चातुर्मास में साधु विशेष धर्मकार्य या सल्लेखना आदि निमित्त से अड़तालीस कोश तक विहार कर सकते हैं। स्पष्टीकरण-
१वर्षा ऋ+तु में देव और आर्ष संघसंंबंधी कोई बड़ा कार्य आ जाने पर यदि साधु बारह योजन तक चला जाए, तो कोई दोष नहीं है।”
अर्थात् चातुर्मास में यदि कहीं अन्यत्र किसी साधु ने सल्लेखना ग्रहण कर ली है अथवा और कोई विशेष ही कार्य है तो साधु बारह योजन अर्थात् एक योजन में चार कोश होने से १२²४·४८ कोश तक विहार करके जा सकता है।इस प्रकार से वर्षायोग की स्थापना करने वाले मुनिगण या आर्यिकाएँ आदि सल्लेखना आदि विशेष प्रसंगों में छ्यानवे मील तक विहार कर सकते हैं पुन: वे वापस वहीं आ जाते हैं।