(१) चक्ररत्न-चक्रवर्ति के सुदर्शन नाम का चक्ररत्न आयुधशाला में उत्पन्न होता है। यह छह खण्डों पर विजय प्राप्त कराकर एक छत्र शासन कराता है।
(२) छत्ररत्न-यह रत्न बारह योजन (९६ मील) विस्तृत विशाल सेना की मेघ आदि के दैविक उपद्रवों से रक्षा करता है।
(३) दण्डरत्न-यह रत्न विजयार्ध पर्वत की गुफाओं के द्वार को खोलने आदि में समर्थ रहता है।
(४) असिरत्न-यह सर्वश्रेष्ठ तलवार है, जिसे हाथ में लेते ही शत्रु कांपने लगते हैं।
(५) मणिरत्न-चूड़ामणि नाम का चिंतामणि रत्न सर्व मनोरथों को सफल करता है।
(६) चर्मरत्न-यह वङ्कामय रत्न-जल आदि के उपद्रव से सेना की रक्षा करता है।
(७) काकिणी रत्न-यह विजयार्ध पर्वत की गुफाओं के अंधकार को दूर कर देता है।
ये सात अचेतन रत्न हैं।
(८) स्त्रीरत्न-चक्रवर्ती के छ्यानवे हजार रानियों में एक पट्टरानी होती हैं, जो कि चक्रवर्ती को सर्वाधिक प्रिय होती हैं।
(९) सेनापतिरत्न-यह रत्न मनुष्यों में श्रेष्ठ है। विजयार्ध पर्वत की गुफाद्वार को खोलने में व शत्रुओं को जीतने में यशस्वी रहता है।
(१०) पुरोहितरत्न-यह रत्न सम्पूर्ण धर्मक्रियाओं को सम्पन्न कराते हैं।
(११) गृहपतिरत्न-इच्छानुसार सामग्री देने वाले यह रत्न चक्रवर्ती के सभी गृहकार्य को संभालने में समर्थ है।
(१२) स्थपतिरत्न-यह रत्न मकान, छावनी आदि को क्षणभर में निर्माण कर देता है।
(१३) हस्तिरत्न-यह पर्वत के समान ऊँचा सफेद हाथी है। इसकी गर्जना से सभी कांप जाते हैं।
(१४) अश्वरत्न-यह घोड़ा रत्न विजयार्धपर्वत की गुफा के द्वार को खोलने के बाद कई कोश उछलकर सेनापति को दूर पहुँचा देता है।
ये सात चेतनरत्न हैं।
ऐसे ये चक्रवर्ती के वैभव के सूचक नवनिधि व चौदहरत्न श्री भरत चक्रवर्ती के यहाँ प्रगट हुए थे।