—दोहा—
जंबूद्वीप में उत्तरे, क्षेत्रैरावत श्रेष्ठ।
पुष्पांजलि से पूजहूँ, गणधरगुरु जगज्येष्ठ।।१।।
अथ मंडलस्योपरि चतुर्थवलये पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
—शंभुछंद—
जंबूद्वीप के उत्तर में, ऐरावत क्षेत्र कहाता है।
वहाँ चतुर्थकाल में चौबिस, तीर्थंकर प्रभु तीर्थ विधाता हैं।।
उनके गणधर जितने भी हैं, उन सबको मेरा वंदन है।
प्रभु समवसरण में दिव्यध्वनि, गूंथे जो द्वादशांग श्रुत हैं।।१।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—ऐरावतक्षेत्रचतुर्थकालस्थ—वर्तमानकालीन—श्रीबालचंद्रनाथ-सुव्रतनाथ—अग्निसेननाथ—्नांदिसेननाथ—श्रीदत्तनाथ—व्रतधरनाथ—सोमचंद्रनाथ—धृतदीर्घनाथ—शतायुष्यनाथ—विवसितनाथ—श्रेयोनाथ—विश्रुतजलनाथ—िंसहसेननाथ—उपशांतनाथ—गुप्तशासननाथ—अनंतवीर्यनाथ—पार्श्वनाथ—अभिधाननाथ—मरुदेवनाथ—श्रीधरनाथ—शामकंठनाथ—अग्निप्रभनाथ—अग्निदत्तनाथ—वीरसेननाथपर्यंतचतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थित—सर्वगणधर- देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
—पूर्णार्घ्य—दोहा—
वर ऐरावत क्षेत्र के, तीर्थंकर के शिष्य।
गणधर गुरुओं को जजूँ, पाऊं निजसुख नित्य।।१।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—ऐरावतक्षेत्रस्थवर्तमानचतुर्थकालीनचतुर्विंशति- तीर्थंकरसमवसरणस्थितसर्वगणधरदेवेभ्य: पूर्णार्घ्यं…..।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।