
चौबीस तीर्थंकर जगत में, सर्व का मंगल करें।
रेवा नदी जल भराकर शुद्ध लाऊँ। 
काश्मीरि केशर घिसूँ भरके कटोरी। 


बेला जुही कमल फूल खिले खिले हैं। 
लड्डू पुआ घृत भरे पकवान लाऊँ।
कर्पूर ज्योति जलती करती उजाला। 
खेऊँ सुगंध वर धूप सुअग्नि संगी। 
केला अनार फल आम्र भराय थाली। 
नीरादि अर्घ कर स्वर्णिम पुष्प लेऊँ। 


ऋद्धि उन्हीं के होय, यथाजात मुद्रा धरें। 