्रू काऊ पॉवर’ प्रोजेक्ट की सफलता पर नाज करते हैं। परिवार राधा, अनुराधा, शशि जैसी तमाम गायों की परवरिश जिस प्यार से कर रहे हैं वह देखने वाली चीज है। पूसा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रमाश्रय कहते हैं—‘ पशुपालन इस गांव में ही नहीं, किसी भी गांव के लिए सर्वोत्तम कृषि व सम्पन्नता का आधार है। इससे बिना रासायनिक खाद के कम खर्च में, बल्कि बिना खाद—पोषण के खर्च के अच्छी खेती की जा सकती है। गोमूत्र व गोबर की खाद से खेती के उत्पाद स्वाभाविक रूप से पोषणसम्पन्न रहते हैं और कीट—खरपतवार की समस्या कम रहती है। यदि ये लोग हमारे एक्सटेंशन विभाग में संपर्क करें तो इन्हें गोबर गैस से र्इंधन , बिजली जैसे अन्य बेहतरीन विकल्पों के बारे में भी जानकारी , प्रशिक्षण आदि का अवसर मिल सकता है। जब कोई उठता है तो दस मददगार भी उसके लिए आ जाते हैं। सोशल एक्टिविस्ट श्रीमती अनुराधा मोदी भी इस गांव का भ्रमण करके उत्साहित हैं। वे यहां के लोगों को गोबर की धूपबत्ती अन्य वस्तुएं गोमूत्र से अर्क एवं अन्य उत्पाद बनाना सिखाने एवं उनकी मार्केटिंग में मदद करने के लिए उत्सुक हैं। प्रख्यात कोऑपरेटिव विशेषज्ञा श्रीमती लाली आर.प्रसाद (पूर्व मंत्री) बंगलौर से इस गांव में आयीं। वे कहती हैं—मैं वहां के लोगों से मिलकर चकित रह गई, खासतौर पर महिलाओं से। बच्चों और स्त्रियों की गरीबी व स्वास्थ्य समस्याओं को देखकर दुख होता है।’ वे कहती हैं—‘कोऑपरेटिव का० क,ख, भी समझने की स्थिति में ये लोग नहीं हैं। इसके लिए पहले इन्हें और बहुत सी चीजें जाननी समझनी होगी। मैं उसके लिये फिर आऊँगीं। हां, पशुपालन का हुनर इन्हें ठीक से सिखाया जाए तो ये डेरी व फार्मिंग से अच्छा कमा सकती हैं। अच्छी बात है कि अभी तक कुछ कानफिडेंस इनमें आना शुरु हुआ है। गायों के साथ इनका और इनके साथ—साथ बछड़ों का प्यार भरा व्यवहार देखकर बहुत अच्छा लगता है। गाय वैदिक युग से कृषि — व्यवस्था का आधार हैं। इन्होंने ये मजबूत आधार पकड़ लिया है तो यकीनन इन्हें मजबूती मिल ही रही है, अभी कुछ लोगों की हालत सुधरी है तो उम्मीद है कि यह ‘कुछ’ बहुत जल्दी ’बहुत कुछ’ तक पहुँचेगा। मैंने इस गांव का भ्रमण किया यहां के उत्साही युवाओं से भी मिली। हसीन खान ऐसे ही उत्साही युवा हैं। ये और उनके साथी कहते हैं—‘यहां कुछ समय पहले ढाई सौ (क्या आपको लगता है आपने गलत सुन लिया) में बाईक मिल सकती थी…. चोरी—लूट यहां आम बात थी, पर अब लोग पढ़ना व कुछ करना चाहते हैं। हसीन खान आई.ए.एस. की तैयारी कर रहे हैं और उत्साही युवाओं की टीम तैयार कर रहे हैं। उनकी पत्नी तबस्सुम भी महिला सशक्तीकरण के लिए आगे आयी हैं। वे प्राइमरी स्कूल का जिम्मा संभाल रही हैं। ‘जो जल्दी ही यहां से शुरू किया जा रहा है। वैसे हम अपने आसपास सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें तो कई गोपालक मुस्लिम मिलेंगे। कोठी गणेशपुर (गोलागोकर्ण नाथ, बरेली, उत्तर प्रदेश) के हुसैन पहले लोगों के खेतों में मजदूरी करते थे। अब वे अपना ही काम करते हैं। उनके पास गाय और बछड़ा हैं। उन्हें और उनकी बेगम को पूरा यकीन है कि जब एक गाय ने उनकी आर्थिक हालत इतनी सुधारी दी तो और गायें रखने पर उनकी हालत जरूर काफी अच्छी हो जायेगी। दर असल , वैज्ञानिक ज्ञान के प्रति इनकी ललक देखकर लगता है कि देश में गोबर गैस प्लांट और पशु प्रबंधन विषयक प्रशिक्षक एवं प्रशिक्षण आसान स्तर पर उपलब्ध हों तो आर्थिक स्तर पर क्रांति हो सकती है। गोबर से बनी गैस से उनकी घर की बिजली जल सकती हैं, चूल्हा जल सकता है और सूरज की धूप से चक्की और लाइटें चल सकती हैं। मालेगांव महाराष्ट्र के शब्बीर अहमद के गोपालन को लोग अभी भी याद करते हैं। मौलाना बहीदुद्दीन खान कहते हैं— ‘ मैंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मदरसे में पाई । वहां उर्दू में गाय पर एक कविता पढ़ाई जाती थी—
रब की हम दो सना कर भाई। जिसने ऐसी गाय बनाई….।
कल जो घास चरी थी वन में। दूध बनी वह गाय के थन में…..।
इस कविता की पहली लाइन मेरे लिए भारतीय संस्कृति का पहला परिचय थी। इसी कवितास के माध्यम से मैंने यह जाना कि गाय को हमने इसीलिए मुकद्दर माना, क्योंकि यह भारतीय संस्कृति की प्रतिनिधि है। गाय को लोग घास देते हैं वह उन्हें दूध देती है यानि गाय में नॉन मिल्क को मिल्क में बदल देने की ताकत है। यह बहुत बड़ी देन है। इंसान को दुनिया में इस तरह रहना चाहिए। दूसरे लोग उसके प्रति बुरा बर्ताव करें तो भी वह अच्छा बर्ताव करे। गाय और भारतीय संस्कृति के इस संबंध को मौलाना वहीदुद्दीन खान ने बहुत हृदयास्पर्शी ढंग से समझा दिया है। हकीम अजमल खां का कहना है— ‘ न तो कुरान न अरब की प्रथा ही गौ की कुर्बानी का समर्थन करती है।’ इस्लामी अध्येता स्पष्ट कहते हैं कि इस्लाम में गौवध वर्जित है । यहां तक कि ऐसा करने वाला सुन्नत खुदा और सुन्नत इब्राहीमी की खुली खिलाफत करता है। इस्लाम इब्राहीम अपनी पुस्तक जादुल आदके सफा ३७ में बताते हैं कि रसूल अकरम गिजा (भोजन) में कभी भी गाय के गोश्त का इस्तेमाल नहीं करते थे। उनके इतिहासकारों ने भी इसका समर्थन किया है। मेजर चाल्र्स स्टुअर्ट ने बादशाह हमायूं के खास नौकर जौहर के फारसी संस्मरणों का अंग्रेजी में तर्जुमा किया। यह १९०४ में छपा। इसमें पृष्ठ ११० पर इस संस्मरण का उल्लेख है। एक बार ईरान जाते समय बादशाह हमायूं को दिन भर कुछ भी खाने का अवसर नहीं मिला। रात को कुछ खाद्य पदार्थ मिले। उन्होंने पूछा तो ज्ञात हुआ ये गोमांस के पदार्थ हैं। उन्होंने भोजन लाने वाले से कहा— पेट भरने का तेरा यही रास्ता है ?…. हमारे पिता की कब्र को झाड़ने —बुहारने वालों तक के लिए गोमांस खाना अनुचित है … बादशाह उस दिन भूखे ही रहे और सिर्फ शरबत पीकर सो गए। यही नहीं , दिल्ली पहुँचकर उन्होंने गोहत्या के खिलाफ बहुत लंबा फरमान जारी किया। अकबर ने गोवध पर तो पाबंदी रखी ही, साथ ही सप्ताह में दो दिन पशुवध भी बंद करवा दिया। जहांगीर ने इसमें एक दिन और बढ़ा दिया। शाहजहां और औरंगजेब के समय भी यह प्रथा जारी रही। बहादुरशाह जफर ने भी गोहत्या बंदी पर फरमान जारी किया। गाय भारतीय संस्कृति का आधार है। अति मशीनीकरण एवं यंत्रीकरण से भले ही यह बात नई संस्कृति को प्रत्यक्ष न दिखती हो, पर थोड़ा —सा विचार करने पर अनुभव होने लगती है। दिल्ली मंडल हाऊस मस्जिद के बड़े इमाम कहते हैं— ‘ बड़े ही दुख की बात है कि हमारे देश में मछली का बोर्ड, बकरी का बोर्ड और अनेक बोर्ड हैं, पर गाय का कोई बोर्ड नहीं है, पहले सभी घरों में गाय के लिए पहली रोटी बनाई जाती थी। अब गाय दिखती ही नहीं। लोग चाहकर भी ऐसा नहीं कर पात्।।’ प्रख्यात प्रकृति विज्ञानी संसारचंद्र कहते हैं—’ गाय का महत्व उसकी उपयोगिता के कारण रहा। उसे धर्म से जोड़ना न केवल उसके लिए , बल्कि हमारे लिए भी नुकसानदायक रहा। आज गाय और उसका दूध गूलर के फूल से होते जा रहे हैं।