

तीर्थंकरों के समवसृति में, आर्यिकाएँ मान्य हैं। 
गंगा नदी का नीर शीतल, स्वर्ण झारी में भरूँ। 
मलयागिरी चंदन सुगंधित, घिस कटोरी में भरूँ। 


चंपा चमेली केवड़ा, अरविंद सुरभित पुष्प से। 
मोदक इमरती सेमई, पायस पुआ पकवान से। 


दशगंध धूप सुगंध खेकर, कर्म अरि भस्मी करूँ। 
अंगूर सेव अनार केला, आम फल को अर्पते। 



















































लाख पचास छप्पन सहस, दो सौ तथा पचास।


जय जय जिन श्रमणी, गुणमणि धरणी, नारि शिरोमणि सुरवंद्या। 