यह मुनियों के तेरह प्रकार के चारित्र की लब्धि-प्राप्ति के लिये किया जाता है। इसमें पाँच महाव्रत, एक छठा अणुव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति के भेदों से यह व्रत १३७ भेद से १३७ व्रत रूप किया जाता है।
पाँच महाव्रत में अहिंसा महाव्रत के १४ भेद हैं, सत्य महाव्रत के ८, अचौर्य महाव्रत के ८, ब्रह्मचर्य महाव्रत के २०, परिग्रह त्याग महाव्रत के २४ भेद होते हैं। रात्रिभोजन त्याग छठा अणुव्रत १ है। ईर्या समिति एक है। भाषा समिति के १० भेद हैं। एषणासमिति के ४६ भेद हैं। आदाननिक्षेपण समिति, उत्सर्ग समिति १-१ हैं। मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति भी एक-एक हैं। अत: १४±८±८±२०±२४±१±१±१०±४६±१±१±१±१±१·१३७ भेद होते हैं।
इनमें आर्यिकाओं और श्राविकाओं के लिए ब्रह्मचर्य व्रत के मंत्रों के अंतर हैं उसे देखकर मंत्र जपना चाहिए।
इस व्रत की उत्तम विधि उपवास, मध्यम अल्पाहार और जघन्य एक बार शुद्धभोजन लेकर एकाशन करना है। व्रत के दिन मंदिर में तीर्थंकर भगवंतों की प्रतिमा का पंचामृत अभिषेक करके चारित्र लब्धि व्रत की पूजा करें और क्रम से एक-एक मंत्र का जाप्य करें। व्रत की पूर्णता पर श्रावक-श्राविकायें चारित्रलब्धि विधान या रत्नत्रय विधान करके यथाशक्ति ग्रंथदान आदि देकर उद्यापन संपन्न करें। इस व्रत का फल नियम से इस भव में तथा आगे भव में मुनियों के चारित्र को ग्रहण कर मोक्ष प्राप्त करना है और परम्परा से संपूर्ण सांसारिक सुख भी प्राप्त होंगे।
(१३७ व्रतों के मंत्र)