परिये न भवोदधि मै फिरिकै। करियै यह काज महा थिर कै।।६१।।
—दोहा—
यह चौरासी जाति की। माल कही हम वेस।।
पढत सुनत संकट मिटै। जै जै नेमि जिनेस।।६२।।
जेठ महीना सुकुल पष। तिथि पंचमि गुरुवार।।
ता दिन संपूरन भई। जैमाला हितकार।।६३।।
येक सहस नै सतक मै। षटवरषै करि दूरि।।
संवत सो जानौ सुधी सदा रहौ सुष पूरि।।६४।।
—छप्पै—
धन कन वढै अनेक वढै कीरति दिन दूनी
दिन दिन सुष सरसाय कुमति छिन छिन मै ऊनी
अनगन गुनगन गहै लहै पगपग पटुताई।
कलमल दर कल्यान होय ता घर मै आई। पुत्र पौत्र परताप सौ।
संपूरन निव से जिया। मँनरंग लाल जा ऊदै मौ। वसत नेमि राजुलि पिया।।६५।।
—सवैया—
श्रावक धरमपाल मुसाहेव गंज साल विंदा लाल के सुपुत्र रतन वषान ही अन्नजल के त्रसाय रहौ सु नगर आय अग्रवाल दंस गग्र्ग गोत सुवषान ही। भादौ जी की पूजा पाठक कथा रासा है विसाल हरष सहित लिष्यौ अति सुषदान ही। विक्रम सुदित्य सार संवत सुनौरसरल मास तिथि दिन ताको करौ सु वषान ही।
—छप्पै छंद—
येक ऊनसन बीस तास पर षोडस जानो।
पोह सुकुल तिथि और जान पूनम सुवषानो येतवार दिन सार राति के पूरन कीनो।
पढै गुनै जो कोई ताहि आतम सुष भइनं गुलजारी के पठन को लिषी सु मन वच काइ के। भूल चूक सब सोंधियौ।