—दोहा—
तीर्थंकर की दिव्यध्वनि, श्रवण करें गणनाथ।
द्वादशांगकर्ता नमूँ, गणधर को नत माथ।।१।।
अथ मंडलस्योपरि षष्ठवलये पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—भरतक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—ऐरावतक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—कच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—सुकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—महाकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—कच्छकावतीकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डेत्रैकालिकसर्व—गणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—आवर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—लांगलावर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—पुष्कलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—पुष्कलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर— देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—वत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—सुवत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—महावत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—वत्सकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—रम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—सुरम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—रमणीयाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—मंगलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—पद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—सुपद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—महापद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—पद्मकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—शंखाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—नलिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—कुमुदाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२५।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—सरिताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२६।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—वप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२७।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—सुवप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२८।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—महावप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२९।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—वप्रकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३०।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—गंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३१।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—सुगंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३२।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—गंधिलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३३।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—गंधमालिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३४।।
—पूर्णार्घ्य—रोलाछंद—
जलगंधादिक लेय, वसुविध अर्घ्य बनाऊं।
अतुल अनघपद हेतु, पूजूं ध्यान लगाऊं।।
सब गणधरगुरु नित्य, श्रद्धा भक्ति जजूं मैं।
परमानंद स्वरूप, निजपद मुक्ति भजूं मैं।।१।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि—चतुस्त्रिंशत्कर्मभूमि—आर्यखंडेषु त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
—दोहा—
पूर्वधातकीखंड में, कर्मभूमि चौंतीस।
पुष्पांजलि कर पूजहूं, गणधर गुरु नत शीश।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—भरतक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३५।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—ऐरावतक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३६।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—कच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३७।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सुकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामाrति स्वाहा।।३८।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—महाकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३९।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—कच्छकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४०।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—आवर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४१।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—लांगलावर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य:अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—पुष्कलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—पुष्कलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४४।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—वत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४५।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सुवत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४६।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—महावत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४७।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—वत्सकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४८।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—रम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४९।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सुरम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५०।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—रमणीयाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५१।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—मंगलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—पद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सुपद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५४।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—महापद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५५।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—पद्मकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५६।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—शंखाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५७।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—नलिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५८।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—कुमुदाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५९।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सरिताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६०।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—वप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६१।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सुवप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—महावप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—वप्रकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६४।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—गंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६५।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सुगंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६६।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—गंधिलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६७।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—गंधमालिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६८।।
—पूर्णार्घ्य—गीताछंद—
जिनराज तीर्थंकर सदा ही, इंद्रगण से वंद्य हैं।
उन निकट में गणधर गुरु, वे भी जगत अभिनंद्य हैं।।
जलगंध आदिक अर्घ्य ले, इस हेतु मैं अर्चन करूँ।
अतिशीघ्र ही सब कर्म हनकर, मुक्ति लक्ष्मी वश करूँ।।२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखंडद्वीपसंबंधि—चतुस्त्रिंशत्कर्मभूमि—आर्यखंडेषु त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
—दोहा—
परमपुरुष गणधर गुरू, परमानंद निमग्न।
पुष्पांजलि से पूजहूँ, करूं मोह अरि भग्न।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—भरतक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—ऐरावतक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—कच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सुकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—महाकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—कच्छकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—आवर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—लांगलावर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—पुष्कलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—पुष्कलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—वत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सुवत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—महावत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—वत्सकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—रम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।८३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सुरम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—रमणीयाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—मंगलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—पद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सुपद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—महापद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—पद्मकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—शंखाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—नलिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—कुमुदाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सरिताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—वप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सुवप्राविदेहक्षेत्राय&खण्डे त्रैकालिकसव&गणधरदेवेभ्य: अघ्यं& निव&पामीति स्वाहा।।९६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—महावप्राविदेहक्षेत्राय&खण्डे त्रैकालिकसव&गणधरदेवेभ्य: अघ्यं& निव&पामीति स्वाहा।।९७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—वप्रकावतीविदेहक्षेत्राय&खण्डे त्रैकालिकसव&गणधरदेवेभ्य: अघ्यं& निव&पामीति स्वाहा।।९८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—गंधाविदेहक्षेत्राय&खण्डे त्रैकालिक—सव&गणधरदेवेभ्य: अघ्यं& निव&पामीति स्वाहा।।९९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—सुगंधाविदेहक्षेत्राय&खण्डे त्रैकालिकसव&गणधरदेवेभ्य: अघ्यं& निव&पामीति स्वाहा।।१००।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—गंधिलाविदेहक्षेत्राय&खण्डे त्रैकालिकसव&गणधरदेवेभ्य: अघ्यं& निव&पामीति स्वाहा।।१०१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसम्बन्धि—गंधमालिनीविदेहक्षेत्राय&खण्डे त्रैकालिकसव&गणधरदेवेभ्य: अघ्यं& निव&पामीति स्वाहा।।१०२।।
—पूर्णार्घ्य—अडिल्लछंद—
जल गंधादिक लेकर, अघ्य& बनाय के।
पूजूं भक्ति समेत, हष& उर लाय के।।
गणधर गुरु को नित्य, जजूं मन लाय के।
समकित निधि ले हषूं&, गुरुगुण गाय के।।३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखंडद्वीपसंबंधि—चतुस्त्रिंशत्कम&भूमि—आय&खंडेषु त्रैकालिकसव&गणधरदेवेभ्य: पूणा&घ्यं& निव&पामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
—दोहा—
पूरब पुष्करद्वीप में, कर्मभूमि चौंतीस।
पुष्पांजलि कर पूजहूं, गणधरगुरु नत शीश।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—भरतक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—ऐरावतक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधर—देवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०४।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—कच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०५।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सुकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०६।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—महाकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०७।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—कच्छकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०८।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—आवर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०९।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—लांगलावर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११०।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—पुष्कलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१११।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—पुष्कलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—वत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सुवत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११४।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—महावत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११५।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—वत्सकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११६।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—रम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११७।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सुरम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११८।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—रमणीयाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११९।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—मंगलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२०।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—पद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डेत्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२१।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सुपद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—महापद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—पद्मकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२४।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—शंखाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२५।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—नलिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२६।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—कुमुदाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२७।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सरिताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२८।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—वप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२९।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सुवप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३०।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—महावप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३१।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—वप्रकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—गंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सुगंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३४।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—गंधिलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३५।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—गंधमालिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३६।।
—पूर्णार्घ्य—नरेंद्रछंद—
तीर्थंकर प्रभु सुरगण वंदित, जन जन के हितकारी।
जो उनके गणधर को नमते, वे बनते गुणधारी।।
जल गंधादिक अर्घ्य चढ़ाकर, पूजूं हर्ष बढ़ाके।
चिन्मय िंचतामणि निजआतम, पाऊं पुण्य कमाके।।४।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि—चतुस्त्रिंशत्कर्मभूमि—आर्यखंडेषु त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
—दोहा—
पश्चिम पुष्कर द्वीप में, तीर्थंकर जिनराज।
उनके गणधर को जजूं, पुष्पांजलि कर आज।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—भरतक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—ऐरावतक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—कच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सुकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—महाकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—कच्छकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—आवर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—लांगलावर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—पुष्कलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—पुष्कलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—वत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सुवत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—महावत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—वत्सकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे—त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—रम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सुरम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—रमणीयाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—मंगलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—पद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सुपद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—महापद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—पद्मकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—शंखाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—नलिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—कुमुदाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सरिताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—वप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सुवप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—महावप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—वप्रकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—गंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—सुगंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—गंधिलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिक—सर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसम्बन्धि—गंधमालिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७०।।
—पूर्णार्घ्य—नाराचछंद—
तोय गंध शालिपुष्प, आदि अष्ट द्रव्य ले।
तीन रत्न हेतु तीर्थनाथ को जजूं भले।
तीर्थनाथ शिष्य की, गणधरों की वंदना।
धर्म्य शुक्ल ध्यान हेतु, मैं करूं महार्चना।।५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि—चतुस्त्रिंशत्कर्मभूमि—आर्यखंडेषु त्रैकालिकसर्वगणधरदेवेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
—पूर्णार्घ्य—दोहा—
इक सौ सत्तर कर्मभू, तीर्थंकर भगवान।
त्रैकालिक गणधर गुरू, जजत बनूं मतिमान।।६।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि—सप्तत्यधिकशतकर्मभूमि—आर्यखंडेषु त्रैकालिकानन्तानंतसर्वगणधरदेवेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र—ॐ ह्री श्रीसमवसरणस्थितसर्वगणधरदेवेभ्यो नम:।