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गौरवमय हो यह उत्सव!
June 14, 2020
भजन
jambudweep
गौरवमय हो यह उत्सव
पीछीधारी सभी साधुओं में, माता हैं सबसे प्राचीन।।
ज्ञान, ध्यान और सामायिक में, रहती हैं वे हरदम लीन।।
पाश्र्वनाथ का तृतीय सहस्राब्दि, महोत्सव भी मनवाया है।
वाराणसि नगरी में सबने, उत्सव खूब मनाया है।।१।।
एक-एक क्षण का सदुपयोग, कर मानव महान बन जाता है।
माँ का कहना है बीता क्षण, वापस लौट न आता है।।
स्वर्णिम दीक्षा जयंती पर, उत्सव हम सभी मनाते हैं।
माँ के गुण मुझमें प्रगटित हो, यही भावना भाते हैं।।२।।
आस्था, श्रद्धा, विवेक गुण, जीवन में धारण करो।
उपदेश यही है माता का, जीवन में कुछ विकास करो।।
संघर्षों से डर कर तुम, जीवन में कभी पीछे न हटो।
संघर्षों पर विजय प्राप्त कर, तुम आगे बढ़ते ही चलो।।३।।
है यही प्रार्थना जिनवर से यह प्रभा सदा दिन दूनी हो।
भारत माता की गोदी इन माता से कभी न सूनी हो।।
आशीष आपका सदा मुझे, मिलता रहे, इस धरती पर।
करे ‘आस्था’ यही प्रार्थना, कहीं रहूँ इस अवनि पर।।४।।
ज्ञानमती माता की शिष्या, आर्यिका श्री चंदनामती जी हैं।
तेरह वर्ष की लघु वय से ही, सम्पूर्ण जीवन समर्पित है।।
गौरव ग्रंथ प्रकाशन में, माँ ने किया अति परिश्रम है।
माँ का आशीष सदा मिले, यही प्रार्थना उनसे है।।५।।
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