ये ज्ञानमती आर्यिका मेरी ही शिष्या हैं, इन्होंने घर छोड़ते समय जो पुरुषार्थ किया है, वह आज पुरुषों के लिए भी असंभव है। इनका स्वास्थ्य अस्वस्थ सुनकर मैं इन्हें शुभाशीर्वाद देने आया हूँ। अभी इन्होंने जो अष्टसहस्री ग्रंथ का अनुवाद किया है वह एक अभूतपूर्व कार्य किया है। ये जल्दी ही स्वास्थ्य लाभ करें, इनसे समाज को बहुत कुछ मिलने वाला है। इतनी सुयोग्य अपनी शिष्या को देखकर मेरा हृदय गद्गद हो जाता है।’’ ये नारी होकर इतना कार्य कर रही हैं, तो यदि पुरुष होतीं तब तो न जाने क्या कर डालतीं।