पुराने जमाने से ही दूध के माध्यम से रोग निवारण की चिकित्सा प्रणाली चली आ रही है।दूध में रोगों को नष्ट करने की ताकत विद्यमान है। गाय के दूध को नाड़ी दुर्बलता नष्ट करने के लिए सर्वश्रेष्ठ कहा गया है।यह वायु, पित्त एवं खून की खराबी में भी गुणकारी है। इसलिए पेट की बीमारियों में अक्सर प्राकृतिक चिकित्सक दुग्ध कल्प करवाते हैं। इससे क्षय और कैंसर तक जड़ रहित हो सकते हैं । हमारी शारीरिक आवश्यकता के सभी प्रकार के तत्व हमारे दूध में मिल जाते हैं। गाय के दूध के पीने से थायराइड नहीं होता है क्योंकि गाय के दूध में थायराइडग्लाण्ड का अंश भी मिलता है। गौ दुग्ध निर्बल को सबल तथा रोगी को नीरोगी बनाने में सबसे उत्तम है। जो लोग शुद्ध शाकाहारी हैं, उन्हें जितने प्रोटीन की जरूरत है, वह उनको दूध और घी के सिवाय किसी अन्य वस्तु से नहीं मिल सकती।
१. नक्सीर— दूध में शक्कर मिलाकर या घी मिलाकर नाक में टपकाने से नक्सीर बंद हो जाती है।
२. हिचकी— दूध की मलाई में चीनी और इलायची मिलाकर चटाने से हिचकी बंद हो जाती है।
३. प्रदर— भोजन के पश्चात् मीठा दूध पीने से रक्त प्रदर ठीक हो जाता है।
४. आधा सीसी— गाय के दूध का खोआ खाने से, बादाम की पिसी हुई गिरी दूध में डालकर खोआ बनाकर खाने से आधासीसी या आधे सिर में होने वाले दर्द में फायदा करता है।
५. वातिक कास एवं अनिद्रा— पाव भर दूध में ५० ग्राम खसखस के दाने एवं शक्कर डालकर उबालें। कुछ देर बाद छान लें। शाम समय यह दूध पीने से सूखी खांसी ठीक हो जाती है और नींद आराम से आ जाती है।
६. मूत्र कृच्छ एवं मधुमेह— दूध में गुड़ या घी डालकर पिलाने से पेशाब करते समय होने वाली तकलीफ एवं मधुमेह में फायदा होता है।
७. आंत्र शोथ— गरम सुहाता हुआ दूध २ चम्मच फीका ही लेकर धीरे—धीरे उसे पेट पर खाने से पहले मलें फिर एक घंटे तक विश्राम करने के बाद भोजन कर लें, तत्पश्चात् लघु शंका को जाना चाहिए। इससे आँतों में होने वाला शोथ दूर हो जाता है तथा आँते मजबूत हो जाती हैं।
८. पाण्डु रोग— लोहे के बर्तन में गर्म किया हुआ दूध ७ दिन तक पथ्य के साथ पीने से पाण्डु रोग तथा संग्रहणी में लाभ करता है।
९. बलवद्र्धक— दूध, घी, चासनी पीने से शरीर में बल की वृद्धि होती है। बल बढ़ाने वाला, हल्का, ठण्डा, अमृत के समान दीपन—पाचन होता है। दिन के प्रारम्भ में पीया हुआ दूध वीर्य बढ़ाने वाला पौष्टिक और अग्नि बढ़ाने वाला होता है। दिन के उत्तरार्ध (सांय) में दिया हुआ दूध बलकारक, कफ नाशक, पित्त—हारी, टी.वी. रोग को दूर करने वाला, वृद्धों में यौवन का संचार करने वाला होता है। यह एक उत्तम पथ्य है। जिसे दूध नहीं पचता पेट में अफारा बगैरह आ जाता है आधा दूध, आधा पानी, सोंठ, पीपल डाल औटा कर पिलाना चाहिए यह सुपाच्य है। जिस दूध का रंग खराब हो , स्वाद बिगड़ गया हो , बदबू वाला हो ऐसा दूध नहीं पीना चाहिए। खट्टे एवं नमकीन पदार्थों के साथ दूध नहीं पीना चाहिए।
ताम्बे के बर्तन में दुहा दूध—वादी दूर करता है।
सोने—चाँदी के बर्तन में दुहा दूध—कफ नाशक है।
काँसे के बर्तन में दुहा दूध—रक्तपित्त मिटाता है।
लोहे के बर्तन में दुहा दूध—त्रदोषनाशक है। मिट्टी के बर्तन में दुआ दूध—कामशक्तिवद्र्धक, धातु बढ़ाने वाला, वात—कफ दूर करने वाला होता है।
हानियाँ—पेट में प्राण तत्व की कमी होती है, उन्हें भी दूध का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे दस्त लग जाता है। पेट में जिसके सूजन हो उन्हें भी दूध नहीं पीना चाहिए। जोड़ों को हानि पहुँचाता है, दांतों को कमजोर कर देता है। अतिसार, प्रवाहिका, कफ—पित्त की अधिकता, फोड़े—फुसी, कोढ़ , भगन्दर, सुजाक, शर्करा, प्रमेह और कृमि रोग में दूध बड़ा हानिकारक है। २५० ग्राम दूध में मिलने वाले पदार्थ— विटामिन ए — १८० यूनिट विटामिन बी — काफी तादाद में विटामिन डी — काफी तादाद में कैल्शियम — ०१.२ ग्राम फास्फोरस — ०.०९ ग्राम प्रोटीन — ८५ प्रतिशत अत: दूध का सेवन करने से हमें अनेक लाभ मिलता हैं एवं रोग जड़ से समाप्त भी हो जाते है एवं सुन्दर काया प्राप्त हो जाती है।