हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि भगवान के समक्ष कभी खाली हाथ नहीं जायें। जब हम जिन दर्शन को जायें तो अपने हाथों में चांवल (अक्षत) लेकर जायें। चांवल चढ़ाने का उद्देश्य यह है जिस तरह धान से छिलका उतर जाने पर फिर धान बीज रूप में उगाने के लिये बोया नहीं जा सकता। उसी प्रकार भगवान के दर्शन करके चांवल चढ़ाकर हम यह भावना भाते हैं कि चांवल के समान ही मेरी आत्मा भी संसार में उगने अर्थात् फिर से जन्म लेने योग्य नहीं रहे मेरा फिर से जन्म न हो मुझे अक्षय पद (सिद्ध पद) की प्राप्ति हो।