भारतगौरव दिव्यशक्ति गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की दिव्य और दूरदृष्टि से देश की राजधानी दिल्ली की सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थली कनॉट प्लेस में ४००० गज के विशाल भूखण्ड में ‘‘चक्रवर्ती भगवान भरत ज्ञानस्थली दिगम्बर जैन तीर्थ-बड़ी मूर्ति’’ का निर्माण किया गया है। जैन सभा-नई दिल्ली के अन्तर्गत इस तीर्थ पर पूज्य माताजी की प्रेरणा से ३१ फुट ऊँचे भगवान भरत स्वामी की प्रतिमा विराजमान की गई है। इसके साथ ही यहाँ ध्यान केन्द्र भी निर्मित किया गया है, जिसमें ९ फुट विशाल वियतनाम पत्थर में निर्मित ‘‘ह्रीं प्रतिमा’’ विराजमान करके इसमें २४ तीर्थंकर भगवान की रत्नमयी प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।
जैन आगम के अनुसार युग की आदि में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने शाश्वत तीर्थ अयोध्या में महाराजा नाभिराय की महारानी मरुदेवी से सर्वतोभद्र नामक ८१ खण्ड के भव्य महल में जन्म लेकर इस भारत वसुधा को सनाथ किया। भगवान ऋषभदेव ने भोगभूमि के अन्त एवं कर्मभूमि के प्रारंभ में प्रजा को असि, मषि आदिक षट्क्रियाओं द्वारा जीवन जीने की कला सिखाई, अनेक विद्याओं-कलाओं को प्रादुर्भूत किया और वैराग्यभाव को प्राप्त होकर जिनदीक्षा लेकर मुनिचर्या भी सिखाई। भगवान ऋषभदेव की यशस्वती एवं सुनंदा रानी से भरत, बाहुबली आदि १०१ पुत्र एवं ब्राह्मी-सुन्दरी २ पुत्रियाँ हुईं, इनमें से प्रथम पुत्र भरत चक्रवर्ती सम्राट हुए जिन्होंने सम्पूर्ण छह खण्ड रूप वसुधा पर विजय प्राप्त करके राज्य किया, उन्हीं सम्राट भरत के नाम से इस देश का नाम ‘‘भारत’’ हुआ है। जिसके अनेकों उदाहरण जैन एवं वैदिक ग्रंथों में मिलते हैं। भगवान ऋषभदेव के इन सभी पुत्र-पुत्रियों ने जैनेश्वरी दीक्षा लेकर सिद्धिधाम को प्राप्त किया है। वस्तुत: जैनधर्म की प्राचीनता एवं उसके सर्वोदयी सिद्धान्तों के साथ ही ‘‘भरत से भारत’’ इस बात का गौरव जन-जन में बताने हेतु इस भव्य तीर्थ का निर्माण हुआ है। दिनाँक ४ अप्रैल २०२१, चैत्र वदी अष्टमी को इस तीर्थ पर पूज्य माताजी के संघ सान्निध्य में ही ३१ फुट उत्तुंग भगवान भरत की विशाल प्रतिमा कमलासन पर विराजमान हुई। कोरोना महामारी के दूसरी बार हुए भयानक प्रकोप को देखते हुए लॉकडाउन और सुरक्षा की दृष्टि से अनेक विधि-विधान, अनुष्ठान पूज्य माताजी की प्रेरणा एवं सान्निध्य में सम्पन्न होते रहे, शायद पूज्य माताजी द्वारा किये जा रहे मंत्र जाप्य का ही चमत्कार था जो महामारी का प्रकोप कुछ कम हुआ और ज्येष्ठ सुदी छठ से ज्येष्ठ सुदी दशमी, दिनाँक १६ जून से २० जून २०२१ तक ‘‘भगवान ऋषभदेव जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव’’ सानंद सम्पन्न हुआ। महामारी को ध्यान में रखते हुए विशेष सावधानीपूर्वक और सीमित संख्या के साथ भले ही यह पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हुई किन्तु पूरे ठाठ-बाट और हर्षोल्लासपूर्ण वातावरण में चारित्रचकव्रर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज की परम्परा के सप्तम पट्टाचार्य श्री अनेकांतसागर जी महाराज (ससंघ) एवं चारित्रचन्द्रिका गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी (ससंघ) के सान्निध्य में सम्पूर्ण विधि-विधान हुए। भगवान ऋषभदेव जिनप्रतिमा के साथ-साथ ही भरत ज्ञानस्थली पर विराजित ३१ फुट उत्तुंग ‘‘भगवान भरत स्वामी एवं रत्नमयी चौबीसी जिनप्रतिमा तथा अनेकानेक अन्य चांदी, धातु, पाषाण आदि की जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा भी सम्पन्न हुई। इन सभी प्रतिमाओं को प्रतिष्ठा महोत्सव के पश्चात् यथास्थान विराजित किया गया। चूँकि पूर्व में ह्रीं प्रतिमा की वेदी का शिलान्यास ज्येष्ठ वदी दशमी, ४ जून २०२१ को हो चुका था अत: इसमें चौबीसी जिनप्रतिमा विराजमान की गईं और भगवान भरत का भव्य पंचामृत अभिषेक कई माह तक चलता रहा, जिसमें दिल्ली की जैन समाज के अतिरिक्त सुदूर प्रान्तों से भी जनता ने पधारकर अभिषेक करके महान पुण्य का अर्जन किया, जिससे भगवान भरत ज्ञानस्थली तीर्थ की पूरे देश और विदेश में ऐतिहासिक धर्मप्रभावना हुई।
ह्रीं प्रतिमा-‘ह्रीं’ इस पवित्र मंत्र में वर्तमानकालीन चौबीस तीर्थंकर भगवान समाहित हैं, इस मंत्र की आराधना समस्त साधु व श्रावकगण प्रतिदिन अपने मंत्र जाप्य में करते हैं। जैसे-‘‘ॐ ह्रीं नम:’’, ‘‘ॐ ह्रीं अर्हं असिआउसा नम:’’ इत्यादि। इस मंत्र की आराधना से हमारे अशुभ कर्मों की निर्जरा होकर शुभकर्म का बंध होता है।
प्राचीनकाल से इस मंत्र की आराधना तो की जाती है परन्तु इस ‘‘ह्रीं’’ बीजाक्षर से संयुक्त कोई जिनालय प्राचीन काल से अब तक कहीं बना हो, ऐसा देखने में नहीं आया। यह इस कलिकाल का सौभाग्य ही है कि ब्राह्मी माता की प्रतिकृति पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने आगम के गूढ़तम विषयों को नूतन रचनाएँ, तीर्थ सृजन, साहित्यसृजन आदि के माध्यम से विश्व के सम्मुख प्रगट किया है, उसी क्रम में पूज्य माताजी की ही प्रेरणा से हस्तिनापुर में निर्मित ‘‘जम्बूद्वीप अतिशय क्षेत्र’’ पर ह्रीं मंदिर का प्रथम बार निर्माण हुआ, जो ‘‘ध्यान मंदिर’’ के नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त है, उसके पश्चात् माताजी की प्रेरणा से अनेकों स्थानों पर ह्रीं की प्रतिमा विराजमान की गईं। इस ह्रीं बीजाक्षर का वर्णन ऋषिमण्डल स्तोत्र में आया है।