दही स्वास्थ्य के लिए अत्यंत गुणकारी भोज्य पदार्थ माना जाता है। आयुर्वेदीय ग्रंथों चरक संहिता, सुश्रुत संहिता व अष्टांग हृदय आदि में दही को त्रिदोषनाशक, बल, वीर्य तथा मांसवर्धक बताते हुए अमृत समान बताया गया है। आज के विज्ञान ने भी दही की महत्ता को स्वीकारा है। दूध को गर्म करके उचित तापमान रहने पर दही का जामन डाल देने से कुछ घंटो में दही जम जाता है। जमने के बाद इसका स्वाद भी अदभुत हो जाता है। यह बदलाव लैक्टिक एसिड व बैक्टीरिया की उपस्थिति के कारण होता है। ये बैक्टीरिया दूध की शर्करा को लैक्टिक एसिड में बदल देते हैं जिससे इसकी उपयोगिता काफी बढ़ जाती है। आयु वृद्धि के उपायों की खोज करने वाले नोबेल पुरस्कार प्राप्त प्रसिसी वैज्ञानिक एली मैचिनीकॉक ने अपनी लाइफ में दही के अमृतोपम गुणों की विस्तृत चर्चा की है। डॉ. एली मैचिनीकॉक के अनुसार बढ़ती उम्र के साथ पाचन नलियों में हानिकारक जीवाणुओं एवं क्षारों की वृद्धि से उत्पन्न विष रक्त में मिलाकर वृद्धावस्था के लक्षण पैदा कर देते हैं । भोजन में दही के प्रयोग से ये लक्षण समाप्त हो जाते हैं। कारण दही के लैक्टिक एसिड जीवाणु आंतो के क्षार को बाहर निकालकर आंत के क्षार की बिल्लाई को उत्तेजना प्रदान कर सक्रिय करते हैं। इससे पाचन की शक्ति बढ़ती है। दही रक्त के क्षार को भी घटाता है। रूस के वैज्ञानिक ने भी दही का गुण्गान किया है। अजर बैजान तथा उजबेकिस्तान के लोगोें के शतायु होने के कारण यहां के चिकित्सकों ने दही का अधिक सेवन करना माना जाता है।बुल्गोरियावासियों के दीर्घ जीवन का रहस्य वैज्ञानिक एम. ग्रिगेराँक ने दही के सेवन को ही माना है। अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. बरनार मैकफैडॉन ने योगर्ट द्धदही का अमेरिकी न योगर्ट द्धदही का अमेरिकी नामक को श्रीर विकाररहित बनाने वाली प्रमुख औषधि कहा है। यह आँतों की गर्मी को शान्त करता है तथा भूख बढ़ाता है। डॉ. बरनार के अनुसार दूध की अपेक्षा दही में अधिक कैलोरीज रहने के बावजूद लैक्टिक एसिड के कारण सुपाच्य होता है। डॉ. एली मैचिनीकॉफ के अनुसार ‘दही गर्मी का अमृत’ है। दही के सेवन से अनेक बीमारियां दूर होती हैं तथा व्यक्ति दीर्घायु को प्राप्त करता है किंतु गरम, अधिक खट्टा, घी के साथ, रात को तथा वर्षा ऋतु में दही खाने से दोष उत्पन्न होते हैं। लकवे के मरीज तथा ठण्डी प्रकृति वाले के लिये दही का सेवन वर्जित माना जाता है। ऐसी स्थिति में इसका सेवन लाभ की जगह हानि को प्रदान करता है। दही के सेवन से निम्नांकित लाभ होते हैं।
दही आंत के क्षार के कणों को घटाता है
दही आंत के क्षार के कणों को घटाता है जिससे आंत का लचीलापन बढ़ता है तथा पाचन क्रिया तेज होती है ओर मंदाग्नि, अपच, कब्ज तथा गैस की बीमारियों से मुक्ति मिलती है।दही में पाए जाने वाले जीवाणु शरीर के अनेक रोगोत्पादक जीवाणुओं को नष्ट करते हैं । ये भोजन को पेट में सड़ने से बचाते हैं तथा जीवनी शक्ति एवं मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। गर्मी के दिनों में दही की लस्सी, शर्बत आदि का सेवन अत्यंत पुष्टिकारक एवं शीतलता प्रदायक होता है। दही में मूंग की दाल मिलाकर खाने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। लैक्टिक एसिड की कमी से शरीर में शिथिलता आती है तथा त्वचा पर झुर्रियां पड़ जाती है। बाल सफेद होने लगते हैं तथा बुढ़ापा असमय ही दरवाजे पर दस्तक दे जाता है। दही में लैक्टिक एसिड की प्रचुरता होती है, अत: इसके सेवन से इन व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है। यकृत एवं आंतों के रोग, संग्रहणी, मन्दाग्नि, मधुमेह, पेट के कीड़े,उल्टी , पतले दस्त आदि से दही के साथ सैंधा नमक, भुना एवं पिसा जीरा मिलाकर खाने से लाभ पहुंचता है। रक्त में क्षार की मात्रा बढ़ने से शरीर के जोड़ों पर सूजन आ जाती है, जिससे गठिया रोग हो सकता है। दही का सेवन रक्त के क्षार को घटाकर गठिया रोग हो सकता है। दही का सेवन रक्त के क्षार को घटाकर गठिया से बचाता है। अतिसार, विषम ज्वर, भोजन में अरूचि,मूत्रा च्छ आदि बीमारियों में दही का सेवन अत्यंत लाभदायक है। दही में गुड़ या शक्कर मिलाकर खाने से तृष्णा एवं दाह का शमन होता है। दही में पर्याप्त चिकनाई होने पर भी नलिकाओं में कोलेस्ट्रॉल के जमाव का खतरा नहीं रहता, कारण, दही में लैक्टिक एसिड, जीवाणुआें एवं कैल्शियम की अधिकता होती है, जो प्रोटीन आदि जटिल पदार्थों को शीघ्र ही पचा देता देता है। लस्सी आदि के रूप में दही का सेवन चर्बी को घटाता है तथा रक्त के कोलेस्ट्राल को घटाकर हृदय रोग से बचाता है। दही का पानी तोड़ या मठ्ठा अत्यंत सुपाच्य एवं पौष्टिक होता है। इसके सेवन से थकावट दूर होती है तथा आंतों को पोषण भी मिलता है।