भारतीय योगियों ने ध्यान जमाकर देखा कि शरीर में एक चेतना काम करती है ‘‘मन’’ नामक इस चेतना के द्वारा उन्होंने मस्तिक रहस्यों को खोज निकाला यही नहीं, उन्होंने इसके द्वारा सारे शरीर को अपने वाहन की तरह नियंत्रण में करने का लाभ प्राप्त किया, जैसा कि संसार के इतिहास में आज तक कहीं नहीं हुआ। लोग समय नहीं लगाना चाहते, उस कष्ट-साध्य प्रक्रिया से नहीं गुजरना चाहते और एक बात यह भी है कि भौतिकता के चंगुल से छूटना उन्हें अच्छा भी नहीं लगता, अन्यथा ध्यान और जप प्रणाली के द्वारा इन तथ्यों को आज भी एकाग्रचित्त होकर ढूँढा और उनसे लाभान्वित हुआ जा सकता है। यह बात तो डाक्टर और एनाटॉमिस्ट्स भी जानते हैं कि दोनों भोंहो के सीध में जहाँ दोनों आँखों की नसें (आप्टिकनव्र्स) मिलकर आप्टिक काइजमा बनाती हैं, उस स्थान पर पिट्यूटरी नाम की एक ग्रन्थि (ग्लैण्ड) पाई जाती है, यहीं से सारे शरीर का नियंत्रण करने वाले क्रोध, भय, चिन्ता, प्रसन्नता आदि के हारमोन्स निकलते हैं इसका सारे शरीर में नियंत्रण है, इसीलिए इसे स्वामी ग्रन्थि (मास्टर ग्लैण्ड) कहते हैं। भारतीय इसे ही मन ‘‘आज्ञा-चक्र’’ कहते हैं। इसी में सूँघने, स्वाग अनुभव करने, देखने आदि का ज्ञान होता है। यहाँ पर दाहिने-बाये दो वाल्ब (आल फैक्ट्री वाल्व्स) लगे होते हैं। इनकी सूक्ष्म रचना के बारे में तो वैज्ञानिक नहीं जान पाये, किन्तु वे यह मानते हैं कि इस स्थान की आन्तरिक जानकारी मिलने से मस्तिष्क और शरीर के सूक्ष्म अन्तर्वर्ती रहस्यों का पता लगाया जा सकता है। तत्त्व-दर्शन का आधार मस्तिष्क है, मस्तिष्क के सूक्ष्म प्राण और मनोमय प्रणाली को जान लिया जाये तो सम्पूर्ण ज्ञान विज्ञान, सुख-सन्तोष एवं आनन्द को करतल गत किया जा सकता है। ध्यान बिन्दु उपनिषद में लिखा है –
कपाल कुहरे मध्ये चतुद्र्वारस्य मध्यमे ।
तदात्मा राजमे तत्र यथाव्योम्नि दिवाकर: ।।
कोदण्डद्व मद्यतु ब्रह्यरन्घेपु शक्ति च ।
स्वात्मानं पुरुषं पश्येन्मनस्तत्र लयं गतम् ।।
रत्नानि ज्योत्सिननादं तु बिन्दुमाहेश्वरं पद्म ।
य एवं वेद पुरुष: सकैवल्यं समश्नुते ।।
अर्थात् कपाल कुहर के मध्य में चारों द्वारों (आँख, कान, नाक, मुख) का मध्य स्थान है, वहां आकाश रन्ध्र से आता हुआ नाद मोर की नाद के समान सुनाई देता है जैसे आकाश में सूर्य विद्यमान् है, उसी प्रकार यहा ँआत्मा विराजमान है और ब्रह्म-रन्ध्र में दो कोदण्ड के मध्य शक्ति संस्थित हैं। वहाँ पुरुष अपने मन को लय करके स्वात्मा को देखे वहाँ रत्नों की प्रभा वाले नाद बिन्दु परमात्मा का निवास है, जो इसे जानता है कैवल्य को प्राप्त होता हैं अपनी उंगलियों से नापने पर ८६ अंगुल के इस मनुष्य शरीर का वैसे तो प्रत्येक अवयव गणितीय आधार पर बना और अनुशासित है पर जितना रहस्यपूर्ण यंत्र इसका मस्तिष्क है, संसार का कोई भी यंत्र न तो इतना जटिल रहस्यपूर्ण है और न समर्थ। यों साधारणतया देखने में उसके मुख्य कार्य- १. ज्ञानात्मिक, २. क्रियात्मक और ३. संयोजनात्मक हैं जब मस्तिष्क के रहस्यों की सूक्ष्मतम जानकारी प्राप्त करते है तो पता चलता है कि इन तीनों क्रियाओं को मस्तिष्क में इतना अधिक विकसित किया जा सकता है कि
(१) संसार के किसी भी एक स्थान पर बैठे-बैठे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के किसी भी स्थान की चींटी से भी छोटी वस्तु का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
(२) कहीं भी बैठे हुए किसी को कोई सन्देश भेज सकते हैं, कोई भार वाली वस्तु को उठाकर ला सकते है। किसी मूर्छित कर सकते हैं, मार भी सकते हैं।
(३) संसार में जो कुछ भी है, उस पर स्वामित्व और वशीकरण भी कर सकते हैं। अष्ट सिद्धियाँ और नवनिद्धियाँ वस्तुत: मस्तिष्क के ही चमत्कार है, जिन्हें मानसिक एकाग्रता और ध्यान द्वारा भारतीय योगियों ने प्राप्त किया था। ईसामसीह अपने शिष्यों के साथ यात्रा पर जा रहे थे। मार्ग में वे थक गये, एक स्थान पर उन्होंने अपने एक शिष्य से कहा – ‘‘तुम जाओ सामने जो गांव दिखाई देता है, उसके अमुक स्थान पर एक गधा चरता मिलेगा तुम उसे सवारी के लिये ले आना।’’ शिष्य गया और उसे ले आया। लोग आश्चर्यचकित थे कि ईसामसीह की इस दिव्य दृष्टि का रहस्य क्या है ? पर यह रहस्य प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क में विद्यमान् है, बशर्ते कि हम भी उसे जागृत कर पायें।