लक्ष्मी के बिना भी रत्नाकर की गंभीरता तो वैसी ही बनी हुई है, किन्तु सागर को छोड़कर चली गई लक्ष्मी को कहाँ—कहाँ नहीं भटकना पड़ता ? ठाणेसु गुणा पथड़ा ठाणाणि, गुणेहिं पायडिज्जंति। सोहइ नयणेहिं मसी, मसीए सोहंति नयणाइं।।
गुणी में ही गुण शोभित होते हैं गौर गुणों से गुणी । जैसे आँखों में काजल शोभित होता है और काजल से आँख।