चैत्र शु. प्रतिपदा को उपवास करके जिनमंदिर में जाकर चौबीस तीर्थंकर प्रतिमा का महाभिषेक करके श्रुतस्वंâध यंत्र, गणधर यंत्र आदि का भी अभिषेक करें। चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस गणिनी के चरणों का अभिषेक और पूजा करें।
पुन: निम्न मंत्र की माला करें-
मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं ऋषभादिवर्धमानान्त्य वर्तमान तीर्थंकरेभ्यो यक्षयक्षीसहितेभ्यो नम: स्वाहा। (सुगंधित पुष्पों से १०८ बार मंत्र जपें)
अनंतर-एक-एक व्रत में एक-एक गणिनी माताजी का मंत्र जपें। वे मंत्र निम्न प्रकार हैं-
चौबीस गणिनी माता के २४ मंत्र
१. ॐ ह्रीं अर्हं श्री ऋषभदेव समवसरणस्थित ब्राह्मी गणिनीमात्रे नम:। २. ॐ ह्रीं अर्हं श्री अजितनाथ समवसरणस्थित प्रकुब्जा गणिनीमात्रे नम:। ३. ॐ ह्रीं अर्हं श्री संभवनाथ समवसरणस्थित धर्मश्री गणिनीमात्रे नम:। ४. ॐ ह्रीं अर्हं श्री अभिनंदननाथ समवसरणस्थित मेरुषेणा गणिनीमात्रे नम:। ५. ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुमतिनाथ समवसरणस्थित अनन्ता गणिनीमात्रे नम:। ६. ॐ ह्रीं अर्हं श्री पद्मप्रभु समवसरणस्थित रतिषेणा गणिनीमात्रे नम:। ७. ॐ ह्रीं अर्हं श्री सुपाश्र्वनाथ समवसरणस्थित मीना गणिनीमात्रे नम:। ८. ॐ ह्रीं अर्हं श्री चन्द्रप्रभु समवसरणस्थित वरुणा गणिनीमात्रे नम:। ९. ॐ ह्रीं अर्हं श्री पुष्पदंतनाथ समवसरणस्थित घोषा गणिनीमात्रे नम:। १०. ॐ ह्रीं अर्हं श्री शीतलनाथ समवसरणस्थित धरणा गणिनीमात्रे नम:। ११. ॐ ह्रीं अर्हं श्री श्रेयांसनाथ समवसरणस्थित धारणा गणिनीमात्रे नम:। १२. ॐ ह्रीं अर्हं श्री वासुपूज्य समवसरणस्थित वरसेना गणिनीमात्रे नम:। १३. ॐ ह्रीं अर्हं श्री विमलनाथ समवसरणस्थित पद्मा गणिनीमात्रे नम:। १४. ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनन्तनाथ समवसरणस्थित सर्वश्री गणिनीमात्रे नम:। १५. ॐ ह्रीं अर्हं श्री धर्मनाथ समवसरणस्थित सुव्रता गणिनीमात्रे नम:। १६. ॐ ह्रीं अर्हं श्री शान्तिनाथ समवसरणस्थित हरिषेणा गणिनीमात्रे नम:। १७. ॐ ह्रीं अर्हं श्री वुंâथुनाथ समवसरणस्थित भाविता गणिनीमात्रे नम:। १८. ॐ ह्रीं अर्हं श्री अरहनाथ समवसरणस्थित वुंâथुसेना गणिनीमात्रे नम:। १९. ॐ ह्रीं अर्हं श्री मल्लिनाथ समवसरणस्थित बंधुसेना गणिनीमात्रे नम:। २०. ॐ ह्रीं अर्हं श्री मुनिसुव्रतनाथ समवसरणस्थित पुष्पदत्ता गणिनीमात्रे नम:। २१. ॐ ह्रीं अर्हं श्री नमिनाथ समवसरणस्थित मार्गिणी गणिनीमात्रे नम:। २२. ॐ ह्रीं अर्हं श्री नेमिनाथ समवसरणस्थित राजमती गणिनीमात्रे नम:। २३. ॐ ह्रीं अर्हं श्री पाश्र्वनाथ समवसरणस्थित सुलोचना गणिनीमात्रे नम:। २४. ॐ ह्रीं अर्हं श्री महावीर स्वामी समवसरणस्थित चन्दना गणिनीमात्रे नम:।
इस व्रत में चैत्र शु. प्रतिपदा को प्रथम व्रत करके आगे वैशाख कृ. प्रतिपदा, वैशाख शुक्ला प्रतिपदा आदि प्रत्येक मास की दोनों प्रतिपदाओं को व्रत करते हुए चैत्र कृष्णा प्रतिपदा को व्रत पूर्ण करें।
ऐसे ये चौबीस व्रत पूर्ण होने पर चौबीस तीर्थंकर की प्रतिमा बनवाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न करावें एवं गणिनी माताजी के चरण बनवाकर विराजमान करावें। जो महिलाएँ इस व्रत को करेंगी वे नियम से संसार के संपूर्ण सुखों को, धन, सुख, सम्पत्ति और संतति को प्राप्तकर पुन: सम्यक्त्व के प्रभाव से स्त्रीलिंग को छेदकर आगे मोक्ष प्राप्त करेंगी।जो पुरुष इस व्रत को करेंगे, वे गणिनी माताओं की भक्ति से संसार के संपूर्ण अभ्युदयों को प्राप्तकर अपने गार्हस्थ जीवन को सफल कर परम्परा से पूर्ण महाव्रत को पालने में समर्थ होकर निर्वाण प्राप्त करेंगे।