बिना दिये किसी की गिरी, पड़ी, रखी या भूली हुई वस्तु को ग्रहण करना अथवा उठाकर किसी को दे देना चोरी है। इस पाप के करने वाले चोर कहलाते हैं।
अथवा
Theft, Robbery, Stealth, Concealment.
चोरी-रखे हुए , गिरे हुए , भूले हुए अथवा धरोहर रखे हुए परद्रव्य को हरना ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
धर्मात्मा सुरेन्द्रदत्त सेठ नित्य पूजा आदि करने के लिए अपने मित्र रुद्रदत्त को बुहत सा धन देकर आप अन्यत्र धन कमाने चले गये। रुद्रदत्त ने सब धन को जुआ आदि व्यसनों में समाप्त कर चोरी करना शुरू कर दिया। कोतवाल द्वारा मारा गया और नरक चला गया। पुन: महामत्स्य हो गया, ऐसे असंख्य भवों तक दु:ख भोगता रहा। कालान्तर में दरिद्र ब्राह्मण का कुरूप पापी बालक हो गया। एक दिन वह एक दिगम्बर मुनि के पीछे-पीछे गया, वहाँ पापों से डरकर तथा संयम धारण कर मुनि बन गया और अन्त में मरकर अहमिन्द्र देव हो गया। देखो बालकों! चोरी आदि पापों से नरकों के, तिर्यंचों के और मनुष्यों के भी दु:ख भोगने पड़ते हैं और मुनि की संगति से स्वर्ग, मोक्ष मिलता है।
[[श्रेणी:बाल_विकास_भाग_२]]