एक बार चतुर्विध संघ (मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका) सम्मेद शिखर जाते हुए ‘अंतिक’ नामक ग्राम से निकला। उस समय नग्न मुनियों को देखकर सब लोग हँसने लगे और निन्दा करने लगे। एक कुम्भकार ने सबको हँसी करने से मना किया और संघ की स्तुति की।
कदाचित् गाँव में आग लगकर साठ हजार लोग सब एक साथ मरकर मुनियों की हँसी करने के फलस्वरूप कौड़ी पर्याय (दो इन्द्रिय) में उत्पन्न हो गये पुन: मरकर गिजाई हो गये। बहुत भवों तक एक साथ दु:ख भोगते-भोगते कदाचित् सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्र हो गये।
देखो बालकों! किसी की भी हँसी और निन्दा करना पाप है फिर मुनियों की निन्दा करना तो महापाप है।