संसार सिंधु में तैर रही है, जीवन अपार की सुन्दर नाव,
सुख-दुख के हिचकोले खाती, किया स्पर्शित बहत्तर का पड़ाव।
स्वर्ण जयंती शुभ बेला में हो रहा, सबको हर्ष परम विशाल,
जैन धर्म एवं संस्कृति में, आज गौरवशाली पचास साल।
आर्यिका पद पर हो नियुक्त, फिर बढ़ चली पदोन्नति सोपान।
जैन समाज पर आरूढ़ होकर, बनी गणिनीप्रमुख आर्यिका महान।
जन्म लिया टिकैतनगर में, बनी ब्रह्मचारिणी बाराबंकी में,
क्षुल्लिका बनी महावीर जी में, बनी आर्यिका माधोराजपुरा में।
निर्माण किया अनेक तीर्थों का, बही ज्ञानामृत की गंगा,
सृजन कीया अनेक ग्रंथों का, मूल समझाया जैन धर्म का,
दीक्षा स्वर्ण जयंती महोत्सव, गौरवमय हो यह उत्सव,
धन्य है गणिनीप्रमुख आर्यिका, शिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी।