हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।टेक.।।
तत्त्वार्थसूत्र अध्याय चतुर्थ में, ऊर्ध्वलोक का वर्णन है।
देवों के चार भेद एवं, उनकी स्थिति का वर्णन है।।
वे भवनवासि व्यंतर ज्योतिष, वैमानिक नामसे कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।१।।
चन्द्रमा सूर्य नक्षत्रादिक हैं, ज्योतिर्वासी देव कहें।
इनके विमान मेरूपर्वत की, सदा-सदा परिक्रमा करें।।
बस इसीलिए रात्री दिन के हैं, भेद धरा पर बन जाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।२।।
यद्यपि चारों गतियों में, देवगती में सर्वाधिक सुख है।
पर संयम नहिं ले सकते वे, इस बात का ही उनको दुख है।।
‘‘चंदनामती’’ वह संयम तप, बस मानव धर शिवपद पाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।३।।