कृते: क्रियाया: कर्म विधानं अस्मिन् वर्ण्यते इति कृतिकर्म । तच्च अर्हत्सिद्धा-चार्यबहुुश्रुतसाध्वादिनवदेवतावन्दनानिमित्तमात्माधीनताप्रादक्षिण्यत्रिवारत्रिनवति-चतु:शिरो द्वादशावर्तादिलक्षणनित्यनैमित्तिकक्रियाविधानं च वर्णयति।
जिसमें कृति अर्थात् क्रियाकर्म का विधान कहा जाता हैं, वह क्रियाकर्म है। उसमें अरहन्त, सिद्ध-आचार्य, बहुश्रुत (उपाध्याय), साधु आदि नौ देवताओं की वन्दना के निमित्त आत्माधीनता (अपने अधीन होना), तीन बार प्रदक्षिणा, तीन बार नमस्कार, चार बार सिर नमाना, बारह आवर्त आदि रूप नित्य-नैमित्तिक क्रिया-विधान का वर्णन होता है।