चत्तारि मंगलं-अरिहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहु मंगलं, केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं।
चत्तारि लोगुत्तमा–अरिहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा।
चत्तारि सरणं पव्वज्जामि–अरिहंत सरणं पव्वज्जामि, सिद्ध सरणं पव्वज्जामि, साहु सरणं पव्वज्जामि, केवलि पण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि।
मैंने पं. सुमेरचंद्र दिवाकर, पं. पन्नालाल साहित्याचार्य, प्रो. मोतीलाल कोठारी, फलटन आदि अनेक विद्वानों से चर्चा की थी। ये विद्वान भी प्राचीन पाठ के समर्थक थे। एक बार पं. पन्नालाल जी सोनी ब्यावर वालों ने कहा था कि जितने भी प्राचीन यंत्र हैं व प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथ हैं सभी में बिना विभक्ति का प्राचीन पाठ ही मिला है अत: ये ही प्रमाणीक हैं। यह विभक्ति सहित अर्वाचीन पाठ श्वेताम्बर परम्परा से आया है ऐसा पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य ने कहा था। जो भी हो, हमें और आपको प्राचीन पाठ ही पढ़ना चाहिए। सभी पुस्तकों में प्राचीन पाठ ही छपाना चाहिए व मानना चाहिए। नया परिवर्द्धित पाठ नहीं पढ़ना चाहिए।