शांतिसिंधु आचार्य थे, युग के प्रथमाचार्य।
उनके पद में भाव से, अर्पण है पूर्णार्घ्य।।१।।
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्ती प्रथमाचार्यश्रीशांतिसागरमहामुनीन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतिसिंधु के शिष्य तुम, प्रथम हो पट्टाचार्य।
इनके चरणों में नमन कर अर्पूं मैं पूर्णार्घ्य।।२।।
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीप्रथमाचार्यश्रीशांतिसागरस्य मूलपरम्परायां प्रथमपट्टाचार्यश्रीवीरसागरमुनीन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
वीर सिन्धु के शिष्य श्री, शिवसागर आचार्य।
पट्टाचार्य द्वितीय के, पद अर्पूं पूर्णार्घ्य।।३।।
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीप्रथमाचार्यश्रीशांतिसागरस्य मूलपरम्परायां द्वितीयपट्टाचार्यश्रीशिवसागरमुनीन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
धर्मसिंधु जी सूरि थे, तृतीय पट्टाचार्य।
सिंहवृत्तियुत गुरुचरण, में अर्पण पूर्णार्घ्य।।४।।
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीप्रथमाचार्यश्रीशांतिसागरस्य मूलपरम्परायां तृतीयपट्टाचार्यश्रीधर्मसागरमुनीन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
अजितसागराचार्य को, वंदन बारम्बार।
चतुर्थ पट्टाचार्य को, अर्घ्य समर्पूं आय।।५।।
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीप्रथमाचार्यश्रीशांतिसागरस्य मूलपरम्परायां चतुर्थपट्टाचार्यश्रीअजितसागरमुनीन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पंचम पट्टाचार्यश्री, श्रेयांससिंधु गुरुदेव।
अर्घ्य समर्पण गुरुचरण, होवे भव की छेव।।६।।
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीप्रथमाचार्यश्रीशांतिसागरस्य मूलपरम्परायां पंचमपट्टाचार्यश्रीश्रेयांससागरमुनीन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
अभिनंदनसागर मुनी, थे छट्ठे आचार्य।
अर्घ्य समर्पण कर उन्हें, पाऊँ निज साम्राज्य।।७।।
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीप्रथमाचार्यश्रीशांतिसागरस्य मूलपरम्परायां षष्ठमपट्टाचार्यश्रीअभिनंदनसागर-मुनीन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
अनेकांतसागरगुरु, वर्तमान आचार्य।
सप्तम पट्टाचार्य को, अर्घ्य चढ़ाऊँ आज।।८।।
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीप्रथमाचार्यश्रीशांतिसागरस्य मूलपरम्परायां सप्तमपट्टाचार्यश्रीअनेकांतसागर-मुनीन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।