भारतवर्ष के भौतिकता में विख्यात मुम्बई महानगर के गुलाबवाड़ी मेंं स्थित श्री १००८ पार्श्वनाथ दि. जैन देरासर (मंदिर) की स्थापना वीर नि.सं. २३५०, ई.सन् १८२५ में हुई थी। यह मंदिर १७९ साल प्राचीन है और यहाँ की मूलनायक ९ नाग फणों वाली, संगमरमर की लगभग पौने दोफुट ऊँची, चमत्कारी मनभावनी प्रतिमा तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी की है, जो १०५ वर्ष प्राचीन है। इसके साथ ही वेदी में भगवान आदिनाथ जी, भगवान चन्द्रप्रभु जी, भगवान शांतिनाथ जी और भगवान पद्मप्रभु जी की संगमरमर की करीब सवाफुट ऊँची प्रतिमाओं के साथ-साथ अन्य अनेक प्रतिमाएँ अष्ट धातु की विराजमान हैं। इन धातु की प्रतिमाओं में एक चौबीसी की धातु की प्रतिमा ५२५ वर्ष प्राचीन है। वेदी के दोनों ओर अष्ट धातु के ही बड़े-बड़े पंचमेरु स्थापित किये गये हैं। वेदी में ऊपर चारों ओर तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के १० पूर्व भव दर्शाये गये हैं। वेदी के द्वार शुद्ध चाँदी के बने हुए हैं। द्वार के दायें-बायें क्षेत्रपाल पद्मावती विराजमान हैं। मुम्बई का यह प्रथम शिखरयुक्त प्राचीन मंदिर है। मंदिर तल मंजिल को मिलाकर चार मंजिल का बना हुआ है। तल मंजिल में चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की पौने दोफुट ऊँची प्रतिमा विराजमान है। इस तल मंजिल में मंदिर का कार्यालय है। मंदिर के मुख्य द्वार भी शुद्ध चाँदी के बने हुए हैं। प्रथम तल पर भगवान की वेदी और इस मुख्य वेदी से बार्इं ओर लगी हुई एक काँच की वेदी कहें या अलमारी में नवरत्नों की प्रतिमाएँ विराजमान हैं। दीवारों पर आधुनिक पद्धति की काँच की सुन्दर चित्रकारी में नेमिनाथ जी की बारात और वैराग्य दृश्यों के चित्र, शिखरजी, गिरनार जी, पावापुरी जी इत्यादि सिद्धक्षेत्रों के बड़े-बड़े चित्र बने हुए हैं। दूसरे तल पर द्वादशांग जिनवाणी का विस्तृत भंडार और प्रवचन सभागृह है। सभागृह की चारों तरफ की दीवारें भी भक्तामर स्तोत्र के ४८ पदों के ४८ चित्र, काँच की ही चित्रकारी से सजी हुई हैं, जो भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। तीसरे तल पर मंदिरजी का शिखर और चारों ओर खुला स्थान है। ये मंदिर पहले चैत्यालय के रूप में था। सन् १८२५ में मंदिर जी की स्थापना के बाद सन् १९१२ में उस समय के ट्रस्टी सेठ श्री धर्मचंद अमरचंद जी तथा सेठ श्री सौभाग्यचंद मेघराजजी ने समाज से रुपया एकत्र कर इसका जीर्णोेद्धार करवाया था। उसके बाद सन् १९९९ में मंदिर के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री रमणलाल कोदरलाल तथा अन्य ट्रस्टियों ने मिलकर समाज के उदारमना सहयोग से मंदिर को भव्य, आकर्षक, मनोहर रूप देकर उसकी उम्र असंख्य वर्षों की कर दी है। इस मंदिर में तीस दिन लगातार दर्शन, पूजन, अभिषेक, वंदन करने से भक्त की मनोकामना श्रद्धानुसार पूर्ण होती है।