घुटना शरीर का वह भाग होता है जो शरीर का भार सहता है। शरीर को सपोर्ट करता है और इसे चलायमान बनाता है। लेकिन कभी—कभी शरीर के घुटने इस प्रकार जवाब दे देते हैं। कि रोजमर्रा का कोई भी काम करना बड़ी आफत बन जाता है। उठते—बैठते, चलते—फिरते मुंह से केवल यही निकलता है—उह, आह और आउच। घुटनों में दर्द, तकलीफ या किसी प्रकार की समस्या का सामना तो लगभग हर कोई अपने जीवनकाल में करता है। कुछ लोग जवानी में ही इस दर्द की चपेट में आ जाते हैं तो कुछ खुशनसीबों के यह बीमारी बुढ़ापे में असर करती है। लगभग ९५ प्रतिशत रोगियों के मामले में घुटने का अंदरूनी भाग बाहरी भाग की तुलना में अधिक तेजी से क्षतिग्रस्त होता है, परिणाम स्वरूप घुटनों के जोड़ों पर पड़ने वाला दबाव असंतुलित हो जाता है, पर यदि इस क्षति को समय पूर्व ही रोक लिया जाए तो घुटनों के क्षतिग्रस्त होने की प्रक्रिया धीमी पड़ जायेगी। इस कारण वे जल्दी खराब होने से बच जायेंगे। और उनकी उम्र बढ़ जाएगी। दर्द को कम करने और चलने फिरने की क्षमता को बढ़ाने के अलावा यह सर्जरी घुटनों के जोड़ों पर पड़ने वाले दबाव का संतुलन बनाए रखती है। हमें कम से कम यह तो जानना चाहिए कि आखिर इस दर्द की वजह क्या हैं इसका रूप व स्वरूप। दर्द के स्थान से भी पता लगाया जा सकता है कि आखिर उसका कारण क्या है।
घुटने के सामने के भाग में दर्द
घुटने के सामने के भाग में दर्द होने का मतलब होता है कि यह जुड़ा है आप के नीकैप से इसके कई अन्य कारण हो सकते हैं। घुटने के अंदरूनी भाग में तकलीफ— घुटने के अदरूनी भाग या मध्य भाग में दर्द होना मीडियल मिनिस्कस टियर्स, एम सी एल चोटों, नसों के फटने, छोटी—मोटी चोटों व आथराइटिस के चलते हो सकता है।
घुटने के पीछे की और दर्द
घुटने के पीछे की ओर दर्द होने का मतलब होता है कि वहां द्रव्य का जमावड़ा जिसे बेकार्स सिस्ट के नाम से जाना जाता है । सीढियों से नीचे उतरते समय यदि नीकैप समस्या और क्रोंड्रमलेशिया की चेतावनी हो सकती है। सुबह उठते ही यदि आप के घुटने में दर्द होता है और फिर धीरे—धीरे कम हो जाता है तो इसे आर्थराइटिस प्रारंभ के तौर पर देखा जा सकता है। यदि घुटने में चोट लगते ही तुरंत सूजन हो जाती है, तो मान लेना चाहिए कि अंदरूनी भाग को गहरी चोट लगी है जैसे फैक्चर आदि। यदि घुटने में चोट लगने के कुछ घण्टे के बाद या एक दिन के बाद तक धीरे—धीरे सूजन होती है तो कम जटिल चोट हो सकती है। लेकिन नसों के फटने का डर होता है। बिना किसी चोट या जख्म के यदि घुटनों में सूजन दिखे तो यह ओस्टियो आर्थराइटिस, गाउट, इंफ्लेमटरी आर्थराइटिस या जोड़ो का संक्रमण हो सकता है। वैसे तो हम लोग विशेषकर भारतीय लोग तब तक डॉक्टर के पास जाने में आनाकानी करते हैं, जब तक कि समस्या बढ़ न जाए। हालांकि कुछ अवस्थओं में डॉक्टर को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए व तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए जैसे— चोटिल भाग के कारण चलने में असमर्थता, जोड़ के आस पास विकार उत्पन्न होना और बढ़ता रहे, घुटने के जोड़ में सूजन, संक्रमण के तहत घुटनों का लाल होना, बुखार आदि। जांच— एक्स रे, सीटी स्कैन, एम आर आई, रक्त जांच, आर्थेस्कोपी
उपचार
आराम करना— किसी प्रकार के घुटनों के दर्द को कम करने के लिए घुटनों को आराम देने की सलाह दी जाती है ताकि दर्द या सूजन का उभार कम हो सके।
गर्म या ठंडे पैड से सिकाई— किसी प्रकार के दर्द या तकलीफ को कम करने के लिए किन्ही केसों में गर्म या ठंडें पैड से सिकाई करने की आवश्यकता हो सकती है जो कि केस पर निर्भर करता है।
फीजिकल थैरेपी—लगभग सभी केसों में डाक्टर फीजिकल थैरेपी का इस्तेमाल करते हैं। विभिन्न प्रक्रियाओं की मदद से घुटनों के दर्द को कम कर उसे चलायमान बनाने का प्रयास किया जाता है।
दवाईयां— नसेड की दवाइयां दी जाती हैं विशेषकर उन लोगों को जो कि अर्थराइटिस से पीड़ित हो।
कोर्टिसोन इंजेक्शन— घुटने के दर्द या सूजन को कम करने के लिए यह इंजेक्शन लगाए जाते हैं जो कि तुरंत राहत दे सकते हैं। लेकिन ये इंजेक्शन डाक्टर की सलाह से ही लिए जाने चाहिए।
खान—पान— रोजाना एक या दो खजूरों का सेवन करने से घुटनों की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। हड्डियों के जोड़ों को मजबूत बनाने के लिए कैल्शियम का सेवन बेहद आवश्यक होता है जैसे दूध, दही, आदि। घुटने के लचीलेपन को बढ़ाने के लिए दालचीनी, जीरा, अदरक व हल्दी का सेवन करने में भी कतराना नहीं चाहिए। क्योंकि इसमें कुछ ऐसे पदार्थ होते है जो कि घुटने की सूजन व दर्द को कम करने में मदद करते है हरी पत्तेदार सब्जियों को खाने जैसे पालक के सेवन से शरीर में एंटी ऑक्सीडेंट्स की बढ़त होती है जो कि लौह तत्व की वृद्धि करते हैं और घुटने की स्थिरता बढ़ती है।