मस्तिष्क ही नहीं , जीवन का हर अंग मूल्यवान है ! सिर से लेकर पैर तक कोई भी अंग ऐसा नहीं है जिसे हम निरथर्क या निमुल साबित कर सके ! आँख, कान, नाक,गला, हाथ, छाती, पेट जंघा सभी मूल्यवान है ! हर व्यक्ति शरीर में इतनी संपदाओं को संजोये हुये है कि ऐसा लगता है जैसे कुदरत सबको खजाना देकर ही पैदा करती है ! सवाल है पांव का जीवन के लिये पाव का वैसा ही मूल्य है जैसे मकान में नींव का ! गीता में श्री कृष्ण धरती पर हर प्राणी को कर्मयोगी बनने की प्रेरणा देते है ! स्वाभाविक है कि दो ही चीजों से कर्मयोग कर सकते है वे हैं हाथ और पांव ! आप जरा ऐसा ऐसे आदमी कि कल्पना करे जिसके हाथ और पांव न हो ! पांव होने के कारण हीदोपाया कहलाता है ! यानि एक बात है जीवन में पांव बहुत बड़ा अर्थ रखते हैं ! एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति ने पावों को इतना अधिक महत्व दिया है उसने जीवन की अधिकांश बीमारियों को पांव की पग जालियों द्वारा दुरस्त करने की कला ढूँढ निकाली है आप आश्चर्य करेगे इस बात को जानकर कि पांव की पगजालियों में केवल पांव ही नहीं है आँख, नाक, सिर, ह्रदय, पेट वह सब कुछ है जो सिर से ठीक न हो सके , वे पांवों से ठीक हो जाते हैं ! एक्यूप्रेशर यानि पांव के निर्धारित स्थानों पर अंगूठे से दबावे डालना ! कोई बाकि नंगे पांव 15 मिनट तक मिट्टी पर चल ले तो मानो सहज ही उसके सम्पूर्ण शरीर का एक्यूप्रेशर हो गया ! भारतीय संस्कृति में पांवों को छूने के पीछे एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार रहा है ! पांव छूना आदर, शिष्टाचार और विनम्रता का परिचायक है ! छोटे, बड़ों को प्रणाम करे ! इसी में उनकी विनम्रताका परिचायक है ! पांव छूना या अपने सिर को पांव में नमाना व्यक्ति के अंहकार को तोड़ने का सबसे सरलतम मंत्र है ! अब हम पंचांग या साष्टांग नमस्कार करते हैं वो एक अच्छा योगासन भी हो जाता है ! वह अंहकार को झुकता भी है और आशीर्वाद लेना भी हो जाता है ! जब हम किसी के पांव में झुकते हैं तो उनका प्रेमपूरित हाथ हमारे सिर पर आ जाता है ! इससे बड़ों का आशीर्वाद भी हमारे सिर पर पहुँच कर हमें ऊर्जा प्रभावित करता है !