चरणानुयोग
गृहमेध्यनगाराणां चारित्रोत्पत्तिवृद्धिरक्षाङ्गम्।
चरणानुयोगसमयं सम्यग्ज्ञानं विजानाति।।४५।।
अर्थ-सम्यग्ज्ञान ही गृहस्थ और मुनियों के चरित्र की उत्पत्ति, वृद्धि और रक्षा के अंगभूत चरणानुयोग शास्त्र को जानता है अर्थात् जिसमें श्रावक और मुनिधर्म का वर्णन किया जाता है, वह चरणानुयोग है।
अथवा
An Anuyog (a division of particular treatises) dealing with principles of conduct prescribed for the householders as well as saints.
४ अनुयोगों में एक अनुयोग ; जिसमें मुख्या रूप से गृहस्थ और मुनियों के व्रत-नियम-संयम का वर्णन किया गया हो।[[श्रेणी:शब्दकोष]]