== अपने मनोवांछित पदार्थ सिद्ध करने के लिए तथा इस लोकसंबंधी समस्त संशयरूप अंधकार का नाश करने के लिए एवं परलोक में सुख प्राप्त करने के लिए गुरु की सेवा सदा करते रहना चाहिए।’’ उत्तम, मध्यम, जघन्य कैसे ही मनुष्य हों परन्तु बिना गुरु के वे मनुष्य नहीं कहलाते, इसलिए प्रत्येक मनुष्य को सर्वोत्कृष्ट गुरु की सेवा अवश्य करते रहना चाहिए। ‘‘गुरभक्तिरूपी संयम से श्रावक घोर संसार समुद्र को पार कर लेते हैं और अष्ट कर्मों का छेदन कर देते हैं पुन: जन्म-मरण के दुःखों से छूट जाते हैं।’’