प्रस्तुति- बाल ब्र० कु० बीना दीदी ( संघस्थ गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी)
प्रश्न १. गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर—मोह और योग के निमित्त से होने वाले आत्मा के अन्तरंग परिणामों को गुणस्थान कहते हैं। गुणस्थान आत्मविकास का दिग्दर्शक हैं। यह एक प्रकार का थर्मामीटर है। जैसे ज्वाराक्रान्त रोगी का तापमान थर्मामीटर व्दारा मापा जाता है, उसी प्रकार आत्मा का आध्यात्मिक विकास या पतन गुणस्थान रूपी थर्मामीटर व्दारा मापा जाता है।
प्रश्न २. गुणस्थान कितने होते हैं ?
उत्तर—गुणस्थान चौदह होते हैं जो निम्न हैं— मिथ्यात्व # सासादन मिश्र या सम्यग्मिथ्यात्व अविरत सम्यक्त्व देशविरत या संयमासंयम प्रमत्तसंयत अप्रमत्तसंयत अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण # सूक्ष्मसांपराय # उपशांतमोह # क्षीणमोह # सयोगकेवली # अयोगकेवली।
प्रश्न ३. मोह और योग के निमित्त से कौन—कौन से गुणस्थान होते हैं ?
उत्तर—प्रारम्भ के चार गुणस्थान दर्शनमोहनीय के निमित्त से होते हैं। पंचम से बारहवें तक के गुणस्थान चारित्रमोहनीय के निमित्त से होते हैं। तेरहवां और चौदहवां गुणस्थान योग के निमित्त से होता है।
प्रश्न ४. मिथ्यात्व गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर—मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से होने वाले अतत्त्व श्रद्धान रूप परिणाम को मिथ्यात्व गुणस्थान कहते हैं। मिथ्या अर्थात् विपरीत श्रद्धान से युक्त गुणस्थान को मिथ्यात्व गुणस्थान कहते हैं। मिथ्यादर्शन कर्म के उदय से यह गुणस्थान बनता है। इस गुणस्थान वाले जीव मिथ्यादृष्टि कहलाते हैं। जिस प्रकार पित्तज्वर वाले रोगी को मधुर औषधि भी कड़वी लगती है, उसी प्रकार इस गुणस्थान वाले जीव को तत्त्व की बात रुचिकर नहीं लगती।
प्रश्न ५. सासादन गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर—उपशम सम्यक्त्व के काल में कम से कम एक समय और अधिक से अधिक ६ आवली काल शेष रहने पर अनंतानुबंधी कषाय के उदय आने पर सम्यक्त्व से पतित होकर जब तक मिथ्यात्व गुणस्थान में नहीं आता तब तक सासादन गुणस्थान है। इसका समय अत्यल्प है।
प्रश्न ६. मिश्रगुणस्थान किसे कहते हैं, इस गुणस्थान की विशेषता क्या है ?
उत्तर—जिस गुणस्थान में श्रद्धान रूप और अश्रद्धानरूप अर्थात् मिश्र परिणाम युगपत् पाए जाएं उसे मिश्र गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान में मरण, आयुबंध नहीं होता। इस गुणस्थान वाला जीव संयम को भी प्राप्त नहीं होता।
प्रश्न ७. अविरत सम्यग्दृष्टि किसे कहते हैं ?
उत्तर—संयम रहित सम्यग्दृष्टि जीव असंयत अथवा अविरत सम्यग्दृष्टि कहलाता है। दर्शनमोह का उपशम होने से सम्यग्दृष्टि है किन्तु चारित्रमोह के उदय से चारित्र ग्रहण नहीं कर पा रहा है, अत: असंयत है। इसलिए अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान का नाम सार्थक है।
प्रश्न ८. देशविरत या संयमासंयम गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर—इस गुणस्थान में पाँचों पापों का स्थूल रूप से त्याग हो गया इसलिये देशविरत कहलाता है। अथवा त्रस जीवों के घात का त्यागी होने से संयम है किन्तु स्थावर जीवों के घात का त्याग न होने से असंयमी है। अत: संयमासंयम नाम सार्थक है।
प्रश्न ९. प्रमत्तसंयत गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर—जहाँ पर पाँचों पापों के पूर्ण अभाव होने से सकल संयम प्रकट हो गया है किन्तु संज्वलन कषाय का उदय होने से प्रमाद है। अत: प्रमत्तसंयत गुणस्थान सार्थक है।
प्रश्न १०. अप्रमत्तसंयत गुणस्थान किसे कहते हैं, इसके दो भेद कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—जहाँ संज्वलन कषाय का मंद उदय हो जाने से प्रमाद का भी अभाव हो गया, उसे अप्रमत्तसंयत गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान के दो भेद हैं। १. स्वस्थानअप्रमत्त—जो छटवें—सातवें गुणस्थान में विचरण करते रहते हैं। २. सातिशय अप्रमत्त—जो प्रमाद पर पूर्ण विजय प्राप्त करके श्रेणी चढ़ने के सम्मुख होते हैं।
प्रश्न ११. श्रेणी किसे कहते हैं और श्रेणी के कितने भेद हैं ?
उत्तर—जिस मार्ग पर आरुढ़ होकर चारित्रमोहनीय कर्म का उपशम अथवा क्षय किया जाता है, उसे श्रेणी कहते हैं। श्रेणी के दो भेद हैं। १. उपशम श्रेणी—चारित्रमोहनीय कर्म के उपशम के लिए किया जाने वाला आरोहण। इस श्रेणी के ८, ९, १०, ११ ये चार गुणस्थान होते हैं। इस श्रेणी वाला जीव नियम से ११ वें गुणस्थान से गिर जाता है। २. क्षपक श्रेणी—चारित्र मोहनीय के क्षय के लिए किया जाने वाला आरोहण। इस श्रेणी के ८, ९, १०, १२ ये चार गुणस्थान हैं। यह जीव नियम से केवलज्ञान पूर्णकर मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
प्रश्न १२. अपूर्वकरण गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिस गुणस्थान में आत्मा के अपूर्व—अपूर्व परिणाम उत्पन्न होते हैं, वह अपूर्वकरण गुणस्थान कहलाता है।
प्रश्न १३. अनिवृत्तिकरण गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर—एक समय में रहने वाले अनेक जीवों के परिणाम परस्पर में समान रहते हैं, उनमें भेद नहीं पाया जाता, उसे अनिवृत्तिकरण गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान में मोहनीयकर्म का स्थूल रूप से क्षय अथवा उपशम हो जाता है।
प्रश्न १४.सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिस गुणस्थान में संज्वलन लोभ कषाय का अत्यन्त सूक्ष्म सद्भाव रहता है, उसे सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान कहते हैं।
प्रश्न १५. उपशांत मोह गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिस गुणस्थान से समस्त मोहनीय कर्म का उपशम होता है, उसे उपशांत मोह गुणस्थान कहते हैं।
प्रश्न १६. क्षीणमोह गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिस गुणस्थान में मोहनीयकर्म का पूर्ण क्षय कर दिया जाता है, उसे क्षीणमोह गुणस्थान कहते हैं।
प्रश्न १७. सयोगकेवली गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर—चार घातिया कर्मों के क्षय से होने वाले अनंत चतुष्टय से युक्त अरिहंत परमात्मा केवली कहलाते हैं। इनके जब तक योग रहता है तब तक सयोग केवली कहलाते हैं।
प्रश्न १८. अयोगकेवली गुणस्थान किसे कहते हैं ?
उत्तर—योगातीत केवली को अयोगकेवली गुणस्थानवर्ती कहा जाता है। इसका समय ५ ह्रस्वस्वर (अ, इ, उ, ऋ, ऌ) के उच्चारण बराबर है।
प्रश्न १९. गुणस्थानों के आरोहण—अवरोहण की क्या व्यवस्था है ?
उत्तर—गुणस्थानों में उतार—चढ़ाव निम्न प्रकार होता है— क्र. गुणस्थान का नाम आरोहण अवरोहण १. मिथ्यात्व ३, ४, ५, ७ २. सासादन — १ ३. मिश्र ४ १ ४. अविरत सम्यग्दृष्टि ५, ७ ३, २, १ ५. संयमासंयम ७ ४, ३, २, १ ६. प्रमत्तविरत ७ ५, ४, ३, २, १ ७. अप्रमत्तविरत ८ ६ (मरण की अपेक्षा ४) ८. अपूर्वकरण ९ ७ (मरण की अपेक्षा ४) ९. अनिवृत्तिकरण १० ८ (मरण की अपेक्षा ४) १०. सूक्ष्मसांपराय ११ उपशमश्रेणी ९ (मरण की अपेक्षा ४)१२ क्षपक श्रेणी ११. उपशांत मोह १० (मरण की अपेक्षा ४) १२. क्षीणमोह १३ १३. सयोगकेवली १४ १४. अयोगकेवली मोक्ष
प्रश्न २०. कौन सी गति में कितने गुणस्थान होते हैं ?
उत्तर—नरक गति में १ से ४, तिर्यञ्चगति में १ से ५, देवगति में १ से ४ एवं मनुष्य गति में १ से १४।