श्री ऋषभदेव से लेकर अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी तक चौबीसों तीर्थंकरों ने मोक्षमार्ग के श्रावकधर्म और मुनिधर्म ऐसे दो भेद किये हैं। श्री गौतम स्वामी ने भी ‘‘सुदं मे आउस्संतो!’’ से संबोधन करते हुए श्रावकधर्म और मुनिधर्म का संक्षिप्त वर्णन किया है।
उसी के अन्तर्गत मुनियों के १३ प्रकार के चारित्र, २८ मूलगुण आदि भेद से मूल में व्रत, संयम या चारित्र के नाम से मूलगुण व्रत आदि नाम दिये हैं।
मुनियों के उत्तर गुणों में संक्षेप से १२ तप और २२ परीषहजय ऐसे ३४ उत्तरगुण माने हैं।
पुनश्च-‘‘चउरासीदिगुणसयसहस्सेसु’’ चौरासी लाख उत्तर गुण हैं, ऐसा श्री गौतम स्वामी ने प्रतिक्रमण पाठ में कहा है। इन्हीं का विस्तृत विवेचन मूलाचार, गोम्मटसार जीवकांड टीका आदि ग्रंथों में भी वर्णित है।
इन चौरासी लाख उत्तर गुणों के व्रत को भी हम और आप करके अपने इस जीवन में भावना भाते हुए आगे दो, चार आदि भवों में निश्चित ही इन गुणों की पूर्ति करके सिद्ध अवस्था को प्राप्त करेंगे, ऐसा पूर्ण विश्वास है।
चौरासी लाख उत्तरगुणों का वर्णन-
हिंसादि २१, अतिक्रमादि ४, पृथ्वी आदि १००, अब्रह्म १०, आलोचना के दोष १० और प्रायश्चित्त के भेद १० इनको परस्पर गुणा करने से २१²४²१००²१०²१०²१०·८४,००००० उत्तरगुण होते हैं।
हिंसादि २१-हिंसा, असत्य, अचौर्य, अब्रह्म, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, रति, अरति, भय, जुगुप्सा, मनोमंगुल, वचनमंगुल, कायमंगुल, (पाप संचय करने वाली क्रिया मंगुल है) मिथ्यादर्शन, प्रमाद, पैशून्य, अज्ञान और अनिग्रह (इन्द्रियों की स्वच्छन्द प्रवृत्ति)
अतिक्रम आदि ४-अतिक्रमण (विषयों की इच्छा), व्यतिक्रमण (विषयों के उपकरण मिलाने के विचार), अतिचार (व्रतों में शिथिलता आ जाना), अनाचार (व्रत भंग हो जाना)
पृथ्वी आदि १००-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, प्रत्येक वनस्पति, अनंतकायिक वनस्पति, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय इनको परस्पर में गुणित कर देने से १०²१०·१०० हो जाते हैं।
अब्रह्म १०-स्त्रीसंसर्ग, प्रणीतरसभोजन, गंधमाल्यसंस्पर्श, शयनासन (कोमल शय्या आसन की अभिलाषा), गीतवादित्र, अर्थसंप्रयोग (सुवर्णादि की अभिलाषा), कुशील, संसर्ग, राजसेवा (विषयों की आशा से राजा की सेवा) और रात्रिसंचरण ये १० शील विराधनाएं हैं।
आलोचना के १० दोष-आकंपित, अनुमानित, दृष्ट, बादर, सूक्ष्म, छन्न, शब्दाकुलित, बहुजन, अव्यक्त और तत्सेवी, आलोचना के ये १० दोष हैं।
प्रायश्चित्त के १० भेद-आलोचना, प्रतिक्रमण, तदुभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, मूल, परिहार और श्रद्धान ये दोषों की शुद्धि के १० उपाय हैं। सबका परस्पर गुणन करने से ८४००००० उत्तरगुण होते हैं। इनकी पूर्ति भी चौदहवें गुणस्थान में ही होती है।
व्रत विधि-
इनमें से मूलरूप में पैंसठ प्रकार को लेकर हम ६५ व्रत कर सकते हैं-हिंसादि २१, अतिक्रमादि ४, पृथ्वी आदि १०, अब्रह्म १०, आलोचना १०, प्रायश्चित्त १०, इस प्रकार २१±४±१०±१०±१०±१०·६५ होते हैं। इसमें पृथ्वी आदि के १०० भेदों को लेना संभव नहीं है। अत: जो नाम १० भेद के हैं उन्हें ही यहाँ लिया है।
समुच्चय मंत्र (तीनों मंत्रों में से कोई भी एक मंत्र करें)–
१. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-चतुरशीतिलक्षोत्तरगुणसमन्वित–अनंतानंतसिद्धपरमेष्ठिभ्यो नम:।
२. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-चतुरशीतिलक्षयोनिपरिभ्रमण-विनाशनाय चतुरशीतिलक्षोत्तरगुणप्राप्तये चतुरशीतिलक्षगुणसमन्वितसर्वसिद्ध-परमेष्ठिभ्यो नम:।
३. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-चतुरशीतिलक्षगुणेभ्यो नम:।
१. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-हिंसाविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-असत्यविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-चौर्यविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
४. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-अब्रह्मविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
५. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-परिग्रहविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
६. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-क्रोधकषायविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
७. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-मानकषायविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
८. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-मायाकषायविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
९. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-लोभकषायविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१०. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-रतिनोकषायविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
११. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-अरतिनोकषायविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१२. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-भयनोकषायविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१३. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-जुगुप्सानोकषायविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१४. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-मनोमंगुलविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१५. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-वचनमंगुलविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१६. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-कायमंगुलविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१७. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-मिथ्यादर्शनविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१८. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-प्रमादविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१९. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-पैशून्यविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२०. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-अज्ञानविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२१. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अतिक्रमणादिचतुर्भेदगुणित-इन्द्रियानिग्रहविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
अतिक्रम आदि दोषविरति के ४ मंत्र
२२. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-पृथिव्यादिशतभेदैर्गुणित-अतिक्रमणदोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२३. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-पृfिथव्यादिशतभेदैर्गुणित-व्यतिक्रमणदोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२४. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-पृथिव्यादिशतभेदैर्गुणित-अतिचारदोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२५. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-पृथिव्यादिशतभेदैर्गुणित-अनाचारदोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
पृथ्वी आदि दोषविरति के १० मंत्र
२६. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अब्रह्मदशभेदैर्गुणित-पृथ्वीकायिकजीवविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२७. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अब्रह्मदशभेदैर्गुणित-जलकायिकजीवविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२८. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अब्रह्मदशभेदैर्गुणित-अग््िनाकायिकजीवविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२९. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अब्रह्मदशभेदैर्गुणित-वायुकायिकजीवविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३०. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अब्रह्मदशभेदैर्गुणित-प्रत्येकवनस्पतिकायिकजीवविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३१. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अब्रह्मदशभेदैर्गुणित-अनंतवनस्पतिकायिकजीवविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३२. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अब्रह्मदशभेदैर्गुणित-द्वीन्द्रियजीवविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३३. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अब्रह्मदशभेदैर्गुणित-त्रीन्द्रियजीवविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३४. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अब्रह्मदशभेदैर्गुणित-चतुरिन्द्रियजीवविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३५. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-अब्रह्मदशभेदैर्गुणित-पंचेन्द्रियजीवविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
अब्रह्म दोषविरति के १० मंत्र
३६. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-आलोचनादशभेदैर्गुणित-स्त्रीसंसर्गशील१विराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३७. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-आलोचनादशभेदैर्गुणित-प्रणीतरसभोजनशीलविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३८. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-आलोचनादशभेदैर्गुणित-गंधमाल्यसंस्पर्शशीलविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
४०. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-आलोचनादशभेदैर्गुणित-गीतवादित्रशीलविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
४१. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-आलोचनादशभेदैर्गुणित-अर्थसंप्रयोगशीलविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
४२. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-आलोचनादशभेदैर्गुणित-कुशीलशीलविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
४३. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-आलोचनादशभेदैर्गुणित-संसर्गशीलविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
४४. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-आलोचनादशभेदैर्गुणित-राजसेवाशीलविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
४५. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-आलोचनादशभेदैर्गुणित-रात्रिसंचरणशीलविराधनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
आलोचना दोषविरति के १० मंत्र
४६. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रायश्चित्तदशभेदैर्गुणित-आकंपितालोचनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
४७. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रायश्चित्तदशभेदैर्गुणित-अनुमानितादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
४८. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रायश्चित्तदशभेदैर्गुणित-दृष्टालोचनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
४९. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रायश्चित्तदशभेदैर्गुणित-बादरालोचनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
५०. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रायश्चित्तदशभेदैर्गुणित-सूक्ष्मालोचनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्री सिद्धपरमेष्ठिने नम:।
५१. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रायश्चित्तदशभेदैर्गुणित-छन््नाालोचनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
५२. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रायश्चित्तदश्ाभेदैर्गुणित-शब्दाकुलितालोचनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
५३. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रायश्चित्तदशभेदैर्गुणित-बहुजनालोचनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
५४. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रायश्चित्तदशभेदैर्गुणित-अव्यक्तालोचनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
५५. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रायश्चित्तदशभेदैर्गुणित-तत्सेवी-आलोचनादोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
प्रायश्चित्त दोषविरति के १० मंत्र
५६. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-आलोचनाप्रायश्चित्तदोषविरति-गुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
५७. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-प्रतिक्रमणप्रायश्चित्तदोषविरति-गुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
५८. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-तदुभयप्रायश्चित्तदोषविरति-गुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
५९. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-विवेकप्रायश्चित्तदोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
६०. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-व्युत्सर्गप्रायश्चित्तदोषविरति-गुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
६१. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-तप:प्रायश्चित्तदोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
६२. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-छेदप्रायश्चित्तदोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
६३. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-मूलप्रायश्चित्तदोषविरतिगुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
६४. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-परिहारप्रायश्चित्तदोषविरति-गुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
६५. ॐ ह्रीं अर्हं श्रीगौतमस्वामिप्रणीत-श्रद्धानप्रायश्चित्तदोषविरति-गुणप्राप्ताय श्रीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।