तर्ज—चांद मेरे आ जा रे ………….
तीर्थ की आरति करते हैं-२
वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।टेक.।।
प्राचीन संस्कृति की ये, दिग्दर्शक मानी जाती ।
हुआ धर्मतीर्थ का वर्तन, शास्त्रों में गाथा आती ।।
धरा वह पावन नमते हैं-२
वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।१।।
वसुपूज्य वहां के राजा, उनकी थीं जयावती रानी।
उनकी पावन कुक्षी से, जन्मे थे अन्तर्यामी ।।
जन्म की वह तिथि भजते हैं-२
वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।२।।
बचपन से यौवन काया, प्रभु वासुपूज्य ने पाया।
पर नहीं फंसे विषयों में, अरु बालयती पद पाया।।
दीक्षा की वह तिथि नमते हैं-२
वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।३।।
चम्पापुर के ही निकट में, मंदारगिरी पर्वत है।
दीक्षा व ज्ञान से पावन, निर्वाणक्षेत्र भी वह है।।
सिद्धभूमी को भजते हैं-२
वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।४।।
हैं वर्तमान में दोनों प्रभु वासुपूज्य के तीरथ।
हर भव्यात्मा को दर्शन, से प्रकटाते मुक्तीपथ।।
मुक्ति हेतू हम यजते हैं-२
वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।५।।
मन्दिर की मूल वेदी में, माणिकवर्णी प्रतिमा है।
लगे तीर्थ बड़ा ही प्यारा, अद्भुत इसकी गरिमा है।।
वहां का हर कण नमते हैं-२
वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।६।।
निज आत्मशांति के हेतू, इस तीर्थ की आरति कर लो।
पाना हो पंच परम पद, ‘‘चंदनामती’’ प्रभु भज लो।।
मोक्ष की आशा करते हैं-२
वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।७।।