हस्तिनापुर नगरी में कापिष्ठलायन नामक ब्रह्मण का पुत्र था। इसके उत्पन्न होते ही माता पिता मर गये थे। भूखा मरता फिरता था कि एक दिन मुनियों के दर्शन हुए और दीक्षा ले ली। हजार वर्ष पर्यन्त तप करके छठे गैवेयक के मुविशाल नामक विमान में उत्पन्न हुआ। यह अन्धकवृष्णिका पूर्व भव है।
जैन भारती के अनुसार- इन्द्र ने अवधिज्ञान के बाद दिव्यध्वनि के न खिरने के कारण को जानकर युक्ति से गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति ब्राह्ममण को वहाँ लाया । वे इन्द्रभूति काललब्धि के निर्मित से पाँच सौ शिष्यों के साथ भगवान के चरणों में दीक्षित हो प्रथम गणधर बन गये और तत्क्षण ही उन्हे सात ऋद्धियाँ प्राप्त हो गई । उस दिन श्रावण कृष्ण प्रतिपदा तिथि को पूर्वान्ढ काल में भगवान की दिव्यध्वनि प्रगट हुई । और रात्रि के पूर्वभाग में श्रीगौतम गणधर ने ग्यारह अंगो की एवं पश्चिम भाग में चौदह पूवो्र की रचना की थी।