-शेर छंद-
भगवान वासुपूज्य जहाँ गर्भ में आये।
आषाढ़ कृष्णा छठ तिथी सुरगण वहाँ आये।।
माता जयावती पिता वसुपूज्य का आँगन।
रत्नों से भर गया करूँ उस भूमि का यजन।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथगर्भकल्याणकपवित्रचम्पापुरीतीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
फाल्गुन वदी चौदश जहाँ प्रभु का जन्म हुआ।
स्वर्गों में सुरपती का मुकुट स्वयं झुक गया।।
चम्पापुरी नगरी की पूज्यता है इसलिए।
मैं अर्घ्य चढ़ाकर जजूँ उस भू को इसलिए।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मकल्याणकपवित्रचम्पापुरीतीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
फाल्गुन वदी चौदश को ही वैराग्य हुआ था।
प्रभु जी ने स्वयं दीक्षा स्वीकार लिया था।।
उस दीक्षाकल्याणक पवित्र भूमि को नमन।
मंदारगिरि उद्यान का है भाव से अर्चन।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथदीक्षाकल्याणकपवित्रचम्पापुरीनिकटस्थ-मंदारगिरितीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ माघशुक्ला दुतिया को ज्ञान हो गया।
जिनवर के घातिकर्म का विनाश हो गया।।
मंदारगिरि का पूज्य वह उद्यान मनोहर।
पूजूँ समवसरण का स्थल वह मनोहर।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथकेवलज्ञानकल्याणकपवित्रचम्पापुरी-तीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
भादों सुदी चौदश को प्रभू मोक्ष पा गये।
सम्पूर्ण कर्म नाश अचल सौख्य पा गये।।
निर्वाण कल्याणक मनाने इन्द्र आ गये।
मंदारगिरि जजूँ जहाँ से सिद्धि पा गये।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथमोक्षकल्याणकपवित्रचम्पापुरीतीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-पूर्णार्घ्य-
चम्पापुरी इक मात्र ऐसा तीर्थ है पावन।
जहाँ वासुपूज्य प्रभु के हुए पाँचों कल्याणक।।
चम्पापुरी में माना मंदारगिरि स्थल।
पूजूँ जहाँ प्रसिद्ध वासुपूज्य धर्मस्थल।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथगर्भजन्मतपकेवलज्ञानमोक्षपंचकल्याणक- पवित्रचम्पापुरी-मंदारगिरितीर्थक्षेत्राभ्यां पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं चम्पापुरीजन्मभूमिपवित्रीकृत-श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय नम:।
-दोहा-
धर्मतीर्थ वर्तन जहाँ, हुआ वही है तीर्थ।
नमन करूँ उस तीर्थ को, पाऊँ आतम कीर्ति।।१।।
-नरेन्द्र छन्द-
चम्पापुर नगरी में नृप वसुपूज्य राज्य करते थे।
न्यायनीति में दक्ष प्रजा का न्याय किया करते थे।।
धर्मपरायण श्रावक वे प्रभु भक्ति सदा करते थे।
षट्कर्तव्यों में रत रहकर शिवपथ पर चलते थे।।२।।
कर विवाह गुणयुक्त जयावती रानी को वर लाये।
सांसारिक सुख भोग मनोहर जीवनकाल बितायें।।
एक दिवस देवों की टोली ले धनपति वहाँं आये।
रत्नवृष्टि कर इन्द्राज्ञा से नगरी खूब सजाये।।३।।
जान गये तब राजा रानी तीर्थंकर आएंगे।
छः महीने पश्चात् गर्भकल्याणक मनवाएंगे।।
खुशियों में वैâसे बीते छह माह पता नहिं पाया।
आखिर इक रात्री में रानी को सपना हो आया।।४।।
सोलह सपनों के फल में वसुपूज्य ने यह बतलाया।
इक तीर्थंकर बालक रानी तेरे गरभ में आया।।
खुशियों में डूबी रानी अपने महलों में रहतीं।
दिक्कुमारियाँ सेवा में आ उनसे प्रश्न उचरतीं।।५।।
धीरे-धीरे बीत गये नव मास घड़ी वह आई।
तीर्थंकर का जन्म हुआ वहाँ बजने लगी बधाई।।
जन्मकल्याणक का उत्सव इन्द्रों ने आन मनाया।
वासुपूज्य यह नामकरण तीर्थंकर शिशु ने पाया।।६।।
वस्त्राभूषण दिव्य पहन प्रभु पलने में झूले थे।
क्रमशः घुटने के बल चलकर देवों संग घूमे थे।।
उनकी मीठी और तोतली बोली जब माँ सुनती।
मानो जग की सारी निधियाँ उनको फीकी लगतीं।।७।।
तीर्थंकर के बाल्यकाल का वर्णन वैâसे करना।
इन्द्रपुरी के सुख भी उनके आगे तुच्छ ही कहना।।
बचपन से यौवन काया को वासुपूज्य ने पाया।
मात-पिता के कहने पर भी ब्याह नहीं रचवाया।।८।।
बालयती बन तप करके वैâवल्यज्ञान उपजाया।
घाति अघाती कर्म नाश कर मोक्षधाम प्रगटाया।।
चम्पापुर उनके पाँचों कल्याणक से पावन है।
वहीं निकट मंदारगिरी चम्पापुरि का पर्वत है।।९।।
वर्तमान में ये दोनों प्रभु वासुपूज्य के तीरथ।
भव्यात्माओं को दर्शन से प्रगटाते मुक्तीपथ।।
इसीलिए चम्पापुर तीरथ की जयमाल बनाई।
वासुपूज्य तीर्थंकर की पूजन में इसे चढ़ाई।।१०।।
एक यही इच्छा है मेरी जन्मभूमि अर्चन में।
रत्नत्रय निधि को पाकर कर पाऊँ जन्म सफल मैं।।
बस तब तक ‘‘चंदनामती’’, पूजन का भाव रहेगा।
पूज्य न जब तक बन जाऊँ, प्रभु नाम हृदय में रहेगा।।११।।
मेरा यह पूर्णार्घ्य समर्पण, चम्पापुर तीरथ को।
है पवित्र जिस भू का कण कण, नमन है उसकी रज को।।
दुःखों का क्षय हो प्रभु! मेरे, कर्मों का भी क्षय हो।
मरण समाधीयुत हो जिससे, मेरा सुख अक्षय हो।।१२।।
-दोहा-
तीर्थंकर अरु तीर्थ का, प्रस्तुत यह गुणगान।
अर्घ्य चढ़ाकर मैं चहूँ, स्वातम में विश्राम।।१३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीवासुपूज्यनाथजन्मभूमिचम्पापुरीतीर्थक्षेत्राय जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
-गीता छन्द-
जो भव्य प्राणी जिनवरों की, जन्मभूमि को नमें।
तीर्थंकरों की चरणरज से, शीश उन पावन बनें।।
कर पुण्य का अर्जन कभी तो, जन्म ऐसा पाएंगे।
तीर्थंकरोें की श्रँृखला में, ‘‘चंदनामति’’ आएंगे।।
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलि:।।